भईए गोलगप्पे खाओगे

भईए गोलगप्पे खाओगे 
सारस्वत की बात सुनकर मुंह में पानी आ गया ।
हम लोग दाऊजी मंदिर के दर्शन कर बाहर सड़क पर आ चुके थे ।
मैने कहा...
क्यों नहीं ..हमें तो गोलगप्पे बहुत पसंद है । जरूर खाएंगे 
मेरी बात सुनकर सारस्वत मुस्कुराया फिर  ब्रिजेश की तरफ  देख कर बोला 
डेड ..यहां के गोलगप्पे बहुत अच्छे होते है ।मै जब भी दाऊजी आता हूं तो यहां के गोलगप्पे और भल्ले जरूर खाता हूं  
सारस्वत की बात  सुन बृजेश भी  मुस्कुरा दिया । 
गोलगप्पे को देख कर हमसे रुका नहीं जाता था इसलिए दफ्तर से निकल कर कोई गोलगप्पे वाला मिल जाता था तो जी भर खाते थे ।आज सारस्वत का प्रस्ताव सुनकर तो लार टपकने लगी 
 बंधु खाएंगे तो जरूर लेकिन ....
लेकिन क्या .....बृजेश की बात सुन कर सारस्वत ने चौंक कर पूछा 
यहीं कि गोलगप्पे खाते वक्त हम गिनती नहीं  करते ।तब तक खाते रहते जब तक मन ना भर जाए 
बृजेश की बात सुन सारस्वत हंस पड़ा 
डेड... हम कोन सी गिनती कर खाते है ।हम भी तो जी भर कर खाते है ।
हम लोगो का पूरा मन  बन चुका था ।  वैसे भी हम लोग काफी घूम चुके थे और हल्की सी भूख भी लग  रही थी इसके बाद हम लोगो को  वापिसी यात्रा भी करनी थी।शाम भी होने जा रही थी ।
गोलगप्पे वाले ने हमें दो ने पकड़ा दिए और फिर एक एक कर गोलगप्पे मुंह में जाने लगे
गोलगप्पे स्वादिष्ट थे हमारी पसंद के थे इसलिए खूब खा रहे थे 
 सारस्वत की बाते भी दिलचस्प  थी ऐसा लग रहा की वो अपने बचपन की और लौट आया हो 
दाऊजी आने से पहले हम उसके गांव भी गए थे ।उसने हमें गांव भी घुमाया था। उसने बताया यहां मेरा ननिहाल है और मेरा बचपन भी यही बीता है ।उसने अपना स्कूल भी दिखाए जहां वो बचपन में पढ़ा था ।स्कूल के दिनों को याद कर उसने बहुत सारी बाते कही । 
गांव में नहर किनारे उसके घर के आगे बैठना अच्छा लगा । नहर पर एक लकड़ी का पुल भी था जिसको देखना बड़ा अच्छा लगा ।वहां का प्राकृतिक दृश्य इतना खूबसूरत था कि दिलो दिमाग में बैठ गया जो आज तक हम नहीं भुला पाए है।
अफसोस यही रहा की तब हमारे पास कैमरा नहीं था वरना उस  दृश्य को जरूर केमरे ने केद करते 
सारस्वत गोलगप्पे खाते हुए  अपनी बाते बता रहा था और हम लोग उसकी बाते सुनते हुए गोलगप्पे भी खा रहे थे। 
हमने जी भर गोलगप्पे खा लिए तो फिर भल्ले  खाने का  नंबर आया 
भइया जी केसा खाओगे क्या क्या डालूं 
ठेल वाले ने पूछा 
उत्तर ब्रिजेश ने दिया ।
भइया सब कुछ डालो यानी खट्टी चटनी मीठी चटनी और प्याज भी 
भय्या जी प्याज तो नहीं होगा.... यहां मंदिर में यह सब नहीं चलता
ठीक है जैसा तुम   बनाते हो वैसा ही बना दो 
ठेल वाला अपने काम में लग गया ।सारस्वत फिर अपनी बाते बताने लगा।उसकी बातो में  थोडा और  समय बातचीत में गुजर गया ।उसकी बाते दिलचस्प थी  और हमें सुनने में आनंद आ रहा था ।
भल्ले तैयार हो  गए थे और जब भल्ले कि प्लेट सामने आ गई तो फिर उसके स्वाद  में हम लोग डूब गए ।
सच तो यह था कि जैसा सारस्वत ने कहा था वैसे ही भल्ले स्वादिष्ट और हमारी पसंद के थे ।
शाम होने लगी थी और हम  लोग मन से और  पेट से पूरी तरह तृप्त हो चुके थे । हमें अब आगरा की और प्रस्थान भी  करना था
अब हमारे स्कूटर आगरा की  और दौड़ रहे थे लेकिन हमारा मन दाऊजी में ही अटका हुआ था ।सारस्वत   की बाते  सारस्वत का गांव और सारस्वत का कहना .. भइए गोलगप्पे खाओगे.... बार बार दिमाग से टकरा कर एक अजीब सा भाव पैदा कर रही थी जिसका  वर्णन करना  मुश्किल था 
बात तीस साल पुरानी है लेकिन सारस्वत और ब्रिजेश के साथ की गई दाऊजी की यह यात्रा  में कभी नहीं  भुला ।
आज भी कोई गोलगप्पे वाला  मिल जाता है तो ऐसा लगता है जैसे पास खड़ा सारस्वत कह रहा हो .. भइये गोलगप्पे खाओगे ...
तब में अपने आप को रोक नहीं पाता और जी भर गोलगप्पे खाकर  अपनी पुरानी यादों को ताजा कर लेता हूं । 
यह भी मेरी जिंदगी का अभूतपूर्व क्षण था ।
अब बृजेश भी नहीं रहे... में भी रिटायर हो गया हूं। लेकिन सारस्वत अभी भी सेवा में है और फेस बुक के माध्यम से उनके हाल चाल पता चलते रहते है ।
लेकिन जब भी फेस बुक पर उसकी तस्वीर देखता हूं तो दाऊजी की यात्रा याद सा जाती है ...तब मेरे चेहरे  पर मुस्कान आ जाती है और कानों  में बृजेश और सारस्वत।की बातें गूंजने लगती है । 
...भइये गोलगप्पे खाओगे ...भाई हम खाते हुए गिनती नहीं करते ....तो डेड हम  कोन  गिनती करते है ...

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