भगवान से शिकायत नहीं है

भगवान से शिकायत नहीं है 

गैस का चूल्हा काफी दिनों से खराब पड़ा था मैं सोच रहा था कोई मरम्मत करने वाला आ जाए तो इसकी मरम्मत करवा लूं। एक दिन घर के दरवाजे पर जब मरम्मत करने वाला आया तो मैंने उसे अंदर बुलवा लिया और गैस का चूल्हा मरम्मत करने के लिए दे दिया । वह फुर्ती से चूल्हे की मरम्मत करने लगा। मैंने उसके पास कुर्सी खिसका के रख ली और उसे चूल्हा  मरम्मत करते हुए देखने लगा  ।
मैंने उससे पूछा कहां से आए हो मतलब कहां रहते हो।
  उसने कहा.. पल्ली पार से आता हूं पल्ली पार यानी नदी के उस पार से ।
मैंने पूछा इतनी दूर से यहां फेरी  लगाने आते हो ।उसने कहा.. साहब रोजी रोटी के लिए तो कुछ भी करना पड़ सकता है ।
मैंने पूछा.. कितना कमा लेते हो रोज।
 उसने कहा.. साहब क्या बताएं ... कभी 400 मिल जाते हैं कभी 200 तो कभी कुछ नहीं मिलता.
 मैंने पूछा क्या इतने में गुजारा चल जाता है.
 वो  बोला ...कहां साहब शहर में तो  बिल्कुल नहीं चल पाता इसलिए मैं अपने बाल बच्चों को गांव में रखता हूं और यहां अकेले रहता हूं ।
मैंने फिर कहा.. गांव में क्यों भला ।
 वो बोला ... गांव में इसलिए रखता हूं कि वहां अपना घर है थोड़ी बहुत खेती-बाड़ी है और सम्मिलित परिवार है ..खाना पीना आराम से हो जाता है.
 मैंने पूछा और तुम्हारा ।
वो बोला ...साहब यहां चार-पांच हम जैसे लोगों ने एक कमरा किराए पर ले लिया है और उसी में मिलजुल कर गुजारा कर लेते हैं ।
मैंने कहा अपनी गरीबी अपनी मजबूरी पर तुम्हें भगवान पर गुस्सा तो नहीं आता ।
उसने कहा ...मालिक की दया है की भरपेट खाना मिल जाता है ।वैसे भी मालिक अन्याय नहीं करता वह तो सबको नंगा ही भेजता है फिर अपना अपना भाग्य है ।
मैंने उसे फिर उकसाया ..क्यों भगवान तो तुम्हें बहुत कुछ दे सकता था जैसे दूसरों को दिया है.
 उसने कहा ..यह तो अपना-अपना कर्म है पता नहीं आगे कब कैसे जीवन बदल जाए ।
मेने उसे काफी उकसाया लेकिन मैंने देखा अपनी गरीबी अपनी मजबूरी और अपनी लाचारी के बावजूद भी उसे भगवान से कोई शिकायत नहीं थी।

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