प्रवासी मजदूर
इस बात को लेकर अच्छी बहस की जा सकती है कि बांद्रा में 5हजार मजदूरों की भीड़ कैसे इकट्ठा हो गयी ।बहस इस बात कि भी की जा सकती है कि मजदूर इकट्ठा हो गए और पुलिस को पता भी नही चला ।बहस इस बात की भी की जा सकती है कि यह किसकी साजिस है । महाराष्ट्र की पुलिस फेल हो गयी या भाजपा ने खेल कर दिया । बहुत से सवाल ऐसे है जिनका जवाब मिलना बाकी है लेकिंन सवालों के बीच इन सारे घटना में एक छुट भैया नेता विजय दुबे का नाम जरूर चमक गया जिसने प्रवासि मज़दूरो को भड़काया उन्हें इकत्ता होने कहा और विद्रोह करने को कहा ।अलबत्ता अब अब न्यूज चेनलो में उसकी खूब चर्चा हुई।
ऐसी ही घटना सूरत में घटी जहाँ हजारो प्रवासी मजदूर लॉक डाउन तोड़ कर इकट्ठा हो गए और घर जाने की व्यवस्था की मांग करने लगे ।इन्हें बड़ी मुश्किल से समझाया गया तब जाकर स्थिति नियंत्रण में आई ।लॉक डाउन के आरम्भ से ही ऐसी तमाम घटनाये सामने आई जिसने प्रवासी मजदूरी के प्रति ध्यान आकर्षित किया
इन सभी मामले में ज्यादातर यू पी ,बिहार के प्रवासी मजदूर थे जो रोजी रोटी कमाने अपने घर गांवो से यहां आये थे ।।इनका ऐसा ही जमावड़ा लॉक डाउन के पहले हफ्ते में देखने को मिला था जब लाखो की संख्या में दिल्ली के आनंद बिहार बस स्टेशन पर इकट्ठो गए थे ।यही नही जब इन्हें पता चला बसे नाही चल रही तो यह पैदल ही 700-800 किलोमीटर की यात्रा पर चल पड़े बिना यह सोचे कि यह यात्रा कितनी कठिन होगी ।मुझे तो यह आश्चर्यजनक लगता है और मजदूरों की हिम्तात को दाद देनी पड़ेगी है ।
अब लॉक डाउन 4शुरू होनेवाला है और मजदूरों जे पलायन का यह सिलसिला अभी रुका नही है ।अभी भी सेकड़ो लोग झुंड़ बना कर सड़क यात्रा कर रहे है ।इनमे से कोई हैदराबाद से तो कोई बेंगलोर से तो कोई गुजरात से पैदल चला आ रहा है ।पैदल चलने वालो मे छोटे छोटे बच्चे है बोझ उठा कर चलती महिलाये है ,बूढ़े है और गोद मे छोटे वच्चे को उठाये पुरुष है ।सबकी एक ही धुन है कि बस घर पहुचना है और घर पहुचने कि धुन में इन्हें रास्ते की तकलीफों का अंदाज भी नही रहा होगा लेकिन मालिक का भरोसा कर अपनी यात्रा पर चल दिये ।
एक रिपोर्ट के अनुसार इन प्रवासी मजदूरों की संख्या लगभग 10 करोड़ है ।यह कोई मामूली संख्या नही है ।लॉक डाउन में ईतनी बड़ी संख्या में आवागमन खतरनाक हो सकता था ।शुक्र है ऐसा नही हुआ ।मजदूरों की निरंतरता और मज़बूरी ने सरकार का ध्यान इनकीं और आकर्षित किया और सरकार को भी इन्हें घर वापिसी का आश्वासन देने पड़ा।
सरकार ने इसके लिए खास प्रबध भी किये गए ।इनके लिए श्रमिक ट्रेन चलाई गई ।इनके घर पहुचने के लिए बस की व्यवस्था की गई और जैसे भी हो इनकीं सहायता की गई ।लेकिन इसके बावजूद भी इनके पैदल चलने का सिलसिला रुका नही ।यह सिलसिला जारी है और अब ज्यादा संख्या में मजदूर आ रहे है और यदि ये स्थिति बनी रही तो शायद ये सिलसिला ऐसा ही चलता ही रहेगा ।जब तक लॉक डाउन में फसें ये मजदूर अपने घर नही पहुँचते
हताश निराश परेशान परिस्थितियों के मारे इन मजदूरों की व्यथा खूब देखने सुनने को को मिल रही है ।
अखबार की एज रिपोर्ट के अनुसार अब तक 6लाख से ज्यादा मजदूरों को उनके गांव भेजा जा चुका है और अब इतने ही लोगो की और घर वापिसी सुनिश्चित की गई है ।यधपि सरकार इनसे अनुरोध कर रही है कि वे जहां हे वहीँ रहे ।लेकिन मजदूर घर जाने के लिए उतावके हो रहे है ।
इन प्रवासी मजदूरों की लगभग एक सी कहानी है ।ज्यादातर का कहना है -काम बंद होगया ,मालिक ने पैसे नही दिए ,सारा राशन खत्म हो गया ।भूखे मरने लगे मकान मालिक किराया मांगने लगे -अब कहाँ से देते ।इसलिए सौचा की मरना है तो परदेश में क्यो रहे ।कुछ ऐसे लोग भी रहे जिन्होंने कहा -हमारे गांव के सभी लोग चल दिये तो हैम भी चल दिये ।
सरकार की मदद से अपने गांव पहुँचे इन प्रवासी मजदूरों के चेहरे पर घर पहुँचने की प्रसन्नता देखी जा सकती है ।अपनो के मध्य ये अपने आप को सुरीक्षित महसूस करते है ।उनका कहना है कि यहां वे भूखें नही मरेंगे ।रास्ते की तकलीफों को अपना भाग्य मानते हुए वे सरकार और देश के लोगो को उनकी सहायता के लिए धन्यवाद देते है ।वे यहभी कहते है कि अब वे तभी वापिस जाएंगे जब कोरोना बीमारी खत्म हो जाएगी ।
देस के अखबारों में छपी रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस की पूर्ण समाप्ति जल्दी सम्भ व नही है और यह भी निश्चित है कि लॉक डाउन भी लंबे समय तक लगाया नही जा सकता ऐसे में कोरोना से जंग लड़ने के साथ साथ देश की अर्थ व्यवस्था को भी पटरी पर लाना है जो बुरी तरह उत्तर गयी है ।इसी लिए सरकार ने कहा -की अब देश को कोरोना के साथ जीना सीख लेना चाहिए ताकि देश फिर से पटरी पर आए ।यह भी की हमे इन परिस्थिगतियों से सबक लेना चाहिए और इस अवसर का लाभ लेते हुए कुछ बुनियादी निर्णय लेने को तैयार रहे कोरोना से जंग आसान नही है ।
ये मजदूर गांव तो पहुँच गए लेकिन कोरीना काल मे अब ये करेंगे क्या ।कोन इन्हें काम देगा ।कैसे परिवार चलेगा और केसे रोटी पानी की जुगाड़ लगेगी ।सवाल कठिन है और जवाब सरकार को देना है । एक बात तो साफ है ।कि बिना मदद के यह सम्भव नही है ।प्रवासी मजदूरों को मदद की जरूरत है । यद्यपि सरकार ने इनकीं मदद के लिए एक बड़ी रकम का आर्थिक पैकेज की घोषणा तो कर दी है और अनेक प्रकार की योजनाएं बनाई है लेकिन सरकारी दफ्तरों की फाइलों से निकल कर यह योजनाए मजदूरों तक पहुँच पाएगी इसकी कोई गारंटी नही है

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