द्वारका प्रसाद महेश्वरी एक याद


श्री द्वारका प्रसाद महेश्वरी को मैं बस इतना ही जानता था की मैंने बचपन में उनकी एक कविता पड़ी थी जो यूपी बोर्ड के स्कूलों में पढ़ाई जाती थी। कविता थी.... सूरज निकला चिड़िया बोली कलियों ने भी आंखें खोली। यह कविता इतनी सरल थी कि सहज याद हो गई और आज तक कंटस्था है। तब मेरे मन में महेश्वरी जी के प्रति उत्सुकता पैदा हो गई थी कि महेश्वरी जी कैसे हैं देखने में कैसे लगते हैं कैसा बोलते हैं कैसा चलते है आदि आदि। कई वर्षों बाद जब मैं हिंदी संस्थान की सेवा में आया तो यह उत्सुकता बनी हुई थी। विभाग में इसकी अक्सर चर्चा हुआ करती थी विभाग के सभी लोग यूपी बोर्ड के स्कूलों में पड़े थे इसलिए इस कविता के बारे में अच्छी तरह जानते थे। 
  एक दिन विभाग की डॉक्टर वाशनी शर्मा ने बताया कि महेश्वरी जी संस्थान में आए हुए हैं। उन दिनों संस्थान में बाल कविताओं पर कोई संगोष्ठी चल रही थी । यह सुनकर हमारी उत्सुकता और ज्यादा बढ़ गई ।वाशनी शर्मा ने कहा की मैं उनको लेकर विभाग में आऊंगी और एक दिन जब वे विभाग में आए तो हम सब उनसे मिलने और देखने पहुंच गए ।उन्हें देखकर हमें बड़ा अच्छा लगा। वह इतने सरल और इतने मिलनसार व्यक्ति थे जिसकी उम्मीद हमें नहीं थी। बातों का सिलसिला जारी हुआ और देखते ही देखते हैं हम उनसे बहुत अच्छी तरह घुल मिल गए ।उनकी सादगी और उनके बाल सुलभ बातों ने हमें उनका प्रशंसक बना दिया।
 उन दिनों हमें वीडियो फिल्म बनाने का जुनून सवार था और हम इस दिशा में कार्य कर रहे थे। हमने उनके सामने बातों ही बातों में प्रस्ताव रखा यदि आपकी अनुमति हो तो हम आप पर कुछ वीडियो तैयार करें ।उन्होंने तुरंत ही सहमति दे दी और बड़े प्रसन्न हुए और कहा विजय जी आपका स्वागत है मैं आपके साथ पूरा सहयोग करूंगा। यह सुनकर हम लोग बहुत प्रसन्न हुए और कुछ दिनों बाद ही मैं डॉक्टर विजेंद्र सिंह उनके घर पहुंच गए।
    बातचीत उनके कमरे में आरंभ हुई उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया चाय पिलाई और फिर बातचीत करने लगे। उनके कमरे में चारों तरफ शीशे की अलमारियों में बड़ी खूबसूरती से कितबे लगी हुई थी ।कोने में एक टेबल थी जिसमें बैठकर वह अपनी रचना संसार का निर्माण करते थे। दो चार कुर्सियां थी और एक तख्ता जिस पर वह आराम क्या करते थे। मुझे कोने में एक हारमोनियम दिखाई दिया मैंने जब इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि मुझे संगीत से बहुत प्यार है। वह हारमोनियम खूब अच्छा मजा लेते थे और गीत भी गाया करते थे ।उन्होंने हमें अपनी एक रचना गाकर सुनाई जिसे सुनकर हम लोगों को बड़ा अच्छा लगा और हम लोगों ने निर्णय किया की शूटिंग के दौरान इसको भी रिकॉर्ड करेंगे।
  हम उनके साथ लगभग 19 - 20 दिन तक लगातार कार्य करते रहे। आरंभ में हम सिर्फ उनसे बातचीत करते रहे उनके जीवन के बारे में उनकी रचना संसार के बारे में और उनकी विचारों के संबंध में ।हमारे मित्र और सहयोगी डॉ विजेंद्र सिंह की यह जिम्मेदारी थी कि वह उनकी जीवन विचार और उनके सहित्य संसार के बारे में सारी बातें तैयार करें।
 शूटिंग के दौरान हम लोगों ने उनका एक लंबा साक्षात्कार लेने का निर्णय लिया। इसके लिए हमने 40 सवाल तैयार किए और इन सवालों को उनको दे दिया और कहा आप इसका जवाब तैयार कर ले ।हमें तब बड़ा आश्चर्य हुआ कि जब हमने उनका साक्षात्कार रिकॉर्ड किया तब तक उन सवालों को लेकर उन्होंने एक पूरी पुस्तक लिख डाली और जब शूटिंग समाप्त करके हम अपनी वापसी कर रहे थे तो पुस्तक प्रकाशित होकर आ चुकी थी । हमें उनकी तत्परता देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ ।तब उनकी उम्र लगभग 80 वर्ष की हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि उन्हें यह सवाल बहुत पसंद आए और लगा किसका जवाब भी उन्हें देना चाहिए ।हमने उनकी बाल कविताओं को भी रिकॉर्ड किया ताकि यह दुर्लभ सामग्री के रूप में उपस्थित हो सके। एक दिन जब हम शूटिंग का कार्य कर रहे थे तो उनके कुछ कवि मित्र आए जो बातों के सिलसिले मे अपनी कविताएं उन्हें सुना रहे थे ।हमें यह देख कर लगा कि हमें यह भी रिकॉर्ड कर लेना चाहिए। हमने उन से अनुरोध किया की हमें इसे रिकॉर्ड करने दिया जाए। वाह मान गए और तब हमने एक छोटी सी काव्य संगोष्ठी भी रिकॉर्ड कर ली ।
अब यह सारी रिकॉर्डिंग हमारे लिए महत्वपूर्ण और दुर्लभ भी है ।माहेश्वरी जी ने हमसे यह भी कहा कि मैंने अपनी सेवा में कई कवियों पर फिल्में बनाई है लेकिन मेरे ऊपर फिल्म बनाने की बात आपने ही की है। यह लगभग 22 साल पुरानी बात है और आज भी मैं इसे याद करता हूं तो माहेश्वरी जी का व्यक्तित्व और सरल स्वभाव हमारे सामने आ जाता है ।इतना सरल व्यक्ति मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखा। इस कार्य में मेरे मित्र शैलेश कुमार ने बहुत बड़ा सहयोग दिया ।डॉ विजेंद्र सिंह जी जान से इस कार्य में लगे रहे ।आज जब मैं उनकी उस वीडियो को देख रहा था तो मुझे वह पुराने दिन याद आ गई और मैं सोचने लगा की यह मेरा सौभाग्य था कि मुझे उनसे बातचीत करने और उनकी रिकॉर्डिंग करने का मौका मिला। 
 महेश्वरी जी को राष्ट्रपति सम्मान से भी विभूषित किया गया था। उनकी रचनाएं स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। ऐसे व्यक्तित्व और महान आत्मा को आज मेरा प्रणाम।

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