स्मृतियां बिजेंद्र सिंह

वे मेरे मित्र थे। मेरा अक्सर उनके साथ उठना बैठना होता था ।25-30 साल के जों संबंध थे । उनके साथ मेरी पारिवारिक संबंध भी बन गए थे। मैं यदा-कदा उनके घर जाता रहता था। वह हमेशा मुझे अपने दरवाजे पर मुस्कुराते हुए दिखा करते ।मुझे देखते ही बोलते-  आओ भाई साहब आओ । फिर हम लोग उनके कमरे में बैठते हैं और घंटों चर्चा किया करते ।हमारे बीच में  अनेक विषयों पर चर्चा होती । साहित्य की चर्चा होती तो धर्म की चर्चा भी होती कभी अपने किस्से कहानी सुनाते  तो कभी संस्थान की बातें होती ।पता ही नहीं चलता वक्त कब बीत गया। फिर उनके शिलांग स्थानांतरण होने के बाद भी यह चर्चा चलती रही। मेरी उनसे लगभग हर रोज मोबाइल से व्हाट्सएप से या मैसेंजर से बातचीत होती रहती थी। वे अपनी रचनाएं वीडियो और अपने संस्मरण मुझे भेजा करते थे। उन के माध्यम से मैंने पूर्वोत्तर भारत की अनेक तस्वीरें देखी । उनके आग्रह पर मैं शिलांग भी गया और आइजोल में भी काफी वक्त गुजारा ।वह गजब की ऊर्जावान व्यक्ति थे ।बड़े ही मिलनसार और सहायता करने वाले व्यक्ति थे ।उनके साथ वक्त बिताना मुझे हमेशा अच्छा लगा ।मैंने उनके साथ अनेक योजनाओं पर कार्य किया ।हम लोगों ने कई वृत्तचित्र बनाए जिसमें उनका अभूतपूर्व योगदान रहा। वे हमेशा अपने साथियों को प्रोत्साहन देते रहते थे। लेकिन शिलांग से वापस आने पर हम लोगों के बीच चर्चा के  विषय केवल डायबिटीज और किडनी पर सिमट गए थे ।वे  अपनी बीमारी से परेशान थे और जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण भी बदल गया था। उन्होंने एलोपैथिक होम्योपैथी आयुर्वेदिक  सभी की दवाइयों का उपयोग किया और विशेषज्ञ डॉक्टरों को भी दिखाया ।यहां तक झोलाछाप के पास भी गए। जिसने जैसा भी कहा उन्होंने वैसा ही किया। मुझे याद है हम लोग भीलवाड़ा भी गए थे   जहां के नवग्रह आश्रम का  काफी नाम सुना था ।जहां दवा के साथ वैद्य जी   ने जमकर अपना ज्ञान पेला था ।लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं निकला और यह कहावत सत्य सिद्ध हो गई ज्यों ज्यों  दवा की मर्ज बढ़ता  ही चला गया। आखिरकार वे डायलिसिस पर चले गए। पिछले 1 साल से  वे डायलिसिस पर थे । वे जीना  चाहते थे। अक्सर कहा करते थे कि  सेवानिवृत्ति ठीक-ठाक हो जाए तो मैं गंगा नहा लूं। 
करोना काल के चलते मेरा  अब उनके घर आना जाना नहीं होता था। टेलीफोन से अक्सर बातचीत हो जाया करती थी ।लेकिन धीरे धीरे यह संपर्क में खत्म हो गया ।अब ना तो वो टेलीफोन करते थे और ना ही मेरा टेलीफोन उठाते थे। मै परेशान था और अक्सर उनके बच्चे को फोन करके कहा करता था मुझे उनका हाल बताते रहा करो ।बच्चे कहते  पापा जी को  होश नहीं रहता। क्या हो रहा है क्या करना है वे  तो बस लेटे रहते हैं और ना जाने क्या सोचते रहते हैं ।अब उन्हें किसी से मोह नहीं रहा है । 
   मैं भी चुप रह जाता। क्या करता ।करोना के चलते  मुझे घर से नहीं निकलने दिया जाता और कहां जाता अपना ध्यान रखो। मैं आखिरकार मन मार कर रह गया और पिछले 2 हफ्तों से मुझे उनके छुटपुट समाचार तो मिलती रहे लेकिन बातचीत नहीं हुई और लगभग मैंने यह कल्पना कर ली कि शायद ही अब उनसे बातचीत हो पाएगी ।
   लेकिन एक दिन अचानक उनका सवेरे सवेरे फोन आया ।मैंने उठाया तो उन्होंने कहा -भाई साहब आपसे बातचीत करने की बहुत इच्छा थी इसलिए आज मैंने आपको फोन किया । वाह  काफी देर तक मुझसे बातचीत करते रहे ।अपने मन की बात कहते गए ।उन्हें संस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था और अधिकारियों के  रवैया से बहुत आघात पहुंचा था। वे एक अधिकारी से बहुत आक्रोशित थे ।उनका कहना था उस अधिकारी ने जानबूझकर स्वीकृति के बावजूद भी उनके इंक्रीमेंट की फाइल अटका दी और उन्हें को परेशान किया । यह काफी देर तक अपना आक्रोश प्रकट करते रहे और अंत में उस अधिकारी को श्राप भी से डाला । 
  मैं चुपचाप उनकी बातों को सुनता रहा ।क्या कर सकता था मैं । फिर अचानक परिदृश्य बदल गया वे अध्यात्म की बातें करने लगे । वे  बहुत हताश और निराश थे ।कहने लगे  -  कि मैं जब भिखारियों को देखता हूं तो मुझे उनसे यह  ईर्ष्या होने लगती है ।उनके पास कुछ नहीं है फिर भी वह खा रहे हैं पी रहे हैं घूम रहे है ।लेकिन मेरे पास सब कुछ है लेकिन ना मैं कुछ खा सकता हूं ना कुछ पी सकता हूं ना मैं घूम तो सकता हूं इससे अच्छा है की मौत आ जाए और मैं कष्टों से मुक्त मिल जाए  ।उनकी निराशा में जीवन की हकीकत जुड़ी हुई थी। यह उनका आखिरी फोन था जो मुझे हमेशा याद रहेगा।
   4 नवंबर 2020 सवेरे का वक्त  था और मैं हमेशा की तरह चाय पीते हुए पत्नी से बातचीत कर रहा था। मेरा मोबाइल मेरे पास रखा हुआ था ।अचानक उसकी घंटी बजने लगी। मैंने देखा शिव प्रकाश का फोन था ।शिव प्रकाश अक्सर मुझे फोन करता रहता था और मेरा हाल चाल जानता था ।मैंने फोन उठाया शिव प्रकाश ने कहा - आपको तो पता होगा ।मैंने पूछा क्या.... उसने कहा विजेंद्र सिंह भाई साहब चले गए ....पता है आपको। मैं सुनकर हड़बड़ा गया। मुझे धक्का लगा मेरे मुंह से निकला - क्या कब ।उसने कहा रात 10:00 बजे तबीयत खराब हुई  और वे  खत्म हो गए । 
यह समाचार सुनकर मेरा मन उदास हो गया और उनके साथ बिताए वक्त मुझे याद आने लगे ।मैं बेचैन हो उठा ।मैंने उनके बेटे चंद्र प्रकाश को फोन किया और पूछा कैसे हो गया। उसने बताया कि रात तबीयत खराब होने पर अस्पताल ले गए थे लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया।इससे  आगे मैं बातचीत नहीं कर पाया। मेरी दिल की धड़कन तेज हो गई और में उनके अंतिम दर्शन के लिए  बेचैन हो उठा ।मेरी बेचैनी और उन्हें अंतिम  विदाई देने की इच्छा देखकर पत्नी ने कहा चलो मैं तुम्हारे साथ चलती हूं ।तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है फिर भी तुम जाकर अंतिम दर्शन कर लो ताकि मन में कोई अफसोस ना रह जाए।
     आज मैं फिर उनके घर गया। वे दरवाजे पर ही थे लेकिन उन्होंने मुस्कुराकर मुझसे नहीं कहा ...आओ भाई साहब। आज  बे निर्जीव और शांत लेटे हुए थे। सैकड़ों महिलाएं उनको चारों ओर से घेरकर बैठी थी। एक और पुरुषों की भीड़ थी तो दूसरी तरफ उनकी अर्थी तैयार हो रही थी ।ये दृश्य मुझे भयभीत कर रहे थे। बच्चों ने उनका चेहरा दिखा दिया  ।मेने उनके पार्थिव शरीर को देखकर  हाथ जोड़कर उनको अंतिम विदाई दी । मैं वहां ज्यादा देर ठहर नहीं पाया । मेरा शरीर बुरी तरह कांप  रहा था  और मैं उन्हें इस रूप में देखकर बेचैन हो गया था ।उनके बेटे चंद्र प्रकाश ने कहा ...अंकल आपकी तबीयत ठीक नहीं आप घर च ले  जाइए। मैंने उनके बच्चों से क्षमा मांगी और ऑटो में बैठ कर घर चला आया।
    ऑटो में घर वापस आते समय मेरे सामने उनके साथ बिताए क्षण किसी फिल्म की तरह घूम रहे थे ।आज आज उनका पार्थिव शरीर अग्नि की हवाले कर दिया जाएगा फिर उनकी राख और  हड्डी किसी नदी में बहा दी जाएगी और उनकी तेरवीं करके उन्हें हमेशा के लिए भुला   दिया जाएगा । मुझे नहीं मालूम मरने के बाद इंसान कहां जाता है लेकिन इतना जरुर जानता हूं कि अब मेरे परम मित्र  विजेंद्र सिंह इस रूप में अब वापस कभी नहीं नहीं आएंगे। हमें उनकी यादों के साथ जीना पड़ेगा जब तक हमारा यह जीवन है।

 बंधुवर तुम्हें हार्दिक श्रद्धांजलि

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