राकेश गुप्ता

हम लोगो के बीच राजेश गुप्ता एक ऐसा व्यक्ति था जिसकी हम लोग काफी चर्चा किया करते थे ।पंडित हरिओम शर्मा तो उसकी तारीफ करते अघाते नहीं थे  फिर चाहे शिवप्रकाश शर्मा हो या विपिन जैन सभी उसकी तारीफ करते थे ।
केंटीन में बैठ कर जब  हम लोग एक बड़ा गोल घेरा बनाकर  चाय कि चुस्कियां ले  रहे होते तब भी उसकी चर्चा चल पड़ती तो बाते ख़तम नहीं होती ।कभी कभी ऐसा भी होता था जब् वो  हम सब के बीच आ जाता था तो फिर बातों के साथ हंसी मजाक भी शुरू हो जाता था ।यह कहने की बात नहीं की वो सभी की बातों का केंद्र होता था क्योंकि वह  था ही ऐसा ।
मेरी भी अक्सर उससे बातचीत होती थी और यह सच था कि वह सबका सम्मान करता था । मै देख रहा था उसकी महत्वकांक्षा बहुत ऊंची थी... वो आसमान में उड़ना चाहता था ।में उसकी हिम्मत को देख कर दंग था उसकी हर किसी को प्रभावित करने की कला तारीफे काबिल थी । में तो बस उसकी बातों से चकित रह जाता था ।पंडित हरिओम शर्मा जी बताते उसके संपर्क काफी ऊंचे है । हम लोग जहां अधिकारियों से दूरी बनाए रखते थे वो बेधड़क उनसे दोस्ताना संबंध रखता था हालांकि वो हम लोगो की तरह बाबू ही था ।
राकेश गुप्ता हमारे लिए एक अजूब पहेली था ।एक दिन जब मै खंदारी से ऑफिस के लिए पैदल चला जा रहा था तो अचानक एक बड़ी गाड़ी मेरे बगल में आकर खड़ी हो गई ।में थोड़ा दूर हट गया तो गाड़ी का दरवाजा खुला और उसमे बैठे राकेश गुप्ता ने कहा ..आइए आचार्या जी । मैं हैरत से उसे देखने लगा राकेश गुप्ता ने फिर कहां... आइए मैं कार में बैठ गया यद्यपि कार सेकंड हैंड थी लेकिन देखने में बड़ी आकर्षक थी। यह वह समय था जब कार का होना गर्व का विषय माना जाता था और उस पर सवारी करना तो और ज्यादा गर्व का विषय था। मुझे इस बात पर  आश्चर्य था कि कि मैं हर रोज कंधारी से ऑफिस पैदल ही जाता था और बहुत सारे लोग कार से ऑफिस जाया करते थे लेकिन उनमें से शायद ही किसी ने मुझे बैठने के लिए कहा होगा । मैं अभीभूत था कि राकेश गुप्ता ने मुझे यह सम्मान दिया । पता चला कि कुछ दिनों पहले ही उसने यह कार खरीदी थी और आज पहली बार कार में ऑफिस जा रहा था
ऑफिस में भी उसके कार चर्चा में थी और लंच टाइम में बहुत सारे लोग उसे देखने और घेर कर बातें कर रहे थे ।पंडित हरिओम शर्मा ने कहा राकेश शर्मा बहुत महत्वकांक्षी व्यक्ति है उसके लिए कुछ भी करना मुश्किल नहीं है ।यह बात भी काफी हद तक सही थी क्योंकि एक जमाना था जब ऑफिस के निदेशक और रजिस्टार के साथ उसका उठना बैठना काफी बढ़ गया था और वह उनके विश्वस्त व्यक्तियों में गिना जाता था और एक  वक्त ऐसा भी था जब उसे सूचना अधिकारी भी बना दिया गया ताकि अपने संपर्कों के माध्यम से वे उनका कार्य कुशल पूर्वक कर सकें ।
बाबू विजेंद्र सिंह तो जो बाद में अध्यापक पद पर प्रोन्नति  पा गए थे हमेशा राकेश गुप्ता की तारीफ किया करते थे । वो  कहते थे यह राकेश कुत्ता ही है जिसकी   हिम्मत और संघर्ष के कारण मैं प्राध्यापक बन पाया वरना में बाबू का बाबू  ही रहता ।
 बात उन दिनों की है जब संस्थान में अध्यापक पदों की भर्ती हो रही थी और ऑफिस के कई बाबओंं ने उसमें आवेदन दिया था लेकिन जैसा कि हमेशा होता है... घर की मुर्गी दाल बराबर यानी योग्यता होने के बावजूद भी उनके रास्ते कभी नहीं खुलते थे । पता चला कि ऑफिस के लोगों को इंटरव्यू में नहीं बुलाया जा रहा है ।सभी दुखी थे लेकिन क्या कर सकते थे। बाबू विजेंद्र सिंह भी  दुखी थे कि  योग्य होने के बावजूद भी उन्हें इसलिए मौका नहीं दिया जा रहा है कि वे ऑफिस में बाबू है। उन्होंने मुझसे कहा कि हम क्या कर सकते  हैं और अंततः वे चुप मारकर बैठ गए ।
ज्यादातर लोगों ने भी यही किया लेकिन राकेश गुप्ता इन सब से  अलग था उसने तो पी एच डी भी कर ली थी और अध्यापक  बनने की सारी योग्यताएं उसके पास थी । राकेश गुप्ता ने हार नहीं मानी और अपने संपर्कों की सहायता से अपनी बात उच्चाधिकारियों  तक पहुंचाई और इंटरव्यू रोकने के लिए याचिका भी दायर कर दी। परिणाम  स्वरूप इंटरव्यू से 2 दिन पहले ही सभी को इंटरव्यू लेटर मिल गए तब बाबू विजेंद्र सिंह मेरे पास आए और बोले राकेश गुप्ता की बदौलत हमें इंटरव्यू लेटर मिल गया है इसलिए मुझे आशीर्वाद दीजिए कि हम इंटरव्यू में सफल हो जाए। यह बात काफी दिनों तक चर्चा में रही थी
 इंटरव्यू हो गए थेऔर परिणाम की प्रतीक्षा थी । बाबू बिजेंद्र सिंह ने बताया कि इंटरव्यू तो  अच्छा हुआ है  अब ऊपर वाले की मर्जी है....लेकिन  मेरी तो कोई जुगाड़ नहीं है । मुझे याद है मेने कहा था अपने ऊपर विश्वास रखो ।
फिर एक दिन जब में किसी  कार्य में व्यस्त था बाबू बिजेंद्र सिंह आए और चरण स्पर्श कर बोले ..भाईसाहब मेरा सलेक्शन हो गया और यह कहते हुए उनका गला भर आया ।
बात ज्यादा पुरानी नहीं है 2010के दशक की घटना है लेकिन स्व डॉ बिजेंद्र सिंह उसकी चर्चा जीवन के अंतिम क्षण तक करते रहे ..यही की मुझे जो भी मौका मिला उसके लिए डा राकेश गुप्ता का जज्बा ही काम आया यदि वो संघर्ष नहीं करता  तो कहां एक छोटा सा बाबू अध्यापक बन पाता ।
डॉ राकेश गुप्ता एक अब 1 डिग्री कॉलेज के चेयरमैन है और सामाजिक जीवन मैं राजनीतिक जीवन में अपनी स्थिति मजबूत करते हुए उसी जज्बे के साथ संघर्ष मैं लीन है ।मैं उनके जज्बे को सलाम करता हूं।

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