छोटा गोपाल ..….

छोटा गोपाल और विक्रम सिंह  एसे व्यक्ति रहे जो बहुत छोटी उम्र में संस्थान की सेवा ने आ गए थे ।उस समय  नियुक्ति के हिसाब से  वे 18वर्ष की उम्र   भी पार नहीं कर पाए थे ।दोनों के पिता संस्थान के सेवा में  थे और उनकी आकस्मिक मृत्यु के कारण उन्हें आश्रित कोटे से नियुक्ति दी जानी थी । तब  डॉ बृजेश्वर वर्मा संस्थान के निदेशक थे ।वे कर्मचारियों के प्रति अति संवेदनशील थे तत्कालीन प्रशाशन भी सहयोग देता था तब पंडित रामकृष्ण नावडा  जी उप निदेशक थे और उनका प्रयास हमेशा सकारात्मक रहता था ।आज संस्थान प्रशासन काजी  रवेय्या रहता  है वो तब कहीं नहीं दिखाई देता था यद्यपि तब भी गुटबाजी और राजनेतिक खेल खेलने वाले कम नहीं थे ।
खैर वर्मा जी इच्चा और प्रशाशन की कोशिशों से दोनों को नियुक्ति मिल गई लेकिन कुछ लोग थे जो इसका पुरजोर विरोध भी कर रहे थे । मै उनका नाम नहीं लेना चाहूंगा लेकिन इतना जरूर कहूंग ये वे  लोग थे जिनके दिमाग में  बस विरोध ही भरा था जो नकारात्मक सोच वाले व्यक्ति थे 
हमारे संस्थान में अब दो गोपाल हो गए इसलिए इसका नामकरण छोटा गोपाल कर दिया गया और फिर ये नाम  जीवन भर चलता रहा ।
नियुक्ति के आरंभ ने ये दोनों लोग चोधारी रामसिंह के संपर्क में आए । रामसिंह कर्मचारियों के एक समूह के नेता थे ।उनकी संगत में आकर दोनों ही कुछ ग़लत आदतों का शिकार हो गए ।परिणाम आर्थिक हालात बिगड़ गई ।विक्रम ने तो अपने को सुधार लिया और बाबा मोहनलाल की प्रेरणा से भक्ति की और मुड गया और उसे भी एक   नाम दिया  ...श्री राम 
गोपाल ऐसा नहीं कर पाया वह जिंदगी भर संघर्षरत रहा ।एक बार इन्हीं आदतों के कारण गंभीर रूप से बीमार भी पड़ा ।स्थिति बहुत बुरी थी लेकिन प्रभु की कृपा जीवन बच गया ।उसके बाद शायद उसके जीवन में कुछ बदलाव देखा गया ।पंडित हरिओम शर्मा जी उसके प्रति संवेदनशील थे और उस समझाया करते थे तब हमें  लगा शायद उसके जीवन में कुछ बदलाव आए । 
बदलाव आया भी था लेकिन बदलाव दिखाई देता उससे पहले ही उसकी जीवन लीला समाप्त हो गई ।
इसने कोई संदेह नहीं वो एक अच्छा कर्मचारी था ।गुस्सा उसे जरूर आता था तब वो जरा जोरो से चिल्ला कर बाते करता था लेकिन वो सभी का सम्मान करता  था ।
उसने कई विभागों  में कार्य किया और वो एक चर्चित और लोकप्रिय व्यक्ति था ।हमरी यूनियन का सक्रिय सदस्य था और हर आंदोलन में हर कार्यक्रम  में उसकी  उपस्थिति हमेशा रहती थी ।
हमें खास  खबर भी देता था । रिटायरमेंट के बाद जब कभी ऑफिस जाता तो मुलाकात होने पर उससे दुआ सलाम भी होती ।
स्टाफ क्वार्टर में रहते हुए मेने उसके पारिवारिक जीवन को करीब से देखा ।वो यहां बड़ी शांति से रहता था किसी से कोई लड़ाई झग डा कुछ नहीं ।
दफ्तर ने भी उसके जाम को लेकर कोई शिकायत नहीं रहती थी ।वो अपना काम खामोशी से करता रहता 
 था ।
जब अचानक उसके जाने की खबर मिली तो यकीन नहीं हुआ ।अभी ती उसके रिटायर होने में काफी समय बाकी था और फिर जब  उसकी पत्नी की मौत जी खबर आई  तो ब डा अफसोस  हुआ ।कुछ समय के अंतराल में दोनों ही ईश्वर के पास चले  गए 
यह  तो प्रभु की लीला है उसकी इच्चा सर्वोपरि लेकिन छोटे गोपाल की बाते उसकी यादें इतनी आसानी से भुलाई नहीं जा सकती हैं। हम तो बस प्रार्थना कर सकते है कि भगवान उसकी आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान देना 
ओम शांति शान्ति ...


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