फेंकू

वे अक्सर मुझे फोन करते और पूछते -भाईसाहब कैसे हो और में जवाब देता .ठीक हूँ भैय्या ।वे कहते -आजकल मौसम खराब चल रहा है ।में बीमार हूँ थोड़ी तबियत ढीली है । यह एक आम बात थी ।कुछ दिनो बाद फिर फोन आया -भाईसाहब कैसे हो ।मै उन दिनों बीमार था मैने कहा -भैय्या बीमार चल रहा हूँ ।उन्होंने कहा -मौसम खराब चल रहा है मे भी डेंगू का शिकार हो गया था । काफी दिन इलाज चला लेकिन बीमारी है कि जाती नही है ।मैं उनकी बात सुन हैरान रह गया  ।मुझे नही मालूम था कि दुनियां में ऐसे लोग भी होते है जिन्हें दुसरो के कष्ट छोटे मालूम देते है और अपने कष्ट बड़े ।अगली बार उनका फोन आया ,-भाई साहब कैसे हो ।तब में अस्पताल में भर्ती था ।मेने सहज जवाब दिया -भैय्या हालात खराब है अस्प्ताल में भर्ती हूँ। वे बोले मौसम खराब चल रहा है ।मुझे भी पिछले दिनों अस्प्ताल में भर्ती होना पड़ा ।शहर के सबसे बड़े अस्पताल मे ICU में रखना पड़ा । उनके इस जवाब ने मुझे चोंका दिया । मेने पिछली बातो को क्रमबद्ध किया तो मुझे मालूम पड़ गया कि वे फेकने में माहिर है इसलिए मैंने फैसला किया कि अब में भी फेंकूँगा ।देखे कहाँ तक दौड़ लगती है  ।मैं बिल्कुल ठीक हो गया तो फिर उनका फोन आया -भाईसाहब कैसे है ।मेने कहा बहुत तकलीफ में हूँ शहर के सबसे महंगे अस्पताल में ICU मेभर्ती हूं।उनका जवाब आया -,मौसम खराब चल रहा है कुछ दिन पहले ही मेरी भी हालत बिगड़ गयी थी ।घरवालों ने दिल्ली के सबसे बड़े और महंगे अस्पताल में भर्ती करा दिया ।वेंटिलेटर पर रखना  पड़ा ।
          मुझे बड़ी खुन्नस हुई लेकिन जंग तो शुरू हो चुकी थी ।अगली बार उनका फोन आया तो में तैयार बैठा था ।भाई साहब कैसे हो ।मेने जवाब दिया -भैय्या मरा नही बाकी सब  कर्म हो चुके है ।बम्बई के बड़े अस्प्ताल में वेंटिलेटर पर पड़ा हुँ ।पता नही कब घाट पहुँच जाऊं।उनका तुरंत जवाब आ गया ।मौसम खराब चल रहा है ।मेरा तो वेंटिलेटर ही हटा दिया गया और शमशान घाट जाना पड़ा ।अबकी बार मुझे खुन्नस चढ़ गई  ।मेने सौचा ठीक है अबकी फोन आने दो जोरदार छक्का मरूँगा ।अगली बार फिर फोन आया -भाईसाहब कैसे हो ।मेने कहा -अस्प्ताल से घर आ गया हूँ रोना पीटना चल रहा है । लोग इकट्ठे हो गए है बस लकड़ी में कसना बाकी है ।उनका जवाब आया -मौसम खराब चल रहा है पिछले दिनों लोग मुझे भी घाट पर फूंक गए पूरे एक क्विंटल लकड़ी लगी । उनका जवाब सुन मेरी बाछें खिल गयी मेने भी नहले पर दहला मारने की सोची ।सोच लिया अब मुझे क्या करना है ।अगली बार फिर फोन आया -,भाईसाहब क्या हाल है ।मेने कहा -शमशान घाट में हूँ ।लकड़ी पर रख कर फूकने की तैयारी चल रही है ।वे बोले -मौसम खराब चल रहा है ।लोगो ने मुझे तो फूंक ही दिया है और अब कपाल क्रिया कर वापिस लौट रहे है ।उनका जवाब सुन मुझे लगा कि अब बाजी मेरे पास है और मैं यह युद्ध जरूर जीत जाऊंगा ।अगली बार फिर फोन  आया -भाईसाहब कैसे है तो -मेने भी पलट कर जवाब दिया -,भय्ये बड़ी खुशी हुई कि दुनियाँ के सारे कष्टों से मुक्ति मिल गयी और अब भूत योनि में विचरण कर  रहे हैं।ये बताए कि आपकी तेरहवीं कब की है ।बहुत दिनों से तेरहवीं नही खाई ।आपकी तेरहवीं खाने की बहुत इच्छा है ।।मेने सोचा कि अब तो कुछ काँव काँव करेंगे मगर उनका तुरंत जवाब आ गया । भाईसाहब आजकल में पागलखाने में हूँ लोगो को जूते मार रहा हूँ ।आपको जब भी तेरह खाने हो आ जाना 
मेने अपना माथा ठोक लिया ।बेशर्मी की भी हद होती है ।ऐसे लोगो से दिमाग खपाना मूर्खता ही कह लाएगी ।इसलिए एसे लोगो से दूर ही रहे यह बेहतर है ।मेने भी यही किया ।अपमी फोन मेमोरी से उनका नाम हटा दिया ।ना रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी ।और यह बात भी कि अज्ञात फोन मै उठाता नही ।

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