इलाज
किडनी खराब होने की बात सुनकर तो जैसे सबको सांप सूंघ गया ।डॉक्टर ने अच्छी तरह हड़का दिया अब ज्यादा लापरवाही की तो बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा ।अपने पर्चे पर विशेषज्ञ डॉक्टर का नाम लिखते हुए कहा कल ही दिखा देना ।
घर आया तो मातमी सूरत देख सब पूछने लगे क्या हुआ ।मैने कहा बस जाने की तैयारी है । ।किडनी बोल गई है ।पत्नी ने ढांढस बंधाया अरे क्यो चिंता करते हो सब ठीक हो जाएगा ।बच्चा गूगल सर्च करने लगा बोला किडनी ठीक करने का कोई इलाज एलोपेथी में नही है जो बची खुची है उसी से काम चलाना पड़ेगा ।पत्नी ने मुझे समझाया अरे ये तो बच्चा है ये क्या जाने इंटरनेट पर तो जाने क्या अनाप शनाप लोग डालते है ।कल डॉक्टर के पास चलेंगे सब ठीक हो जाएगा ।
दूसरे दिन में डॉक्टर के क्लिनिक में बैठा था और डॉक्टर मुझसे पूछ रहा था क्या तकलीफ है ।
मेने कुछ कह नही बस रिपोर्ट और पर्चा पकड़ा दिया ।उसने पर्चे और रिपोर्ट पर सरसरी निगाह मारी और फिर घूर कर मुझे देखा बिल्कुल वेसे ही जैसे कसाई बकरे को देखता है ।मेरे दिल की धड़कने तेज ही गयी । डॉक्टर कंप्यूटर में खुट पुट करने लगा और फिर प्रिंटर से पर्चा निकलते हुए कहा -एक महीने दावा लेकर मुझे दिखाना हाँ यह चिंता करना छोड़ दो ।
क्लिनिक से बाहर आया तो कंपाउंडर ने कहा - सारी दावा यही से मिलेंगी ।दवा की दुकान भी डॉक्टर की ही थी ओर मुझे पता थी कि दवाएं यहाँ के अलावा और कही नही मिलेंगी ।मेने पर्चा आगे बढ़ाया और पूछ लिया कितने की दवा पड़ेगी । केमिस्ट ने गड़ना कर बताया कि लगभग 12000/ रुपये के ।सुनकर में तो बिदक गया । पत्नी ने समझाया ।मेने अपनी जेब टटोली इतने पेसे नही थे ।पत्नी समझ गयी बोली कुछ बात नहीं थोड़े दिनों की दवा ले लेते है बाकी बाद में ।
वापिस घर आया तो मन बेचैन था ।सारी उम्र गुजर गई ....मेने तो क्या मेरे बाप ने भी इतने पैसो की दवा कभी नही खरीदी थी। मै तो बुरी तरह फैल गया लेकिन फिर पत्नी सामने आई बोली पहले दवा तो खाओ बाद में पैसे को देखना ।मन मार कर जब दवा खानी शुरू की तो ऐसा लगता कि दवा नही पैसा खा रहा हूँ। सारी जिंदगी सूखी तनखा से घर चलाया ।सरकारी दफ्तर में बाबू जरूर था लेकिन साहबों की चमचागिरी नही की सो कभी मलाईदार सीट नही मिली । भाई लोग साहब की चमचे बन खूब माल उड़ाते थे । दिनभर फोकट में कचोरी समोसे और रसगुल्ले आते रहते और में यह सब देखते हुए सुखी रोटी चबाता रहता था ।
में यह सोच कर ज्यादा परेशान था कि आम आदमी के लिए इलाज कराना कितना महंगा हो गया ।शायद इसी स्थिति में संभव ही नही ।
पत्नी लगातार ढांढस बंधा रही थी तो बेटा गुगुल देख डरा रहा था ।बार बार दोहराता - पाप इसका तो कोई इलाज ही नही है और जब ये सवाल मेने बड़े अस्पताल के बड़े डॉक्टर से पूछा जो केम्प लगाकर परामर्श दे रहे थे तो उनका सीधा जवाब था क्यो नही इसका सटीक इलाज है हमारे पास ।हम आपकी किडनी बदल देंगे ।नई किडनी डाल देंगे बस आप किडनी का इंतजाम कर लो ।मेने पूछा किडनी मतलब ।इन्होंने कहा भाई किडनी कोई बाजर में तो मिलती नही जो जाकर खरीद लाओ ।तुम अपने घर वालो से बात करो अपने टिशतेदारो से बात करो तुम्हारे जान पहचान वाले भी होने दोस्त भी होंगे किसी से भी किडनी दान में मांग लो बाकी सारे काम ऑपरेशन आदि सब हम कर ही देंगे बस 5-6 लाख का इंतजाम कर लो ।एकदम नए बन जाओगे ।
डॉक्टर की यही बात जब मैने घर आकर बताई और कहा - क्या घर से इसका इंतजाम हो सकता है तो पत्नी भडक गयी बोली- मेरे बच्चे पर नजर मत गड़ाओ । अभी उसकी उम्र क्या है अभी तो उसने दुनिया ठीक से देखी भी नही है और तुम्हारा क्या तुम तो बूढे हो गए हो हाँ तुम चाहो तो मेरी किडनी ले सकते हो बशर्ते किडनी फिट हो जाए ।फिर उसका पुराना रिकॉर्ड चालू हो गया..... वेसे भी मुझे इस घर मे मिला क्या है जबसे यहां आई हूं तबसे .... उसके इस रिकॉर्ड को सुन पाना मेरे लिये मुश्किल था इसलिए मै फोन उठा कर दूसरे कमरे में चला गया ।
अब मेरी सोच बदल रही थी एक असंभव सी आशा के साथ मे अपने दोस्तों ,जान पहचान वालो, रिश्तेदारों से फोन पर कह रहा था मुझे किडनी चाहिए ।कमबख्त किसी ने हामी नहीं भारी सब टालमटोल करने लगे कुछ मुँहफट नोजवानो ने कहा डाला -अंकल काहे इस चक्कर मे पड़े हो ।तुम बूढे हो गये हो ।पांव कब्र में पड़े है ।किसी काम के नही ।निठल्ले बैठे हो ।धरती पर बोझ हो अच्छा है चार कंधो पर सवार होकर अपने लोक चले जाओ ।
बात तो सही थी ।मैं सत्तर साल का हो गया था ।बिस्तर पर पड़ा रहता था काम धाम होते नही था सच कहूं तो में भी होता तो यही कहता ।पता नही क्यो हमारे हिन्दू धर्म मे यह कहानी डाल दी कि यदि इस जन्म में अंग भग होकर लकड़ी में जले तो अगले जन्म में भी अंग भंग होकर जन्म लोगे । शायद इसीलिए लोग मरने से पहले अंग दान करने से डरते है उन्हे इस जनम की नही अगले जन्म की चिन्ता डराती है ।
दिन गुजर रहे थे ।चिंता बढ़ती जा रही थी ।समझ नही आ रहा क्या करूँ ।जान पहचान वाले आ रहे मातम पुरसी करते और दो चार सलाह दे जाते ।बेटा गुगुल पर बाबाओ और वैद्यो की बाते बताता ।पत्नी आश्वाशन देती रहती ।जिसके जो समझ मे आता बोल जाता ।इस मध्य हमारे घर पूजा पाठ कराने वाले पंडित जी भी आये ।कहने लगे -यजमान चिंता क्यो करते हो ।सब प्रभु पर छोड़ दो ।अरे जितना जीवन है उसे हंस कर बिताओ मृत्यु से क्या डर। ये तो मोक्ष का द्वार है अर्थात जो दर्द देता है वो दवा भी देता है यानी जो दर्द है वो दवा भी है ।पंडित जी तो प्रवचन देकर और दक्षिणा लेकर चले गए लेकिन मेरे मन को उथल पुथल कर गए ।मै सारी रात सो नही पाया । उंगलियों पर गणना करता रहा और सोचता रहा कि मेरी फोटो टंगने के बाद पत्नी को कितनी पेंशन मिलेगी और बेटा उसकी ठीक से देखभाल करेगा या नही ।मै बड़ी उलझन में हूँ कि जीवन का सत्य समझने के बाद भी लोग अमर होना चाहते है और संसार की मोह माया से मुक्ति नही चाहते । मे भी शायद उन्ही में से हूं जो सांसारिक मोह माया और बधन से मुक्त नही होणा चाहते ।डरपोक जो हूँ।

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