रेलगाड़ी का। शौक

रेलगाड़ी देखने का शोक तो मुझे भी था लेकिन इतना नही जितना बड्डा जी को था ।जब सामने रेल आ जाती थी तो हम उसे देखे बिना नही जाते थे ।हमारा घर स्टेशन से ज्यादा दूर नही था ।रात दिन रेल की सीटी और धड़धड़ाते हुए पहियों की आवाज हमे रोमांचित करती थी ।हमारे लिए तो साधारण बात थी लेकिन बड्डा जी रेल की सीटी और धड़धड़ाते पहियों को सुनकर अंदाज लगते थे कि कोन  सी गाड़ी निकल रही है । बात बचपन की है ।बड्डा जी को रेल से मोहब्बत थी तो मुझे हथौड़ी से । बड्डा जी को जहां रेल की सीटी और पहियों की गड़गड़ाहट अच्छी लगती थी तो मुझे कील ठोकना और हथौड़ी की ठक ठकाहट ।शायद इसीलिए कभी कभी अन्ना कहते थे कि बड्डा तो गार्ड बाबू बनेगा और छंगू तो इंजीनियर ।लेकिन ऐसा नही हुआ ।आगे चलकर में तो मिस्त्री बन गया और बड्डा जी सर्वेयर ।मेरी जिंदगी में हथौड़ी आयी तो बड्डा जी  के भाग में यात्राएं ।खेर यह तो बाद कि बाते है चलिए फिर लौटते है अपने बचपन में  ।
   यही कोई साठ साल पहले कि बाते है ।हम लोग जिस स्कूल में पढते थे वो हमारे घर से 5किलो मीटर दूर था ।सारे मोहल्ले के बच्चे उसी स्कूल में पढते थे ।दिनेश जी और छुट्टन हमारे पड़ोसी और अच्छे मित्र थे ।हम लोग टोल बना कर जाया करते थे ।स्कूल जाने के लिए अक्सर शार्ट कट अपनाया करते थे  ।हमारा घर मोहल्ले के किनारे पर था । पास में चौराहा जो घड़ी वाला चौराहा कहलाता था उसके पास ही सेन्टजॉन्स कॉलेज की फील्ड थी और उससे सटी हुए राजामंडी स्टेशन का प्लेटफॉर्म था ।प्लेटफॉर्म पर पहुँचने के लिए एक छोटी दीवार चढनी होती थी सो हैम लोगो ने इसकी भी जुगाड़ कर ली थी ।उस जमाने में प्लेटफॉर्म पर घुमने की आजादी थी ।आने जाने की पूरी छूट थी लोग आराम से प्लेटफॉर्म पर घूमा करते और बेंच पर बैठ कर समय गुजारा करते ।हम लोगो ने इसे आम रासता बना रखा था ।यहां से गुजरते हुए यदि कोई रेलगाड़ी आ जाती तो उसे गुजरने तक खड़े रहते भले ही देर हो जाये ।इसके बाद मदिया कटरा पहुच खेलटे कुदते स्कूल पहुँच जाते और ऐसा ही स्कूल कि छुट्टी होने पर वापिसी में करते ।
    हमारे घर का आंगन विशाल था ।उसे आप एक  छोटा मोटा मैदान ही कह सकते है ।एक तरफ बरसो पुराना पीपल का पेड़ था उसके आगे गूलर का पेड़ था ।बगल में ऊंचा टीला था  जिसमे गिलोई की बेल लटकी रहती थी ।सामने वैश्य होस्टल का खेल का मैदान था ।जिसमे अक्सर मोहल्ले के बच्चे खेला करते थे ।शाम होते ही मोहल्ले के लड़के इकठ्ठे हो जाते और मौसम के हिसाब से कभी फुटबाल तो कभी क्रिकेट खेला करते ।ऐसा नही था कि बस यही खेल हुआ करते थे ।जब फुटबॉल फट जाती या क्रिकेट की गेंद खो जाती  तो हम गिल्ली डंडे पर आ जाते ।जब पेड़ पर  चढ़ना सीख गए तो लपक डंडा खेलने लगे ।ऐसा भी हुआ करता कि जब घर में इमली आती तो उस्के बीज जिसे हम चियाँ कहते थे को फोड़ कर चक्खन पौ भी  खेला करते ।कंचे भी खूब खेले ।थोड़ा बड़े हुए तो अपने से बड़े लोगो की चिरौरी कर टूटी चिड़िया से बैडमिंटन भी खेल लिया करते थे     ।
   मोहल्ल्ले की लडकियो के अलग खेल होते थे ।वे अक्सर झुंड बना कर कोई खेल खेलती या फिर रस्सी कूदती ।हैम लोग भी कभी कभी रस्सी कूदते और रिकॉर्ड बनाने की होड़ लगते ।लड़कियां अकसर ...गुट्टक..खेलती ।हैम लोगो को भी अच्छा लगता और हैम लोग भी अलग से खेलते ।यह सारी हलचल अंधेरा होने तक चलता और फिर घर से आवाजे आना शुरू हो जाती।घर मे चूल्हे जलने लगते और सब्जियों की छोंक हमारी भूख बढ़ाने लगती ।अम्मा आवाज लगाती -छन्नू जरा कोयला तोड़ दे । और मै अपनी प्रिय हथौड़ी लेकर कोयला तोड़ने में लग जाता तो बड्डा जी अपनी प्रिय पोथी रेलवे टाइम टेबिल लेकर बैठ जाते ।
  बड्डा जी पर रेलगाड़ी का जुनून सवार था और यह कभी कम नही हुआ ।एक दिन जब हम राजामंडी की छोटी लाइन के प्लेटफार्म से सेंट जोन्स के मैदान में जाने के लिए दिवाल  फाँद रहे थे तो रेल की सीटी सुनाई दी ।बड्डा जी बोले कोई गाड़ी आ रही है इसे देखेंगे ।उस दिन छुट्टन स्कूल नही गया था ।हम तीन लोग ही थे ।रेलगाड़ी प्लेटफॉर्म पर आ गयी थी ।बड्डा जी बोले -यह ट्रेन आगरा कैंट जाएगी चलो इसमे बैठ कर चलते है वहां से दूसरी गाड़ी से वापस आ जाएंगे ।मै हिचकिचाया  लेकिन बड्डा जी और दिनेश जी डिब्बे में बैठ गए ।में घबरा गया मेने इनसे उतरने को कहा ।तभी इंजन ने सीटी मारी और  सरकने लगी ।मेँ जोरो से चिल्लाया ।पता नही क्या हुआ मगर दिनेश जी चलती ट्रेन से उतर गए और बड्डा जी ट्रेन में चले गए ।मै तो बुरी तरह डर गया और फिर तेजी से दिवात फलांग कर दौड़ाता हुआ घर पहुंचा।मेरी हालत देख अम्मा अन्ना घबरा गए ।मेने सारी बात बताई और कहा- कह रहे थे कि  आगरा कैंट से दूसरी ट्रेन से वापिस आऊंगा ।अन्ना ने बैजू को बुलाया जो अन्ना की कंपनी में काम करता था और कहा केंट जाओ और उसे लेकर आओ ।बैजू ने  मुझे सायकिल पर बैठाया और साइकिल दौड़ा दी ।थोड़ी देर बाद हैम लोग आगरा कैंट में थे और बड्डा जी एक डिब्बे में बैठे दिखाई दे गए ।बैजू ने बड़े प्यार से उन्हें गोदी में उठाया और फिर हम लोग सायकिल से वापिस घर लौट रहे थे ।
       बड्डा जी को सकुशल देख अम्मा अन्ना की जान वापिस आयी और .....

यह घटना बहुत पुरानी है मुझे याद नही की बाद में क्या हुआ  बड्डा जी को कोई सजा मिली या डांट पड़ी ।लेकिन इसके बाद मुझे कोई ऐसी घटना की जानकारी नही है।
बड्डा जी अब सत्तर साल के हो गए लेकिन रेलगाड़ी का जुनून अभी भी बना हुआ है ।आज भी कभी जब रेलयात्रा की बात  चलती है तो उनकी आंखें चमक उठती है और फिर वे रेल और रेल यात्त्रा के बारे में जोर शोर से चर्चा मे मशगुल हो जाते है । आज भी रेलवे टाइम टेबिल उनके लिए पोथी समान ही है जिसका परायण वे नियमित रूप से करते हैं

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