सब्जी की ठेल पर
काफी देर से सब्जी की ठेल पर खड़ा सब्जियों के दाम पूछ रहा था। सब्जिया इतनी महँगी थी कि बार बार अपनी जेब टटोलनी पढ़ रही थी। सब्जीवाला इस पर झल्ला गया और बोला --भाई साहब दाम ही पूछते रहोगे या सब्जी भी खरीदोगे। मै उसकी झल्लाहट को समझ गया मैने बड़ी शांति के साथ कहा - भाई दाम को तो देखो आसमान पर जा रही है जरा हिसाब किताब तो मिलाने दो। मेरी बात पर वो मुस्कुरा दिया। शायद वो भी महँगाई की मार से त्रस्त था। बोला-- ठीक है बनाओ अपना हिसाब किताब। मै अपने हिसाब किताब मे लग गया। आपको बता दू मै एक प्राइवेट कपनी मे बाबू हूँ । आप समझ रहे है कि मै क्या कह रहा हूँ । जी हां मै पप्राइवेट कपंनी मे बाबू हूँ और मुझे इतनी पगार नहीं मिलती कि महीना भर भी खीच सकूँ । .लिहाजा उधार लेना पड़ता है। सोच सोच कर खर्चा करना पड़ता है। अब महीने का आखिरी चल रहा है और जेब लगभग खाली सी है उस पर आसमान छूती सब्जियां। कभी दाम देखता हु तो कभी अपनी जेब। तय नहीं कर पाता हूँ कि कोन सी सब्जी लूँ । अगर सरकारी बाबु होता तो ऊपर झापर की आमदनी से ही सारे एश केश हो जाते। तनखा निकालने की जरुरत ही नहीं पड़ती। मगर यहॉ तो प्राइवेट कपनी की नोकरी थी जहॉं सर पर हमेशा नंगी तलवार लटकी रहती थी। न जाने कब लाला कह दे -- जाओ अपना हिसाब कर लो कल से छुट्टी।.मेरा विचार चल ही रहा था कि एक आवाज ने मुझे चोंका दिया। एक आदमी कह रहा था - सुन यह चार पांच सब्जिया एक एक किलो तोल कर रखो। .मैने उस आदमी को देखा। अच्छा खासा हत्ता कट्टा आदमी था। उसके चेहरे पर मक्कारी थी..। बड़े बेफिक्र होकर आदेश दे रहा था। मानो उसे दामो की कोई फ़िक्र नहीं थी।मुझे उस आदमी से जलन होने लगी। कहाँ सौ ग्राम सब्जी के लिये मै घंटो सोच रहा था वहीँ वो झटपट पांच किलो सब्जी ले गया। सब्जीवाले ने सब्जी तोल कर दे दी.। वो आदमी सब्जी लेकर चला गया तो सब्जीवाला बड़बड़ाने लगा। सच्ची बात कह दूँ तो लगभग गाली देने लगा। मै फिर चोंका। मैने सब्जीवाले से कहा --भाई वो तो इतनी सारी सब्जी ले गया और तुम गाली दे रहे हो । उसने तो तुम्हारा फ़ायदा कराया है .सब्जीवाले ने मुझे घूर कर एसे देखा मानो मै कोई अजूबा हूँ। बोला--इसे जानते हो। यह चौकी का आदमी है। फ़ोकट मे सारी सब्जी ले गया है। मैने कहा --तो पैसे क्यों नहीं माँगे। सब्जीवाले ने कहा ---ठेल बंद करवानी है क्या। मैने कहा --क्यों । उसने कहा.जिस दिन पैसे मांगूगा उस दिन ही ठेल पलट दी जायेगी और इतने डंडे पड़ेगे की दवा के पैसे भी नहीं होंगे। बच्चे भूखे मरेंगे सो अलग। आपको क्या पता हम कैसे जीते है । वह बोलता ही गया --भाई साहब हम रोज कुआँ ख़ोद पानी पीने वाले लोग है। गरीब है। हमारे भी बच्चे है उनका भी पेट पालना है और हमारे भी सपने है एक दिन ठेल बंद हो जाये तो खाने के लाले पड़ जाते है। आप हमसे कैसे उम्मीद करते है कि हम इस भ्रष्ट तंत्र से मुकाबला करे । कोन साथ देगा हमारा ? मैने कहा --अकेली नहीं लड़ सकते तो यूनियन बना कर लड़ो। .उसने कहा ---भाई साहब वो भी कर के देख लिया। परिणाम तो वही रहा बाकी नेताजी का खर्चा और बद गया। अब उन्हे भी फ़ोकट मे सब्जी चाहिये। मैने फिर कहा --कठिनायों से हार नहीं माननी चाहिये संघर्ष करते रहना चाहिये । मैरी बात सुनकर उसके चहरे पर क्रोध आया लेकिन दूसरे ही पल वो निराश हो गया। उसके चेहरे पर दर्द उभर आया। बोला--- भाई साहब रहने दो इन बातो को अब धंधे का टाइम है,धंधा करने दो। .मै .समझ गया की इससे बात करना बेकार है.। इसने भ्रष्ट तंत्र के सामने घुटने टेक दिये है और खुद को इस हालात मे ढ़ाल लिया है । लिहाजा मैने अपनी सब्जी ली और थैला साइकिल मे टाँगा । साइकिल मे सवार होने के लिये ज्यो ही तैयार हुआ तभी मेरी दृष्टि सामने लगे एक पोस्टर पर पड़ी। पोस्टर काफी पुराना था और अधिकांश फटा हुआ था। मगर उस पर लिखा स्लोगन साफ़ नजर आ रहा था। जिस पर लिखा था --अच्छे दिन आ ये गे - । मुझे लगा जैसे कोई मेरा मुँह चिढा रहा हो ।

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