किन्नर
संस्मरण.....
जाड़े के दिन थे और अच्छी खासी ठंड पढ़ रही थी लेकिन उस विवाह मंडप में ज्यादा ठंड नहीं लग रही थी लोगों ने लगभग अपने कुछ गर्म कपड़े उतार दिए थे और विदाई की प्रतीक्षा कर रहे थे ।
तभी अचानक किन्नरों का आना हुआ उनके आते ही हलचल मच गई किसी ने मुझे कहा आप उठ जाओ और गायब हो जाओ।
लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया.. मैंने देखा किन्नर दूल्हे के बाप के बारे में पूछ रहे थे .मुझे मालूम था की किन्नर जरूर आएंगे इसलिए मैंने उनकी लिए कुछ व्यवस्था की हुई थी और मैं पूरी तरह से उन्हें नेम देने को तैयार था .मेरा मानना था कि इन्हें इनका हक मिलना चाहिए और वैसे भी यह अपना हक लिए बिना नहीं जाती .
मैं नहीं चाहता था कि तमाशा हो लोग मुझे कंजूस और मक्खीचूस करें वैसे भी शादी ब्याह में इतने खर्चे होते हैं कि यह छोटा सा कर्ज मायने नहीं रखता और फिर जिंदगी भर अफसोस होता है डर लगता है कि इनकी बद्दुआ कहीं कोई अनिष्ट ना कर दे
मैंने उनको आवाज दी और अपने पास बुला लिया ।उन्होंने पास आकर ताली बजाई और कहा ग्यारह सौ इक्कीस सौ रुपए नहीं लूंगी ...मैंने कहा ठीक है मैं तुम्हें तुम्हारा नेग दूंगा.... तुम जरा नाच गाना तो शुरू करो ।वे खुश हो गए उनकी प्रसन्नता देख मुझे अच्छा लगा ।मैंने जेब से इकतीस सौ निकालें और उनको दे दिए। उन्न्होंने पैसे ले लिए और कोई ना नुकुर नहीं की .. फिर ढोलक बजाकर वे नाच गाने में मस्त हो गए. लोग उनके नाच गाने और तालियों का आनंद लेने लगे और मैं सोचने लगा की.. हमारे समाज में किन्नरों को उपस्थिति किसी खास अवसरों पर ही होती है और वे अपना नेग मांगने आ जाते हैं इसे वह अपना अधिकार समझते हैं और उनको नेग देने की परंपरा है यह माना जाता है कि उनकी वह दिल से दुआ करते हैं और उनकी दुआएं लगती हैं ।कोई नहीं चाहता कि उनकी बस दुआओं को ले और उन्हें उनका हक ना दे । यहीं सब कुछ मेरे मन में भी ।था और मैं पूरी तरह से तैयारी करके आया था
मुझे उनकी सूचना तंत्र पर आश्चर् हो रहा था कि वह कैसे यह सारी जानकारी हासिल कर लेते हैं और ठीक समय पर उपस्थित हो जाते हैं
नच गाना चरम पर पहुंच गया था बराती उन पर न्योछावर कर रहे थे और वे उत्साहित होकर लोगों को खुश कर रहे थे
सोया हुआ वातावरण किसी उत्सव में बदल गया था ।

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