अस्पताल का खर्चा

पिछले दिनों में अस्पताल मे भर्ती था ।चार दिनों में ही 60 हजार खर्च हो गए ।मेने खर्चे का बिल देखा और पाया की चार दिनों में मै 20000 /-की दवाइयां  खा गया ।इतना तो मैने दाल रोटी खाने के लिए भी नही किया ।मुझे बड़ा कष्ट हुआ ।पैसे पैसे करके जो रकम मेने बरसों में इकट्ठे किए थे वे फुर्र से उड़ गए ।ये कहानी मेरी नही एक आम लोगो की है ।अगर सरकारी अस्पतालों की दशा अच्छी होती ओर जन औषधि केन्द्रों से दवाइयां मिल जाती तो मै निजी अस्पतालों में क्यो जाता जहाँ इलास के साथ साथ खून भी चूस लिया जाता है ।पता नही सरकार क्यों कुछ नही करती । क्यो नही दवा ओर अस्पतालों की मनमाने खर्चो पर रोक नही लगाती । डॉक्टर मनमानी फीस वसूलते है और दवा कंपिनियाँ मनमानी MRP ।सबको पता है कि कैसा खेल चल रहा है ।ये डॉक्टर भी अजीब है ।बस पर्चा भर देते है महंगी दवाइयों से ।उन्हें यह जानने की जरूरत नही की मरीज की आर्थिक स्थिति केसी है ।पता है जिंदा रहने के लिए वो  कुछ भी करेगा कहीं से भी करेगा जिंदा रहेगा या फिर मरेगा पर उनके चेम्बर में दवा कंपनी  का AC पक्का है ।इसलिए आम जनता डरती है ।शनिवार को शनि महाराज को तेल चढ़ाकर और  दक्षिणा में 5 रुपिया चढ़ाकर प्रार्थना करती है महाराज ठीक रखना अस्प्ताल के दरवाजे पर मत ले जाना।खासकर सरकरीं अस्पताल मे जहाँ यमदूत नरक का टिकट लेकर बैठे रहते है । मुझे नेताओं के लच्छेदार बयानों पर गुस्सा आता है उसदे ज्यादा उनके अंध भक्तो पर जो गाहे बगाहे जय हो के नाते लगाते रहते है ।मगर ये कौन लोग है जो मजदूर और किसानों जैसे लगते है ।जो नेताओं के जुलूस में झंडा लेकर चलते है ओर जिंदाबाद के नारे लगाते है । किसी ने

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