छुट्टन की कमीज
छुट्टन की कमीज़
छुट्टन की नई कमीज को देख कर मोहल्ले के सारे बच्चे उसे ही देखने लगे ।लाल रंग की कमीज छुट्टन पर खूब जम रही थी थी ।छुट्टन भी उसे पहन कर खूब इतरा रहा था ।उस दिन खेल के मैदान में फुटबॉल से ज्यादा छुट्टन की कमीज पर ध्यान ज्यादा अटका रहा ।छुट्टन की लाल छींटदार कमीज हमारी आंखों के सामने तैरती रही ।
वो जमाना कुछ और था तब हर घर में पूरी फुटबॉल टीम होती थी ।दो घर मिल जाये तो हर दिन टूर्नामेन्ट खेला जा सकता था ।
छुट्टन और दिनेश जी हमारे पड़ोसी थे ।हमारे साथ ही स्कूल में पडते थे ।साथ साथ स्कूल जाना और साथ साथ ही खेलना कूदना हमारी रोज की दिन चर्या थी ।दिनेश जी बड़े थे और छुट्टन छोटा ।अब ज्यादा क्या कहूँ सब तले ऊपर बच्चे होते थे इसलिए आपस मे छोटे बड़े का भेद नही होता था खूब तू तडाक ही चलती थी ।
छुट्टन सबसे छोटा था और घर का लाडला शायद यही वजह थी कि उसका ज्यादा खयाल रखा जाता था ।छुट्टन की कमीज ईर्ष्या का विषय बन गयी ।हम लोग मध्य वर्ग के लोग थे ।कपड़ो पर ज्यादा ध्यान नही दिया जाता था।होली दिवाली ही नए कपड़े बनते थे।जुलाई में जब नई कक्षा में आते तो स्कूल की ड्रेस बनती बाकी तो बड़ो के कपड़े जो छोटे हो जाते छोटो को मरम्मत कर फिट कर दिए जाते थे । यह स्कूल की ड्रेस भी कमाल की होती ।फुटबोल खेलते समय जब दूसरे मोहल्ले के लड़के अपनी ड्रेस पहन कर मैच खेलने आ जाते तो हम लोग भी स्कूल के ड्रेस पहन कर आ जाते । बड़ा दिलचस्प नजारा होता ।सड़क से चलते लोग इकट्ठा हो जाते और मैच का मजा लेते।उस दिन हम बड़ा जोर लगा कर खेलते यदि जीत जाते तो लेमनचूस चूस कर जश्न मनाते।
छुट्टन सबसे छोटा था और घर का लाडला भी शायद यही वजह थी कि उसका ज्यादा खयाल रखा जाता था ।छुट्टन की लाल कमीज ईर्ष्या का विषय बन गयी ।हम लोग मध्य वर्ग के लोग थे ।कपड़ो पर ज्यादा ध्यान नही दिया जाता था।होली दिवाली ही नए कपड़े बनते थे।जुलाई में जब नई कक्षा में आते तो स्कूल की ड्रेस बनती बाकी तो बड़ो के कपड़े जो छोटे हो जाते छोटो को मरम्मत कर फिट कर दिए जाते । यह स्कूल की ड्रेस कमाल की होती ।फुटबोल खेलते समय जब दूसरे मोहल्ले के लड़के अपनी ड्रेस पहन कर मैच खेलने आ जाते तो हैम लोग भी स्कूल के ड्रेस पहन कर आ जाते । बड़ा दिलचस्प नजारा होता ।सड़क से चलते लोग इकट्ठा हो जाते और मैच का मजा लेते।उस दिन हम बड़ा जोर लगा जार खेलते यदि जीत जाते तो लेमनचूस चूस कर जश्न मनाते।
उस दिन भी हम खेल में जीते थे और हमेशा की तरह लेमनचूस खा रहे थे लेकिन उस दिन छुट्टन की लाल कमीज ही हमारे दिमाग मे छाई हुई थी ।
छुट्टन भी उस कमीज को खूब पहनता था ।जब देखो उसी को पहन कर इतराता था।हम भी उसे देख कर सौचते कि काश हमारे पास भी लाल कमीज होती ।कभी मन मे आता कि अम्मा से कहूँ -अम्मा हमे भी ऐसी कमीज दिलवा दो ।लेकिन पता था अम्मा बड़े प्यार से कहेगी .-हाँ क्यो नही शाम अन्ना को आने दो दिलवा दूंगी और फिर अन्ना एक सुंदर सी स्टोरी बना कर बोलेंगे -मेने चिट्टी डाल दी है बम्बई से आ जायेगी ।अब हम इतने बड़े तो हो नही गए थे कि कुछ सवाल करते ।बस रोज पूछते कमीज आ गयी क्या और हमे यही प्यारा सा जवाब मिलता रेल गाड़ी से आ रही है बस एक दो दिनों में । हम जानते थे कि अगर हम जिद करेंगे जमीन में लौटेंगे तो कपड़े गंदे होंगे फट भी जाएंगे तो फिर गाल पर करारा झापड़ पड़ेगा और अम्मा बोलेगी -तुझे लाल कमीज चाहिए ले तुझे ही लाल कर देती हूं । हमे पता थी कितने बार पिटे थे इसलिए अम्मा से कहा नही लेकिन दिन रात छुट्टन की लाल कमीज हमारे दिमाग मे छाई रहती थी यहाँ तक कि सपने मे भी लाल कमीज दिखाई देती थी ।
इतवार के दिन हम लोगो की स्कूल की छुट्टी होती थी ।उस दिन खूब चेन से सोते थे । खूब खेलते थे ।खूब खाना खाते थे । कोई नही जगाता था ।उस दिन भी इतवार था जब अचानक शोर मचा -ले गया ले गया ।हमारी आंखे खुली और हमने देखा हमारे आंगन में मोहल्ले के लोगो की भीड़ खड़ी है ।
पता चला छुट्टन की लाल कमीज बंदर उठा ले गया ।बंदर छत पर बैठा था और उसने छुट्टन की लाल कमीज कस कर अपने हाथों में पकड़ रखी थी ।छुट्टन की अम्मा चिल्ला रही थी और लोग तमाश देख रहे थे ।छुट्टन भी आ गया था और एक कोने में मायूस खड़ा था ।छुट्टन की अम्मा सबको बता रही थी कि आज कपड़े धो कर सुखाये थे कि पता नही कब चुपके से बंदर आया और ये कमीज उठा ले गया ।इस पर मोहल्ले के लोग भी क़िस्से सुनने लगे कि यह बंदर तो बहुत बदमाश है अक्सट ऐसा करता है ।बंदर बड़े मजे सर बैठा था भीड़ का जैसे कोई असर ही नही था लोग शोर मचा रहे थे और बंदर कमीज के साथ खिलवाड़ कर रहा था ।तब किसी ने कहा कि इसे रोटी डालो तो कमीज छोड़ देगा ।छुट्टन की अम्मा इस पर रोटी ले आयी ।लोगो ने रोटी बंदर के पास फ़ेंकी।बंदर ने रोटी की और देखा भी नही और कमीज से खेलता ही रहा।तब कुछ लड़कों ने कहा कि चलो इसे लट्ठ दिखाते है आखिर कहां जाएगा ।स पर बड़े लोगो ने कहा मूर्ख पने की बात मत करो यह बंदर है ।कूद फांद कर कहीं भी चला जायेगा नही तो पीपल के पेड़ पर चढ़ जाएगा कहाँ उसके पीछे जाओगे ।इसलिए अक्ल से काम लो ।लोग दिमाग लगाने में लग गए ।थोड़ी देर में किसी ने कहा इसे गुड़ पसंद है इसे गुड़ डालो ।छुट्टन की अम्मा गुड़ के लड्डू ले आयी ।लड्डू बंदर की और फेंके गए ।बंदर ने लड्डू देखे लोगो को लगा कि अब बंदर कमीज छोड़ देगा और लड्डू लेक्ट चला जायेगा।लेकिन ये क्या बंदर ने तो कमीज के बटन दांतो से चबाने शुरू कर दिए ।छुट्टन का चेहरा उत्तर गया ।ब नदर
बंदर यही नही रुक सारे बटन तोड़ने के बाद उसने कमीज को फाड़ना शुरू कर दिया ।लोग चिल्लाने लगें ।छुट्टन का कलेजा मुह को आगया ।तभी अचानक बंदत ने कमीज नीचे फेंक दी और लड्डू रोटी लेकर चल गया ।छुट्टन की अम्मा ने कमीज उठा ली भीड़ चारो तरफ से उनके इर्द गिर्द जमा हो गयी ।बंदर ने सारे बटन तोड़ दिए थे और कमीज भी दो तीन जगह से फाड़ दी थी ।छुट्टन की अम्मा कमीज लेकर अंदर चली गयी तो छुट्टन भी रुआंसा होकर चला गया तमासा खत्म हो गया था इसलिए मोहल्ले के लोग भी चले गए ।
उस दिन शाम को छुट्टन खेलने नही आया ।दूसरे दिन सवेरे स्कूल जाते समय भी उदास रहा।शाम हमारा दूसरे मोहल्ले के बच्चो के साथ मैच था ।छुट्टन के बिना टीम पूरी नही हो रही थी ।हमारे टीम के कप्तान बुध्धु ने कहा की जाओ छुट्टन को ले आओ ।हम लोग छुट्टन को लेने गए ।छुट्टन को आवाज दी तो छुट्टन आ गया ।छुट्टन आया तो हम लोग दंग राह गए ।छुट्टन ने वही लाल रंग की कमीज पहन रखी थी ।छुट्टन की अम्मा ने इतनी सफाई से रफू और सिलाई कर दी कि पता ही नही चलता था कि इसे बंदर ने फाड़ा था
उस दिन छुट्टन खूब खेला हमारी टीम जीत गयी थी तो हम सब मिलकर लेम्सनचुस चूस रहे थे तो छुट्टन की लाल कमीज के साथ उसकी अम्मा की भी तारीफ कर रहे थे ।छुट्टन की अम्म्स इतनी होशियार है ।अपनी अम्मा की तारीफ सुन कर छुट्टन फूलकर कुप्पा हो रहा था और बार बात अपनी कमीज को देखकत खुश हो रहा था

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