ललित जी
ललित जी बड़े सीधे और सरल स्वभाव के थे । अक्सट हमारे घर आया करते थे ।उनके परिवार और हमारे परिवार में अच्छी पहचान थी ।उनके पिताजी और हमारे अन्ना में गहरी दोस्ती थी सो वे गप शप मारने हमारे घर आया करते थे । ललित जी घर के प्रत्येक सदस्य से परिचित थे ।वे हमसे उम्र में आठ साल बड़े थे ।लेकिन उम्र की यह अंतर हमारी बातचीत में कभी आड़े नही आया ।तब वे बीएससी में पढ़ रहे थे और हम लोग नोवी दसवी में ।वे पढ़ाई के साथ साथ किसी लाल की दुकान में पुस्तक प्रतिनिधि के रूप मे कार्य कर रहे थे और ज्यादातर टूर पर रहते थे ।उनकी बातों में यही टूर की बाते हुआ करती थी । उनके आने का समय शाम का ही हुआ करता था ।गर्मियों के मोसम में शाम होते ही नहाने धोने के साथ ही पीपल वाले आँगन ने छिड़काव हो जाता था और खटियाएँ बिछ जाय करती थी और हाथ के पंखे तकिये के नीचे रख दिये जाते थे ।घर मे एकमात्र लकड़ी की कुर्सी थी जिसमे ललित जी बैठ जाते और हम लोग खटिया में बैठ कर उनके किस्से सुनते ।ललित जी बड़ी फुरसत से आते थे और अपने किस्से बड़ी धीमी धीमी गति से सुनाते बिल्कुल पैसेंजर गाड़ी की तरह और वो भी खुसुर पुसुर अंदाज में ।उनके किस्से सुनने के लिए बड़ा धैर्य रखना पड़ता था ।बहुत जल्दी ऊब जाते और फिर निकलने की फिराक में लग जाते ।ललित जी पर इसका कोई असर नही होता वे लगातार अपनी बाते कहते रहते ।जब घर का कोई सदस्य आता ओर ललित जी से राम राण कहता तो हैम मौका देखकर गायब हो जीते ।अब ललित जी उसे किस्सा सुनते रहते ।उसजे तब छुटकारा मिलता जब कोई तीसरा राण राम कहता ।बातचीत जा अंत आखिर में अम्मा जे साथ बातचीत से होता । अम्मा उनसे घर का हाल चाल पूछती और घर की बातें करती फिर चाय नाशतेजे साथ ललित जी की बातों का समापन हो जाता और हम लोग ठंडी सांसे लेते ललित जी को बीएससी से बड़ा प्यार था उन्होंने बीएससी में कई साल गुजरे ।यहां तक हशम लोग भी बीएससी कर गए और वो वही अटके राह गए ।एक बार मेने पूछा भी था -ललित जी अगर ग्रेजुएशन करना है तो बीए कर लो आसानी सही जाएगा ।वर बोले नही में बीएससी ही करूँगा ये मेरी जिद है ।कलित जी जे साथ बरसो यही रिश्ता बना रहा फिर काल के पहिये के साथ बहुत कुछ परिवर्तन हो गया ।अन्ना मार गए ।पीपल के पेड़ वाला मकान छूट गया । हम लोगो की नोकरी लग गयी। शादी ब्याह हो गए सब अलग अलग हो गए ।अब काम से ही फुरसत नही मिलती थी बस कभी किसी फंक्शन में मिलते तो पुरानी बातें हुआ जरती थी ।ललित जी की भी शादी हो गयी वे अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए सब कभी कभी उनकी खबर मिलती रहती थी ।मुझे नही मालूम कि उनकी बीएससी पूरी हुई या नही ।हाँ उत्सुकुता जरूर बनी रहती थी ।एक दिन किसी उत्सव में जब हमारा परिवार मिला तो ललित जी की बात चल पड़ी ।बड्डा जी ने बताया कि ललित जी तो 2 महीने पहले मर गए सुनकर मै चोंका -क्या ?सहज विश्वास नही हुआ ।कैसे ?,अभी तो उनकी उम्र क्या थी ।बड्डा जी ने कहा -बीमात थे सो मर गए । मेरी आँखों के सामने वे सारे दृश्य किसी फिल्म की तरह घूम गए जो ललित जी के साथ गुजारे थे ।लेकिन क्या हो सकता है जो प्रभु की इच्छा ।मुझे बड़ा अफसोस हुआ शायद कई दिनों तक मेरे दिलो दिमाग ने ललित जी ही छाए रहे ।

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