अम्मा
संजू का लगातार फोन आ रहा था --भैया तुम आ जाओ अम्मा की तबियत ज्यादा खराब है ।में परेशान था सौच रहा था मुझे जल्दी पहुँच जाना चाहिए ।अम्मा अस्पताल में भर्ती थी ।अभी कुछ दिनों पहले ही तो हमारे घर आई थी ।रेलवे स्टेशन लेने गया था ।खूब प्रसन्न थी ।अपने शहर आने की खुशी थी अपनो से मिलने की खुशी थी ।अपना शहर जहां जिंदगी का अधिकांश समय गुजर था ।अम्मा के आने की खबर सुन कर पहचान वाले आने लगे थे ।नाते रिश्तेदार भी कुशल क्षेम पूछ रहे थे ।अम्मा अपनी पुरानी बातो को याद करती रहती थी ।सारा दिन कैसे गुजर जाता था पता ही नही चलता था ।
अम्मा अस्सी को पार कर चुकी थी ।शरीर कमजोर हो चुका था ।अब कुछ भूलने भी लगी थी ।दिमाग कभी साथ भी नही देता था ।एक दिन वड्डा जी आये थे ।अम्मा ने दरवाजा खोला था ।फिर मुझसे कहा --देखो कोई आया है ।इस पर बड़ा जी झल्ला गए ,बोले -- अम्मा मुझे नही पहचानती। मुझे ही भूल गयी ।अम्मा पर इसकी कोई प्रतिक्रिया नही हुई।उनका चेहरा सपाट ही रहा। अम्मा के साथ गुजारे वे दिन मेरे लिए आखिरी ही थे । दिन भर जी भर बाटे करता ।अम्मा भी बचपन की शरारतों की बाते बताती रहती लेकिन बीच बीच मे यह कहना न भूलती -भगवान अब तो मुझे उठा ले ।कभी सारे दिन काम करने वाली अम्मा शायद अब थक चुकी थी
में अम्मा के बारे में न जाने क्या क्या सोच रहा था । मुझेवो सब बाटे याद आ रही थी जो अम्मा के साथ गुजारे थे ।में अम्मा की यादों डूबने लगा था तभी फोन कि घंटी घनघनाने लगी ।मेरी तंद्रा टूटी ।संजू का फोन था
,--भैया अम्मा नही रही ।सुन कर धक्का लगा अनायास आंखों से आंसू निकल पड़े । में रोता रहा पता नही कितनी देर।अब फोन कि घंटी बजने लगी थी रिश्तेदारों के फोन आ रहे थे ।क्या करना है कैसे चलना है कब चलना है ।में सबको जवाब दे रहा था और इन सबके बीच मे अपने आप को स्थिर रखने का प्रयास कर रहा था .संजू ने फोन कर बता दिया था कि हम आप लोगो का इंतजार कर रहे रहे है
उन दिनों बरसात खूब हो रही थी ।अखबार मे टी वी में देश मे आई बाढ़ ।की खूब चर्चा थी ।रेलगाड़ीयां देर से चल रही ।हम स्टेशन पर बैठे हुए थे ।गाड़ी 17 घंटे देरी से चल रही थी ।हमने सारी रात जागते हुए प्लेटफार्म पर काटी । इस आशा के साथ कि गाड़ी आएगी तो ।गाड़ी 20 घंटे देरी से आई ।गाड़ी में जगह मिल गयी थी।हम सारि रात जागे थे लेकिन फिर भी हमे नींद नही आ रही थी ।बस अम्मा की बाते करते हुए ही वक्त काट रहे थे ।इधर संजू का बार बार फोन आ रहा था---भैय्या कहाँ तक पहुँच गए और हम बता रहे थे बस गाड़ी में बैठ गए और गाड़ी चल पड़ी है ।
सवेरे 10 बजे का वक्त था एक बार फिर फोन घर्राया। अक्का जी ने पूछा --कहाँ हो..... बड्डा जी तो आ गए है ।मेने कहा अभी तो गाड़ी ने स्टेशन छोड़ा है पता नही कब पहुंचेगी ।अक्का जी ने कहा तो इंतजार करते है ।पता नही क्या सौच कर मेने कहा -बड्डा जी तो पहुँच गए तो काज कर दो हमारा इंतजार मत करो हैं तस्वीर जरूर खींच लेना ।अक्का जी ने कहा ठीक है
गाड़ी अपनी गति से चल रही थी।मेने अपना सिर टिका लिया ।अभी भी सिर्फ अम्मा की यादें फ़िल्म की तरह चल रही थी ।ऐसे ही सोचते हुए कब आंख लग गयी पता ही नही चला और जब आंख खुली तो अजीब सी गंध महसूस की जैसे अंतिम संस्कार के समय लकड़ी जलने की होती है ।मेने फोन किया संजू ने उठाया बोला ---अभी अभी अम्मा को दाग दिया गया है ।।सुनकर मेँ आश्चर्य में पड गया कि ये कितनी अजीब बात है क्या मेरा अवचेतन मन आत्मा अम्मा के इतने करीब पहंच गयी या फिर ये संयोग है ।
शाम तक हम लोग घर पहुंच गए । घर मे सन्नाटा था । हमेशा की तरह हमें देख स्वागत करने वाली अम्मा अब वहाँ नही थी ।अगर था तो सिर्फ उदासी , आंसू और रोना पीटना ।अम्म्स तो अब खो गयी थी ।

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