तुत्ता तत्ती खाता ए

हमारे मोहल्ले के सारे  बच्चे एक ही स्कूल मे  पढ़ा   करते थे। उस समय कुकुरमुत्ते की तरह स्कूल नहीं हुआ करते थे। नीली कमीज और खाकी नेकर  यही होती थी हमारी ड्रेस। स्कूल  के वक्त मोहल्ले के बच्चे टोल बना कर निकला करते थे। उस समय परिवार नियोजन जैसी कोई बात नहीं थी। हर घर मे  आधा दर्जन बच्चे होना  साधारण बात थी। जब टोल निकलता तो एसा  लगता मानो  जुलुस निकल रहा हो। सब बच्चे पैदल ही जाते थे। कोई दूर   नहीं था। स्कूल लगभग पांच किलोमीटर दूर था  और हम सब उछलते कूदते आराम से चले जाते थे। स्कूल जाने के लिये हमे शहर  की मुख्य सड़क से जाना होता था। तब इतना ट्रैफिक नहीं था। यदा कदा  कोई तांगा  या इक्का निकल जाता था। पास ही एक चौराहा था। चौराहे पर घडिया लगी हुई थी इसलिये उसे घडी वाला चौराहा कहा जाता था। यह बात  अलग है की उसकी घडिया  अलग अलग समय बताया कराती थी। चौराहे के पास ही एक कॉलेज था वह किसी एतिहासिक ईमारत जैसा था। लाल पथरो से बानी ईमारत बहुत सुन्दर और भव्य थी। लोग बताते की इसे अंग्रजो ने बनवाया था । ईमारत के आगे खूब बड़ा खेल  का मैदान था। हमारा मोहल्ला भी किसी मुग़ल सरदार की जागीर थी जिसमे गलियां  ही गलिया थी और मोहल्ले के बाहर  खुले हुए मैदान। हम  लोग स्कूल जाने के लिये शॉर्टकट का ही इस्तेमाल करते थे। चौराहा पर कर कालेज परिसर मे  घुस जाते और फिर उसकी दीवार  फलांग कर रेलवे स्टेशन पर आ जाते। बस पटरी के सहारे चल कर स्कूल पहुंच जाते। उस  समय कोई पाबन्दी नहीं होती थी लोग बड़े आराम से प्लेटफॉर्म पर घूमते रहते थे। हमारा स्कूल एक पुराना  राजमहल था  जिसे  राजाओ ने स्कूल को सोप दिया था। इसका विशाल परिसर देखने लायक था। इसका मुख्य दरवाज भव्य और शामदार था। मुख्या दरवाजे से महल तक पहुंचने के लिये पत्थरो  की सड़क बनी  हुई थी। चारों तरफ अनगिनत पेड़ थे। खूब बड़े बड़े और पुराने । पीपल नीम  आम अमरुद और इमली के  पेड़ बहुतायत मे थे।  बेर की झाडिया भी खूब थी जिसके बेर हमे आकर्षित करते थे। स्कूल परिसर मे  कुछ अंधेरी कोठरी बनी हुई थी जहा जाने की मनाही  थी। हम से कह दिया गया कि वहां भूत रहते है इसलिये हम डर  के मारे वहां नहीं जाते थे।  हम लोग अक्सर खाली  समय मे इमली के पेड़ के नीचे ज्यादा घूमते थे  वहाँ  हमे खूब इमली मिल जाती थी जिन्हे  हम बस्तो मे भर लिया करते थे लेकिन  हमे लाल इमली की तलाश होती जिसे हम खुनी इमली कहते थे। अगर किसी दिन  मिल जाती   तो बड़े खुश हो जाते। कभी कभी हम तोतो से आग्रह करते की हमे खुनी इमली दे  दो और अगर संयोग से तोता इमली फेकता तो फिर कहना क्या। इंटरवेल मे  एक चूरन वाला आता था वह चूरन मे  आग लगा कर देता था। सारे  बच्चे आग वाली चूरन खाने को इकठ्ठा हो जाते और वो जल्दी जल्दी सबको चूरन  देता अगर किसी बच्चे के पास पैसे नहीं होते तो भी वो चूरन दे  देता था। हम लोग पुड़िया लेते और उसे एक पैसा दे  देते और फिर चूरन चाटते रहते।   स्कूल के  हमारे हेड मासटर साहब मोटे थे इसलिये हम उन्हे मोटा  मास्साब कहते थे। वे नोचते ज्यादा थे। नोचने मे उन्हे महारथ हासिल थी। बड़ा दर्द होता कायँ करके रह जाते  । हम अम्मा से भी नहीं कह सकते थे। तब माँ बाप स्कूल मे बच्चो की भर्ती कराकर मास्टरों से कह देते की अब बच्चा तुम्हारे हवाले जो चाहे सो करो। सो हम बड़े ही सावधान रहते कि  मास्साब को नोचने का मौका न मिले। एक और मास्टर थे उन्हे गाने का शोक था। हर दिन कोई मौका निकाल  के गाना  सुना देते। इसमे कोई संदेह नहीं था कि वे गाना बहुत अच्छा गाते थे। उस समय का एक लोकप्रिय गाना था -चल उड़ जा रे पंछी -वे अक्सर यही सुनाते  थे सो हमने उनके नाम  के आगे पंछी जोड़ दिया  यानि पंछी मास्साब।उन्हे भी यह नाम पसंद आया और वे पुरन  सिंह से पूरन पंछी हो गये।  एक और मास्टर थे जिन्हे कहानी सुनने का शोक था। एक बार छुट्टियों  के बाद उन्होने पूछा -छुट्टियों मे कोन कहाँ कहाँ  गया था ?बच्चो नेअपनी समझ से  जवाब दिया -  नानी के यहाँ  तो किसी ने  कहा दादी के  यहाँ तो किसी ने कहा मामा  के यहाँ तब उन्होने बताया की इस बार वो पहाड़ो पर गये थे और गाँधी जी से सुभाष  चंद्र बोस से मिले थे। हमे बड़ा आश्चर्य हुआ। एक तो हम लोगो के पास तर्क शक्ति नहीं थी दूसरा मास्साब तो झूठ  बोल नहीं सकते है। हम  लोग काफी दिनों तक इस सोच मे डूबे  रहे की वो कोन  सा पहाड़ है जहां मरे हुए लोग मिल जाते है। क्या हमारे बाबा भी वहाँ  होंगे  ?क्या हम भी वहां जाकर उनसे मिल पायेगे। मन मे एक इच्छा सी जाग उठीऔर हम इसकी कल्पना ही करते रहे।  एक और मास्टर थे जिन्हे हम संटी  मास्साब कहते थे। वे हमेश अपने साथ संटी रखते थे और क्लास मे  घुसते ही चला दिया करते थे लिहाजा आगे बैठने वाले बच्चो की चीख  निकल जाती। जब बार बार यह होने  लगा तो बच्चो ने आगे बैठना बंद कर दिया।  एक दिन उन्होने आँख बंद कर जब  संटी चलायी तो उन्हे शून्यता दिखाई दी जब आँख खोल कर देखा तो पता चला की सारे  बच्चे तो पिछली सीट पर  घुस मुस कर बैठे है  .उन्होने पूछा -अरे सब लोग पीछे क्यों। तब एक बच्चे ने हिम्मत कर कहा -मास्साब वहाँ संटी  पड़ती है। मास्टर साहब इस जवाब को सुनकर द्रवित हो गये और उसी समय सन्टी तोड़कर फेक दी और कहा वादा करता हूँ अब कभी नहीं मारूंगा। सचमुच उन्होने इस बात का पालन किया।और कभी किसी को नहीं मारा।  हमारे क्लास मे  एक बच्चा पड़ता था। नाम था लोटन। एक दम काला कलूटा और गोलमोल। बड़ा ही भोला भाला और चुपचाप रहने वाला। एक दिन हिंदी की क्लास मे कुत्ते का पाठ पढ़ाया जा रहा था। मास्साब ने  पढ़ाते  पढ़ाते पूछा - बच्चो यह  बताओ कुत्ता खाता क्या है। जवाब में लोटन ने सबसे पहले हाथ उठाया। सबको बड़ा आशचर्य हुआ। मास्टर साहब को भी।क्यों कि लोटन हमेश बुद्दू बन कर बैठा रहता था। शायद इसीलिये उन्होने  कहा -हाँ लोटन तुम बताओ कुत्ता क्या खाता है। लोटन उठा और बोला -मत्ताब  तु त्ता  तत्ती  तो  ताता ए। लोटन का जवाब सुन सारी  क्लास हँस  पड़ी और  मास्साब ने सर ठोक  लिया। आज इस बात को साठ साल  हो गये लेकिन लगता  है जैसे कल की बात  हो। आज भी स्कूल वैसा ही है। ड्रेस भी वही है खाकी नेकर  नीली कमीज। लेकिन अब बच्चे  टोल बनाकर शॉर्टकट से नहीं जाते। शहर की सडको पर वाहन धुआँ उगलते दौड़ लगाते है। माँ बाप को किसी पर भरोसा नहीं रहा। घडी वाले चौराहे से घडी गायब हो चुकी है और अब प्लेटफॉर्म पर तमाम पाबन्दी लग चुकी है। कभी मै  स्कूल के पास से गुजरता हूँ तो थोड़ी देर  वहाँ  जरूर रुकता हूँ। मुख्य दरवाजे से अपने स्कूल को देखता हूँ। अभी भी स्कूल वैसा ही है लैकिन अब वहाँ आग लगा कर चूरन बेचने वाला नहीं आता। बच्चे भी खुनी इमली से दूर रहते है । भूतो वाली कोठरी मे लोग रहने लगे थे। मै वहां खड़ा स्कूल विशाल परिसर को देखता हूँ  और फिर चुपचाप गाड़ी मे  आकर बैठ जाता। तभी अचानक पीछे से आवाज आती है -मत्ताब  तु त्ता तो  तत्ती   ताता ए। मेरे चेहरे पर मुसकान आ जाती  और मै  बोल उठता -अरे यह तो लोटन की आवाज है। .गाड़ी चलाता  मेरा बेटा पूछता -पापा क्या हुआ ? मै  कहता कुछ नहीं बस बचपन  की बात  याद आ गयी।

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