28 जून 2011

28 जून की दोपहर लंच बाद ही मै घर की और चल पड़ा था ।मुझे फिर चार बजे लौट कर ऑफिस आना था ।उस दिन मेरी सेवाकाल का आखिरी दिन था और उसी दिन मेरी बिदाई के लिए ऑफिस की और से बिदाई समारोह रखा गया था ।यह एक संयोग था कि उसी दिन मेरे साथ पंडित हरिओम शर्मा जी भी सेवानिवृत्त हो रहे थे ।
मुझे मालूम पड़ा कि इस विदाई समारोह में शामिल होने के लिए तात्कालिक निदेशक डॉ मोहन भी दिल्ली से विशेष रूप से आगरा आ चुके थे ।वैसे ऐसा कम बार होता था जब किसी की विदाई को इतना महत्व दिया जाता हो ।
हमरी यूनियन ने भी उसी दिन ऑफिस की बिदाई के बाद अपना कार्यक्रम रखा था और इसके लिए जोर शोर से तैयारी चल रही थी। बिदाई के बाद रात्रि भोज का भी कार्यक्रम था ।यह भी अनोखा संयोग था कि में यूनियन का सचिव था और पंडित हरिओम शर्मा अध्यक्ष और हम लोगो का इस रूप में काफी लंबा कार्यकाल था ।
मुझे तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारी रामेश्वर सिंह ने बता दिया थी कि स्टाफ कार आपको घर से लेने आएगी और कार्यक्रम के बाद आपको घर भी वापिस छोड़ देगी 
चलते समय जंगबदुर ने भी हाथ हिलाते हुए कहा था... सर जी में ठीक समय पर पहुंच जाऊंगा ।गणेश ने भी कहा ..मुझे आपका घर पता है हम पहुंच जाएंगे ।
उन दिनों ने अपने निवास पुष्पांजली  में आ गया था और कुछ ही महीने पहले ऑफिस का स्टाफ क्वार्टर छोड़ दिया था । इस कारण ऑफिस के ज्यादातर लोग मेरे परिवार से अच्छी तरह से परिचित थे ।
दोपहर के 3,बज चुके थे में आराम से सोफे पर पड़ा हुआ था ।गर्मी के दिन थे इसलिए मैने स्नान भी कर लिया था और फिर बैठे बैठे अपना बिदाई का भाषण तैयार करने लगा । मेने उस दिन एक गीत गाने का भी सोचा था ।मुझे नींद नहीं आ रही थी बस दफ्तर की सारी पिछली बाते याद आ रही थी और में अपने ही कल्पना लोक में डूबा हुआ था तभी मेरे मोबाईल की घंटी तेज स्वरों में बजने लगी ।
फोन हरीश जी का था उसने कहा ..आचार्या जी तुरंत आ जाइए यहां हंगामा हो गया है ।
मेने पूछा... क्या हो गया 
बहुत कुछ हो गया है ।पंडित जी को आज एक नोटिस पकड़ा दिया है इसी पर सभी लोग निदेशक कक्ष में घुस गए है ।आप तुरंत आ जाइए बाकी बाते यहां पता चल जाएगी ।
हरीश जी ने फोन काट दिया ।
अब मेरा रुकना मुश्किल था ।मेने अपने बेटे से कहा ..,बच्चे मुझे  मोटर साईकल से ऑफिस छोड़ दे ।
पत्नी ने पूछा ..क्या हो गया 
मेने कहा बस ऑफिस तुरंत जाना है फिर जल्दी जल्दी कुछ बाते बताई और ऑफिस के लिए तैयार हो गया ।बच्चे ने मुझे ऑफिस छोड़ दिया ।मेने वहां जाकर देखा तो केंटीन में बहुत सारे लोग इकट्ठा थे ।सबके मन में आक्रोश था ।शिवप्रकाश जी ने सारी बात बताई और नोटिस पढ़ने  दि या  ।नोटिस पढ़ने ये बाद एक बात समझ में आ गई कि यह केवल विरोधियों की परेशान करने वाली चाल थी ।यह भी समझ में आ गया कि लि निदेशक महोदय क्यों दिल्ली से वापिस आए ।
खैर मेने पंडित जी से पूछ कर यह निर्णय निकाला की उसका समुचित जवाब दे दिया जाएगा ।क्यों की आरोपों में कोई दम नहीं था ।मेरी बात से वातावरण में कुछ तहमाराा  रोोोषशरोश इस बात का था कि यह पत्र आज ही क्यों दिया गया ।इस पर निदेशक ने कहा कि कल नहीं दिया जा सकता था क्युु नियमानुसार सेवनिवृत व्यक्ति को ऐसा नोटिस नहीं दिया जा सकता ।
मामला गरम  था सभी आक्रोशित थे और हम लोगो ने  निर्णय लिया गया कि हम लोग ऑफिस द्वारा दिए जा रहे सम्मान समारोह का बहिष्कार करेंगे लेकिन यूनियन का समारोह होगा ।
हम लोग केंटीन में जमे रहे और वर्मा जी की चाय पीते रहे 
शाम के चार बज चुके थे ।कक्ष 216 ने लोगो ने आना शुरू कर दिया था ।हाल आधे से अधिक भर गया था जलपान की और ठंडे की व्यवस्था हो चुकी थी ।मालाए टेबिल पर रखी जा चुकी थी और माइक वाले ने हलों हैलो टेस्टिंग कर ली थी 
मनीष दो तीन बात खेमचंद का संदेश लेकर आ चुका था उसे हम लोगो ने समझ दिया फिर खुद खेमचंद आए .बोले साहब ने कहा है आप लोग ऊपर चले तो कार्यक्रम शुरू किया जाए ।हम लोगो ने आक्रोश तो था ही इसलिए हमने कहा ...साहब से कह दो हम नहीं आएंगे ।खेमचंद वापिस लौट गए और ऑफिस का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया ।
बाद ने लोगो ने बताया कि बिना भाषण सुने ही उन्होंने जलपान और ठंडे का आनंद उठाया ।
 पांच बजने वाले थे ।ढोल वाले आ गए थे और ढोल बजा कर उन्होंने बता दिया कि वे आ गए है ।शिव प्रकाश जी ने कहा सभी लोग ऊपर चलें यूनियन का कार्यक्रम शुरू होगा
ऊपर हाल  भर चुका था ज्यदतर कर्मचारी चाहने वाले अध्यापक और अधिकारी भी आ गए थे केवल वे लोग नहीं थे जो हमारे यूनियन के प्रबल विरोधी थे और ऐसा होना स्वाभाविक ही था । 
समारोह शानदार रहा और ऐसा रहा की हम अपने मित्रो के सम्मान और स्नेह से अभिभूत हो गए ।उनके द्वारा दिए गए उपहार हमारे लिए अमूल्य थे ।सुरेश जी ने है दोनों को पगड़ी और नोटों कि मला पहनाई ।यूनियन की और से सम्मान पत्र और राधाकृष्ण की सुंदर मूर्ति दी गई ।इसी सुंदर मूर्ति जो अब हमारे मंदिर में स्थापति है और जिनके दर्शन कर हमें अपने मित्रों का स्नेह और सम्मान याद आ जाता है ।
कुल मिला कर ऑफिस की बिदाई समारोह में शामिल ना हो पाने का दर्द काफी हद तक दूर हो गया था ।
समारोह में राजा भी अपने ताऊ जी के साथ आ गया था और अपना काम कर रहा था ।मेने उसे वीडियो बनान का काम सौपा था ।शैलेश हमारा मित्र भी केमेरा लेकर आ गया था जो इस भूल ना जाने वाले समारोह कि तस्वीरें खींच रहा था ।
मित्रो ने इतनी फूलों की माला पहनाई कि सारा गला भर गया और दर्द होने लगा ।लेकिन मित्रो का प्यार देखकर प्रसन्नता ही हुई ।
समारोह के बाद रात्रि भोज तो और शानदार रहा तब इसमें और भी कई लोग सम्मिलित हो गए ।रजिस्ट्रार चंद्रकांत त्रिपाठी भी आ गए थे और उन्होंने हमें बधाई और शुभकामनाए दी । हम लोगो के साथ उनकी फोटो भी खींची गई जो संस्थान कि मासिक पत्रिका में भी प्रकाशित हुई ।
देर रात्रि जब रात्रि भोज समाप्त हुआ तो फिर ढोल बाजे के साथ बिदाई संपन्न हुई ।थके हारे जब घर पहुंचे ती प्रीति ने बताया जंग बहादुर और गणेश आए थे घर देखकर खुश हुए मेने उनके खूब स्वागत किया 
बाद ने मेने जंग बहादुर से पूछा भाय्या जब मै ऑफिस आ गया था तो फिर ...
जंगबहाद र ने हसते हुए कहा ..सर जी ड्यूटी निभानी थी और फिर घर भी देखना था ।
आज इस घटना को पूरे 10 सल हो गए है लेकिन मै इस घटना को भूल नहीं पाया ।भूलूंगा भी केसे... जब अलमारी खोलता हूं तो सुरेश जी की दी गई पगड़ी और माला सामने दिखाई दे जाते है ।पूजा घर में जाता हूं तो राधा कृष्ण की मूर्ति मुझे मित्रो की दुआए याद दिलाती है ।यूनियन का सम्मान पत्र तो मेरे सामने ही रहता है और इसमें लिखी इबारत तो मुझे बार बार पढ़ते पढ़ते याद ही हो गई है ।बड़ा मुश्किल है इन सबको भुला पाना...   समझ लो नामुमकिन ।



 

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