मूर्ख अज्ञानी

मुर्ख अज्ञानी 
कोर्ट मेरिज की बात सुनकर शास्त्री जी कुपित हो गए बोले -अरे भय्या कोरे कागज़ पे हस्ताक्षर कर क्या विवाह का गठबंधन पूरा होता हे .यह मुर्खता ही नहीं अज्ञानता भी हे .आधुनिक होने का मतलब यह नहीं होता कि हम पुराने रीती रिवाजो और संस्कारो को भुला दे या उन्हें ढकोसला बता दे . मेने अपने तर्कों द्वारा कुछ कहना चाहा तो शास्त्री जी ने अनसुनी कर दी .शायद वे अपने संस्कारो के विरुद्ध कुछ सुनना नहीं चाहते थे .बोले –अरे बीटा हमारे ऋषि मुनियो ने कठोर परिश्रम और अनुसंधानों से जिन रीतिरिवाजो और संस्कारो की संरचना की हे क्या वे व्यर्थ हे .वर्षो से जिन संस्कारो के साथ हमारे समाज की सुद्र्ड नीव रक्खी हे क्या उन्हें ढकोसला कहा जा सकता हे .शास्त्री जी लगातार बोले जा रहे थे .मुझे बोलने का मौका दिए बगेर वे अपनी बात बोले जारहे थे .अपनी बात जारी रखते हुए बोले –भय्या यह संस्कार अमंगलकारी और अनिष्टकारी घटनाओ से रक्षा तो करते ही हे बल्कि ग्रहों की दशा सुधा र कर नक्षत्रोकी ठीक स्थिति बनाते हे और विवाह के गठबंधन को सम्पूर्णता प्रदान करते हे .
      शास्त्री जी विदवान थे और पुराने ज़माने के आदमी .उनके तर्कों का उत्तर देना इतना आसान नहीं था .ज्यादा बोलता तो अज्ञानी और मुर्ख सिध्ध कर देते .फिर भी मेरे तार्किक मन ने खुछ .कहना चाहा तो शास्री जी ने अपना प्रवचन चालू कर दिया देखो मेने अपनी पुत्री का विवाह पूर्ण रीती रिवाजो और संस्कारो के साथ संपन्न किया हे और में पूर्ण दावे के साथ कहा सकता हूँ की यह विवाह असफल हो ही नहीं सकता हे .शास्त्री जी ने व्यंग द्रष्टि से मेरी और देखा और फिर अपनी मोती तोंद पर हाथ फिरते हुए अपने कथन का समापन यह कहते हुए पूर्ण किया कि कागजो पर किया गया विवाह किसी भी प्रकार से उचित नहीं हे बल्कि घोर अमंगलकारी हे जो अनर्थ को जन्म देता हे .
शास्त्री जी अपनी बात ख़तम ही कर पाए थे किअचानक जेसे कमरे में भूचाल सा आगया .एसा शोर मचा की शास्त्री जी हतप्रभ रह गए .शास्त्री जी की विवाहिता पुत्री रोते बिलखते सामने खड़ी थी .-पिताजी आपने मुझे कहाँ भेज दिया वे तो राक्षस हे राक्षस-में अब वहा कभी नहीं जाउंगी .सब कुछ छोड़ कर आई हूँ .भेडिये मुझे खा जाएँगे .पल भर में शास्त्री जी संसार बदल चूका था .रोटी कलपती बिटिया को उनकी अम्मा अन्दर ले जा चुकी थी .हवाओ का शोर थम चूका था बिटिया की सिसकिय कभी कभी कमरे के सन्नाटे को तोड़ जाती थी .में चुप था और शास्त्री जी उंगलियों में गणना कर व्यर्थ ही यह ज्ञात करने का प्रयास कर रहे थे कि संस्कारो में कोन सी चुक हो गयी किअमंगलकारी और अनिष्टकारी गृह नक्षत्रो ने उनकी बिटिया का घर संसार उजाड़ दिया .
        मेरी स्थिति अजीब थी .में ना तो रो सकता था और नहीं हंस सकता था .बस टुकुर टुकुर ताकता हुआ शास्त्री जी के तर्कों का उत्तर तलाशने का प्रयास कर रहा था जो चीख चीख कर कह रहे थे ---मुर्ख अज्ञानी ............

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