सोरों तीर्थ स्थल

सोरों उत्तर भारत का प्रमुख तीर्थ स्थल है, जो आगरा से लगभग 100 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के कासगंज के पास है यह शूकरक्षेत्र के रूप में विख्यात है।  यहां गंगा किनारे सैकड़ों पौराणिक ऐतिहासिक और  धार्मिक स्थान मौजूद है । यहां मंदिरों के दर्शन कर अध्यात्मिक सुख  और आनंद की प्राप्ति होती है।

 प्राचीन समय में सोरों शूकरक्षेत्र को "सोरेय्य" नाम से भी जाना जाता था। सोरों शूकरक्षेत्र के प्राचीन नाम "सोरेय्य" का उल्लेख पाली साहित्य में भी है।

यह रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म स्थल भी है और यहीं पर गोस्वामी तुलसीदास जी की शिक्षा दीक्षा भी हुई थी उनकी स्मृति में यहां सोरों घाट पर एक मूर्ति भी लगाई गई है

एक किवदंती के अनुसार यहां पर भगवान विष्णु ने वारह रूप में अवतार लिया था ।बात तउस समय की है, जब दैत्यराज हिरण्याक्ष पृथ्वी को जल के अंदर ले गया। तब उसके उद्धार हेतु भगवान ने वराह रूप में लीला करने का निश्चय किया। पृथ्वी के पुनर्संस्थापन के उपरांत पृथ्वी को ज्ञानोपदेश एवं अपनी वराह रूपी देह का विसर्जन परमात्मा ने जिस पुण्य क्षेत्र में किया वह स्थान आज भी सोरों (शूकर क्षेत्र) के नाम से जन-जन की श्रद्धा के केंद्र के रूप में विद्यमान है। भगवान वराह के पुण्य प्रभाव से इस स्थान को विश्व संस्कृति के उद्गम स्थलों में से एक माना गया है। भगवान श्री वराह के देह विसर्जन के प्रभाव के कारण यहां स्थित हरिपदी गंगा में मृतक की अस्थियां प्रवाह के तीसरे दिन ही जल में विलीन हो जाती हैं। विश्व में कोई दूसरा ऐसा स्थल नहीं है जहां अस्थि गलती हो।

 भागीरथी गंगा यद्यपि हम सभी के लिए परम पुण्यप्रदा है किंतु उसके जल में भी अस्थि गल नहीं पाती। आधुनिक वैज्ञानिक प्रयासों के बावजूद इस जल की इस विशेषता के रहस्य का पता नहीं लगा पाए हैं। 

यह वही शूकर तीर्थ है जो कालांतर में वराह अवतार से पूर्व कोकामुख कुब्जाभ्रक तीर्थ के नाम से विख्यात था। श्री वराह दर्शन इस क्षेत्र के प्रधान मंदिर श्री वराह मठ का 17वीं शताब्दी में नेपाल नरेश ने जीर्णोद्धार कराया था। इस मठ में प्रधान देव श्री क्षेत्राधीश वराह अपने श्वेत-वर्ण विग्रह में मां लक्ष्मी के साथ सुशोभित हैं। साथ ही इसके प्रांगण में भगवान के विराट रूप का अलौकिक दर्शन भी होता है। 

श्री हरि गंगा क्षेत्राधीश श्री वराह मंदिर के बिल्कुल सामने प्रतिष्ठित श्री हरि गंगा का विशाल कुंड मृत आत्माओं की मुक्ति के साक्षात पर्व के रूप में विद्यमान है। यह वही पवित्र कुंड है जहां विसर्जित अस्थियां तीन दिन के अंदर जल में विलीन हो जाती हैं। इसी कारण यहां गंगा  को मोक्षदायिनी , मुक्तिदायिनी  और पवित्र माना गया है ।

सोरों सूकरक्षेत्र में प्रत्येक अमावस्या, सोमवती अमावस्या, पूर्णिमा, रामनवमी, मोक्षदा एकादशी आदि अवसरों पर तीर्थयात्रियों का बड़ी संख्या में आवागमन होता है और गंगा में स्नान कर पुण्य प्राप्त करते है ।

यहां सभी यात्री सुविधा उपलब्ध है यदि आप धार्मिक प्रवत्ति के है यह फिर घुम्मकड़ है तो आपको यहां बड़ा ही आनंद प्राप्त होगा 




Comments

Popular Posts