पड़ोसन
गोकुलपुरा वाले मकान की मेरे अवचेतन मस्तिष्क में केवल कमरे के बगल से ऊपर जाती सीढ़ियां ही है ओर कुछ नही ।अम्मा बताती थी कि तेरा यहीं जन्म हुआ था और तू इतना दुबला पतला मरगिल्ला था की एक बिल्ली उठा कर ले जा रही थी ।पता नही ये सच्चई थी या फिर एक मजाक।अम्मा अक्सट इस किस्से को दोहराती रहती थी।अम्मा यह भी कहती थी कि मोहल्ले की रहने वाली एक कुम्हारिन तुझे हमेशा उठा कर के जाती थी और दिनभर देखभाल करती थी ।तू सारे दिन मिट्टी के बर्तनों कुल्हड़ सकोरों से खेलता रहता था ।अम्मा तो न जाने कितने किस्से सुनाती रहती थी ।बहुत से याद रहे बहुत से भूल गए ।
जाड़े के दिनों में बाग मुज्जफर खां वाले मकान में सवेरे सवेरे कोयले की अंगीठी के चारो ओर हम सब लोग लकड़ी के पट्टे पर उकड़ू बेठ जाते ।अंगीठी पर चाय उबलती रहती और एक गिलास चाय का सबके हाथों होता ।सडुक सुडुक चाय पीते अम्मा के किस्से सुनते ।ज्यादातर किस्से हमारे बचपन के ही होते ।कभी कभी अन्ना भी किस्से सुनाते लेकिन वे किस्से उनकी यात्रा के बारे में होते।
अम्मा के किस्सों में पड़ोसन का जिक्र कई बार आता था अक्सर उनके किस्से सुनाते अम्मा भावुक हो उठती थी ।
पड़ोसन को हम सभी अच्छी तरह जानते थे ।हमारे बड़े होने तक वे हमारे यहां आती रहती थी ।वे जगत पड़ोसन थी ।अम्मा की सहेली और संरक्षक ।अम्मा उनका सम्मान करती थी ।बड़ा स्नेह था उनसे ।वे एक गुजराती महिला थी ।उस समय गोकुलपूरा में ज्यादातर गुजराती लोग ही रहा करते थे ।अम्मा बताती थी कि जब शादी होकर अयोध्या से आगरा आई तो मेँ कुल 14 साल की थी ।मुझे घर गृहस्थी के बारे में कुछ नही मालूम था ।तब संरक्षिका बन पड़ोसन ने मेरी देखभाल की और मुझे घर ग्रहस्थी चलानी सिखाई यहां तक मुझे खाना बनाना भी सिखाया ।
बात सच थी कि पड़ोसन आचार खूब बढ़िया डालती थी ।हम लोगो ने उनके हाथ का डाला अचार खूब खाया था ।पड़ोसन की एक गूंगी लड़की थी ।जो साये की तरह उनके साथ रहती थी ।अब उसका असली नाम तो पता नही लेकिन हम लोग उसे गप्पों ही कहते थे ।बड़े सवाल उसके मन मे रहते थे ।वो ना तो बोल सकती थी और न ही सुन सकती थी ।सवाल पूछते हुए मुँह से बड़ी विचित्र आवाजे निकालती थी ।हम समझ नही पाते मगर पड़ोसन सब समझ जाती ।बड़ी ही भोलीभाली लड़की थी ।एक दिन उसकी शादी हो गयी ।पड़ोसन मिठाई लेकर आई थी।अम्मा से बतिया रही थी कि लड़का एक मंदिर में पुजारी है ।।उस समय हमें नही पता था शादी का मतलब ।हम तो सिर्फ यही जानते थे कि मिठाई खाने को मिलेगी ।पड़ौसन का एक लड़का था जिसका नाम चंदा था ।जयपुर में किसी बैंक में था ।पड़ोसन अक्सर इसका जिक्र करती रहती थी ।
एक दिन उन्होंने बताया की वे कुछ दिनो बाद चन्दा के पास चली जायेगी । यह सुनकर अम्मा उदास हो गयी थी । पड़ोसन की आवाज भी भर्रा गई थी ।समय गुजरता जा रहा था ।पड़ोसन का आना जाना चल रहा था ।अक्सर पड़ोसन छुट्टी वाले दिन दोपहत के समय सब काम निबटा कर फुरसत से आती थी ।तब तक अम्मा भी फुरसत पा जाती थी ।जाड़ो के दिनों में धूप में बैठना अच्छा लगता था आँगन में शहतूत के पेड़ के नीचे खटिया बिछ जाती और गप्शपचालु हो जाती ।वेसे बाग मुज्जफर खां वाले मकान का आँगन काफी बड़ा था यहां एक पीपल का विशाल वृक्ष था जिसमे बंदरो का झुंड उधम मचाया करता था ।इसी के बगल मे गूलर का पेड़ था जिसमे चड़ कर हम लोग उधम मचाते रहते थे ।शहतूत का पेड़ अभी छोटा था लेकिन खूब शहतूत आया करते थे ।
जल्दी ही वो समय आ गया जब पड़ोसन ने बताया कि वो हमेशा के लिए गोकुल पूरा छोड़ कर चंदा के पास ही रहेंगी ।आज वो आखिरी बार मिलने आयी है ।यह सुनकर अम्मा का मन अजीब सा हो गया ।बहुत भावुक हो गयी थी अम्मा ।पड़ोसन की ऑंखेभी गीली हो गयी थी ।लेकिन होवन हार को कौन टाल सकता है ।पड़ौसन चली गयी और उनके कुछ दिनों तक छुट पुट समचात आते रहे फिर समाचार आने बंद हो गए ।सब कुछ समाप्त
यह बहुत पुरानी बात है अगर हिसाब लगाऊं तो लगभग 60 वर्ष पहले की ।अब तो अम्मा भी इस दुनियां से चली गयी और पड़ोसन भी । अगर कुछ बचा है तो बस पुरानी यादें और उन्हें याद करने वाले लोग । समय के काल चक्र के साथ साथ सब कुछ स्वाहा हो गया

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