अवकाश यात्रा सुविधा ..जगन्नाथ पुरी यात्रा
संस्मरण...अवकाश यात्रा सुविधा ...भाग ..1
.जगन्नाथ पुरी यात्रा ...
1983 के आसपास अवकाश यात्रा सुविधा मिलनी शुरू हो चुकी थी तब हमने पुरी जाने का कार्यक्रम बनाया ।हमारे साथ पूनम शर्मा और उनका परिवार भी चल रहा था ।उन दिनों रेल से यात्रा करना मुश्किल काम था ।आज की तरह अग्रिम ऑन लाइन आरक्षण की व्यवस्था नही थी ।जिस स्टेशन से चढ़ना होता वही से आरक्षांस मिलता था तब भीड़ में धक्के खाते हुए जनरल क्लास में चलना मज़बूरी थी ।अच्छी बात यह थी कि हम लोग जवान थे स्वस्थ थे और मुश्किलों से लड़ने को तैयार थे ।दफ्तर में सबको पता थी कि हम लोग लंबी यात्रा में जा रहे हैं इसलिए उन्होंने हमें यात्रा की शुभकामनाये दी ।
पंडित हरिओम शर्मा ने इकबाल से कहा इन्हें ठीक से गाड़ी में बैठा देना और देखना इन्हे कोई तकलीफ ना हो ।इकबक उन दिनों आगरा कैंट के पास ही रहता था और उसकी रेल कर्मचारियों से अच्छी जान पहचान थी ।हम जब स्टेशन पहुंचे तो हमे इकबाल एक बुज़ुर्ग कुली के साथ खड़ा मिला ।उसने हमे आश्वस्त किया कि गाड़ी मे आराम से बैठा देगा और आरक्षण भी दिलवा देगा ।उसने यह किया भी ।गाड़ी आने पर उसने टी टी से बात कर हमें थ्री टायर डिब्बे मे बर्थ दिलवा दी ।गाड़ी चलने पर टा टा बाय बाय कहा और यात्रा की शुभकामनाएं दी ।
अब हमारा सफर आनंददायक हो गया था अब हमें कोई चिंता नही थी हम आराम से सो सकते थे और भीड़ भाड़ और धक्के से बचे हुए थे ।
हमारा यह सफर दो रात्रि और दो दिन का था । इतना लंबा सफर अब रोमांचक था और हमें कई चुनौतियों का सामना करना था ।
प्रीति और पूनम की अच्छी दोस्ती हो गयी थी और सारे सफर में उन्होंने हमारी अच्छी देखभाल की ।दो दिन की यात्रा हमे लंबी नही महसूस हुई ।खाते पीते बाते करते और आराम की नीद के साथ सफर कब खत्म हो गया पता ही नही चला ।दिन में हम खिड़की के सहारे बैठ जाते और बाहर के दृश्यों को देखते रहते ।बदलते दृश्यों के साथ भाषा और परिवेश भी बदलते जाते और गाड़ी छुक छुक करती तेजी के साथ आगे अपनी मंजिल की ओर बढ़ती जाती ।
तीसरे दिन हम लोग पुरी पहुंच गए
पुरी का स्टेशन भी हमे अजूबा लगा ।जिस प्लेटफॉर्म पर हमारी गाड़ी रुकी थी उसके आगे एक ऊंची दीवार थी यानी आगे ट्रेन नही जाती थी ।हम लोग तो लंबी लंबी दूर तक जाती पटरियों को देखने के आदि हो गए थे इसलिए यह हमें याद रहा और इस दृश्य को हम काफी देर तक सोचते रहे ।
स्टेशन से बाहर निकलने से पहले हमने एक अच्छा काम किया यह कि अगली यात्रा के लिए हमने आरक्षण करवा लिया ।अब हमें कोई चिंता नही थी ।क्योंकि हमारा अगला सफर भी अच्छा होने वाला था
स्टेशन के बाहर आते ही रिक्शेवालो ने हमे घेर लिया ।एक बूढ़े रिक्शे वाले ने पूछा -बाऊ कहाँ चलोगे ।हमने कहा -,,,हमे मंदिर देखना है ।उसके पास किसी सस्ते होटल में ले चलो ।उसने मुंडी हिलाई और कहा -आओ बाऊ ।हम रिक्शे में बैठ गए ।मंदिर ज्यादा दूर नही था ।होटल एक गली में था ।गली में प्रवेश करते समय रिक्शे वाले ने कहा-,बाऊ वो जो हाता देख रहे हो वो मंदिर का हाता है आप टहलते हुए जा सकते हो ।हमने देखा यह ज्यादा दूर नही था ।
होटल अच्छा था ।सारी आधुनिक सुविधा थी नाम था बसंत होटल ।होटल के रजिस्टर में हमारा नाम पता दर्ज करते हुए होटल वाले ने पूछा -क्या आप भुवनेश्वर भी जाएंगे ।हमारे हाँ कहने पर उसने कहा -,होटल से एक बस जाती है जो सारा दिन घुमा कर होटल में छोड़ जाती है आप चाहे तो उसकी बुकिंग करवा लें । हमे यह प्रस्ताव उचित लगा हममे से किसी को भी भुवनेश्वर की जानकारी नही थी ।इधर उधर भटकने के बजाय बस की यात्रा हमे मंजूर थी ।इसलिए हमने बुकिंग करवा ली ।
होटल वाले ने यह भी कहा कि जब आप मन्दिर जाये तो चमढे की कोई चीज न लेकर जाए ।वहाँ इसकी अनुमति नही है ।हमने उसकी बात गांठ बांध ली इसलिए शाम को जब मन्दिर देखने गए तो बेल्ट और पर्स होटल में ही छोड़ आये ।उन दिनों रथोत्सव की तैयारी चल रही थी ।उत्सव मूर्ति सजाई जा रहीं थी और रथ बनाने का काम चल रहा था ।हमे दर्शन की जल्दी थी इसलिए यहां ना ठहर कर हम मंदिर की और चले गए ।मंदिर में प्रवेश आसानी से मिल गया ।हमे डर था कि यहाँ लंबी लाइन होंगी और दर्शन के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ेगी लेकिन ऐसा नही हुआ ।हमे आराम से दर्शन हो गए ।एक बूढ़ा पंडित मिल गया जिसने विशेष पूजा कराई और दर्शन भी करवा दिए उसने मंदिर परिसर भी घूमा दिया और उसके बारे में बताया ।हम मंदिर की प्राचीनता और वेभव देख चकित थे ।एक जगह प्रसाद मिला रहा था हमने प्रसाद भी ग्रहण किया ।पंडित को हमने दक्षिणा में 51 रुपये दिए तो वह संतुष्ट हो गया और ढेर सारा आशीर्वाद दिया
दर्शन के बाद हमे बड़ी प्रसन्नता हुई ।अब हमारे पास घूमने का वक्त ही वक्त था ।हमे जानकारी मिली कि पास में ही समुद है ।हम टहलते हुए वहां पहुँच गए ।समुद्र का नजारा अदभुद था ।हम समुद्र के किनारे खड़े थे और समुद्र की लहरें शोर मचा रही थी ।तेज हवाओं से चेहरे पर थप्पड़ से पढ़ रहे थे और मन प्रफुल्लित हो रहा था ।शाम का समय था ।मछुआरे अपनी नावों से लौट रहे थे ।हम समुद्र के पास जाना चा रहे थे लेकिन प्रीति और पूनम ने रोक दिया ।हम दूर से समुद्र को काफी देर तक देखते रहे ।
अंधेरा होने लगा था सड़क पर पीले बल्ब टिमटिमाने लगे थे ।धीरे धीरे सन्नाटा परसने लगा था ।यह जगह हमारे लिए अनजान थी इसलिए हमने अब प्रस्थान करना ही उचित समझा ।
समुद्र के साथ जो मुख्य सड़क थी उसके पास बड़ा बाजार था ।बिजली की रोशनी से नहाया बाजार अजीब दृश्य उत्त्पन्न कर रहा था ।हमारी बाजार देखने में रुचि नही थी हमारी रुचि तो उन झोपड़ी नुमा स्टाल देखने की थी जो हमने रास्ते मे देखे थे ।उन स्टालों में वहां की स्थानीय चीजे और शिल्पकला की सामग्री थी ।चूंकि महिलाओं को इसे देखने और खरीदने का शौक होता है इसलिए वे आराम से इसे देखने मे मशगूल हो गयी ।हम साथ थे तो हम भी कुछ चीजों को उत्सुकुता से देख लेते ।महिलाओं ने काफी वक्त लगया और जब यह कार्य पूरा हुआ तो पेट मे चूहे कूदने लगे ।
हम मंदिर परिसर तक पहुँवः गए थे ।सौचा था यहां कोई रेस्ट्रोरेंट या ढाभा मिल जाएगा लेकिन ऐसा नही हुआ ।एक स्थान पर शुद्ध भोजनालय लिखा था ।हम वहां घुस गये तो अजब नजारा देखा ।एक बड़े हॉल में केले के पत्तो पर भोजन परोसा जा रहा था ।मालूम पड़ा यहां ऐसे ही भोजन मिलता है ।हम लोग भी बैठ गए हमारे सामने दूसरा कोई विकल्प नही था ।केले के पत्तों ने भोजन परोसा गया ।दाल चावल सब्जी रायता यही।
भोजान ज्यादा रुचिकर नहीं था लेकिन हम लोगो ने खा किया ।भोजन सादा था एकदम घरेलू इसलिए आसानी से पच भी गया ।हम लोग खाने पीने में खास सावधानी रख रहे थे । खाना खाकर मंदिर परिसर ने घूमे और रथोत्सव की तैयारी के साथ वहां लगे स्टालों में सामान भी देखने लगे और जब नींद आने लगी तो होटल में लौट आए ।
उस रात हम आराम से सोए लेकिन सवेरे जल्दी जाग गए ।हमें भुवनेश्वर की यात्रा पर जाना था और सवेरे आठ बजे तक तैयार हो जाना था ।सभी लोग समय से तैयार हो गए और हल्का नाश्ता होटल से ही कर भुवनेश्वर की यात्रा पर चल पड़े ।
इस समय हम तरोताजा महसूस कर रहे थे ।में खड़की के सहारे बैठा था और बाहर के दृश्यों को देखता हुआ अपनी यात्रा के बारे में सौच रहा था ।साथ चल रहे गाईड ने बताया कि हम सबसे पहले सूर्य मंदिर देखेंगे और फिर चिड़िया घर ।इसके बाद कुछ बड़े मंदिरों पर जाएंगे और फिर वापिस पुरी लौट जाएंगे ।
हमने सूर्य मंदिर के बारे में काफी कुछ पढ़ा था इसलिए जब हम सूर्य मंदिर घूम रहे थे तो उसके अवशेषों की भव्यता देख अचंभित थे ।हम कल्पना कर रहे थे कि जब मंदिर अपने पूर्ण यौवन पर होगा तो कितना विशाल ओर सुंदर होगा ।हमने यहां खूब फोटोग्राफी की और यहां की यादों को कैमरे मे कैद कर लिया ।
सूर्य मंदिर परिसर में बहुत सारी झोपड़ीनुमा स्टाल लगी हुई थी ।प्रीति और पूनम तो इसे देखने मे लग गयी और बाकी लोगो ने एक स्टाल पर बैठ कर कुल्हड़ में चाय की चुस्कियों का आनंद लिया ।
समय हो चुका था ड्राइवर ने जोर जोर से हॉर्न बजाना शुरू केर दिया ।मतलब अब बस चिड़िया घर को प्रस्थान करेगी । भुवनेश्वर का चिड़िया घर भी आम चिड़ियाघर जेसा ही था लेकिन बंदरो की शैतानियों ने हमे जरूर आकर्षित किया ।चिड़िया घर देखबे में काफी समय लगा और जब हम वापिस बस में आ रहे थे तो मौसम काफी खराब हो गया ।आकाश में काले काले बादल छा गए ओर तेज हवा चलने लगी ।हमे ठंड सी महसूस होने लगी ।बस में बैठते ही तेज बरिश होने लगी ।इसी बारिश के मध्य हम एक मंदिर में पहुंचे ।सह यात्रियो ने बारिश में ही मंदिर की ओर दौड़ लगादी ।हमारी भी मजबूरी थी तो हम भी बारिश में भीगते हुए मंन्दिर दर्शन के लिए चल दिये ।कोई 6-7मंदिर होंगे जो हम लोगो ने भीगते हुए देखे ।उस दिन पानी रुका नहीं और हम लोग मंदिर देखने का लोभ छोड़ नही सके परिणाम जब हम वापिस होटल लौटे तो हम कपड़ो सहित पूरी तरह भीगे हुए थे ।
हमने सबसे पहला काम किया कि कपड़े उतारे और बदन पोछ लिया और फिर तैयार होकर होटल के डायनिग होल में बैठ कर गरम गरम काफी और पकोड़ो का आनंद लिया ।इससे दिन भर की थकान से थोड़ी राहत मिली और हम लोगो को थोड़ा आराम भी मिला ।उस रात हम अच्छी नींद आयी ।
अब हमारे पास पूरा एक दिन बचा था । हम लोगो ने यह समय समुद्र का पास गुजरने के लिए तय किया ।हम खूब देर तक सोये फिर नहा धोकर मक्खन ब्रेड का तगड़ा नाशट्स किया ओर समुद्र की और निकल गए ।रास्ते मे मंदिर पड़ता था इसलिए फिर मंदिर के दर्शन किये और समुद्र तट पर आ गए । दिन ने समुद्र तट का नजारा ही कुछ और था ।समुद्र की लहरें जोर शोर से उछल रही थी ।समुद्र का शोर बेहद डरावना था ।कुछ लोग समुद्र में स्नान कर रहे थे ।हमारा भी मन हुआ लेकिन प्रीति ने मना कर दिया लेकिन समुद्र को पास से देखने का लोभ संवरण नही कर पाया ।मै पानी के करीब पहुंचा ही था कि एक तेज लहर आयी और मुझे भिगो गयी ।हड़बड़ी में मेरी चप्पल छूट गयी और तेज लहर उसे दूर ले गयी ।में चप्पल लेने आगे बढ़ा तो प्रीति ने मुझे पकड़ लिया -,क्या करते हो डूब जाओगे ।मेने कहा मेरी चप्पल ।उसने कहा -अभी थोड़ी देर में वापिस आ जायेगी ।और सचमुच अगली लहर में चप्पल किनारे आ गयी ।अब हम पानी से दूर हो गये ।किनारे काफी हलचल थी ।तमाम मछुआरे मछली पकड़बे की तैयारी कर रहे थे ।कुछ समुद्र में निकल।गए थे तो कुछ वापिस आ रहे थे ।हम काफी देर तक मछुआरों के कार्यों को देखते रहे ।बीच बीच मे हमारा कैमरा भी चलता रहा और हम अपनी यादों को सजाते रहे ।
शाम होने लगी थी ।समुंदर किनारे टूरिस्टों की संख्या बढ़ने लगी थी ।किसी मेले का दृश्य दिखाई देने लगा ।मौसम खुशनुमस था ठंडी हवाई के झोंके मन को प्रफुल्लित कर रहे थे ।वहां खाने पीने के कई स्टाल लगे थे ।एक जगह पकोड़े बन रहे थे ।सुगंध अच्छी आ रही थी ।खाने का मन किया तो पता चला कि मछली के पकोड़े है ।मछली सुनते ही उबकाई आ गयी । हमने अब खाने पीने का ख्याल छोड़ दिया और मुख्य सड़क पर आ गए ।मुख्य सड़क के पार अच्छा खासा बाजार था ।हम वक्त काटते हुए घूमते रहे ।वापिसी में झोपड़ी वाले स्टाल से कुछ सामान भी खरीदा और मंदिर परिसर में आ गए ।यहां से होटल दूर नही था इसलिये देर रात तक यहां मटरगस्ती करते रहे और समान खरीदते रहे
अगले दिन हम बनारस की यात्रा पर जाने के लिए रेलगाड़ी में बैठ चुके थे
क्रमश.....
अगला ....,बनारस की यात्रा ....
2..
संस्मरण....
अवकाश यात्रा सुविधा ...भाग ...,2
बनारस की यात्रा ...
पुरी से बनारस की यात्रा अच्छी रही ।ट्रेन पूरी स्टेशन से ही चलती थी और हमारा आरक्षण ही चुका था ।बसंत होटल से स्टेशन ज्यादा दुर नहीं था। पुरी आते समय हमें यह जानकारी हो गई थी इसलिए हम लोग बिना किसी तनाव के समय पर स्टेशन पहुंच गए ।ट्रेन प्लेटफार्म पर तैयार खड़ी थी हैं लोग अपने डिब्बे में बैठा गए तो थोड़ा अच्छा लगा ।
पुरी से बनारस की यात्रा लंबी थी दोपहर के चार बज रहे थे और हमें दो रात और एक दिन की पूरी यात्रा करनी थी ।यह बात अच्छी थी कि जगन्नाथ यात्रके साथ हम लोग आपस में खूब मिलजुल गए थे और अब हमारे बीच ओपचारिक ता जैसी कोई चीज नहीं रह गई थी सब कुछ व्यवस्थित था और पूरी यात्रा से हम सब प्रसन्न चित्त थे ।
पुरी से बनारस तक हम लोग ज्यादातर सोते ही रहे ।दिन में खड़की से बाहर के दृश्य देखते रहते और आपस में बातें करते रहते थे ।रात हमने खाना नहीं खाया था लेकिन दिन निकलते ही हम लोगो ने स्टेशन से चाय और कुछ खाने का सामान के लिए था ।दोपहर का खाना ट्रेन में ही खरीद कर खा लिया और ऐसा ही रात के खाने के लिए किया ।
दिन जा सफर अच्छा क टा ।स्टेशन आते जाते और चाय और सामान बेचने वालो की आवाजे लगने लगती ।पता नहीं क्यों हमें भूख कुछ ज्यादा ही लगा रहीं इसलिए कोई अच्छी चीज दिखाई देती तो खरीद कर खा लेते ।
सफर आनंद दायक था तो हमारे साथ चल रहे छोटे बालक (पूनम का बेटा )की जिज्ञासा और बाल सुलभ बाते भी हमर खूब वक्त काट रही थी ।दूसरे दिन शाम को हम बनारस स्टेशन पहुंच गए ।
बनारस भी हमारे लिए अनजाना था ।हम बनारस के बारे में कुछ नही जानते थे बस इतना ही कि यहां बाबा विश्वनाथ का मंदिर और गंगा घाट है ।यहां जब पहुंचे तो रात होने लगीं थी ।स्टेशन पर ही हमने जानकारी ली कि यह टूरिस्ट लॉज से बनारस दर्शन के लिए सवेरे बस चलती है ।हमे यहां 2 दिन ठहराना था और हम लोग बस खास जगहों पर ही जाना चाहते थे इसके लिए बस एकदम फिट थी ।
हमने बस का रिजर्वेशन करा लिया और शहर की और चल दिये ।एक रिक्शे वाले ने एक धर्मशाला में जगह दिलवा दी ।यह धर्मधाला भीड़भाड़ वाले इलाके में एक विशाल गली के अंदर थी और किसी पुराने हवेली का हिस्सा मालूम देती थी ।गली के बाहर व्यस्तम बाजार था जिसने जरूरत का हर समान मिल जाता था ।धर्मशाला हमारे लिए ठीक थी । एक बड़े हॉल में आराम दायक बिस्तर पड़े थे बाकी व्यवस्था भी ठीक थी ।धसर्मशाला कि संचालिका एक बूढ़ी औरत थी जिसने हमसे कहा- कोई परेशानी हो तो बता देना ।हमें यह अच्छा लगा ।
रात्रि स्नान के बाद थोड़े तरो ताजा होने के बाद हम लोग बाजार भ्रमण के लिए निकले ।यहां बाजार भी आम बाजारों जैसा ही था जैसे हम अपने शहर में देखते आये है ।बाजार में खूब भीड़ भाड़ और हलचल थी ।यहाँ काफी होटल ढाबे और रेस्ट्रोरेंट थे ।इसलियर भोजन के लिए जब हम एक होटल में घुसे तो हमे कोई दिक्कत नही आयी ।यहां हमारी पसंद का भोजन मिल गया यानी दाल रोटी सब्जी ।
उस रात हमे अच्छी नींद आयी इस कारण जब हम बस ने बनारस दर्शन कर रहे थे तो एकदम तरोताजा थे ।बस ने हमे बाबा विश्वनाथ के दर्शन कराए और गंगा घाट भी घुमाया ।हम लोग स्नान भी करना चाहते थे लेकिन समय कम होने के कारण स्थगित कर दिया ।हाँ गंगा की सेर जरूर नावों से की ।वापिसी मे गगां जल का आचमन किया और शरीर पर छिड़क कर मान लिया कि गंगा स्नान हो गया ।हमने वहाँ एक म्यूजिम और शायद एक बौद्ध बिहार को भी देखा ।अगर मुझे ठीक ठीक याद है तो एक किला भी देखा जिसके दरवाजे पर दो तोपे लगी है ।दिन में हमने अपना भोजन एक ओपीन रेस्ट्रोरेंट मे किया ।शाम जब धर्मशाला वापिस आये तो बेहद प्रसन्न थे ।उस रात मुझे बुखार चढ़ आया ।भुवनेशर में जो भीगे थे उसका असर नजर आने लगा ।तबियत बेहद ढीली हो गयी ।प्रीति ने मुझे एक गोली दी और कहा-चुपचाप सो जाओ ।
सवेरे जब में उठा तो बुखार गायब था और में अच्छा महसूस कर रहा था तब प्रीति और पूनम ने तय किया कि आज सबको खिचड़ी खानी चाहिए ।विचार हुआ तो बनाने का उपक्रम भी होने लगा ।महिलाएं इस मामले में तेज होती है और कैसे भी व्यवस्था कर लेती है ।प्रीति और पूनम बाजार से कुछ बर्तन खरीद लायी ।खिचड़ी का सामान भी आ गया ।बूढ़ी संचालिका से स्टोव मांग लिया और खिचड़ी तैयार हो गयी ।उस दिन खिचड़ी का स्वाद बेहद स्वादिष्ट था । मै उस खिचड़ी का स्वाद आज तक नही भुला ।आज 30 वर्षो से ज्यादा हो गए लेकिन आज भी याद करता हूँ तो उस दिन की खिचड़ी का स्वाद जीभ पर आ जाता है ।ना जाने क्या बात थी उस खिचड़ी में ।
शाम तक मै बिल्कुल ठीक हो गया और हम अगली यात्रा के लिए बस स्टैंड की और जा रहे थे हमारी अगली यात्रा इलाहबाद के लिए थी
क्रमश.....
अगला भाग ...इलाहबाद की यात्रा ...
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अवकाश यात्रा सुविधा ..…भाग ..3
इलाहबाद की यात्रा ....
इलाहाबाद जाने के लिए हमने बस की यात्रा को चुना इसलिए कि बनारस से इलाहाबाद के लिए बस आसानी से मिल जाती है ।यह भी था कि बनारस से इलाहबाद की यात्रा ज्यादा लंबी नहीं थी ।हम कुछ घंटो में ही इलाहबाद पहुंच जाते और दिन कि यात्रा में हमें ज्यादा परेशानी भी नहीं होती ।वैसे भी हम लोग चाहते थे कि दिन ढले ही इलाहबाद पहुंच जाए ।
हम लोग रिक्शे से बस स्टैंड पहुंच गए ।बस स्टैंड भीड़ भाड़ वाले बाजार के बीच में था ।रिक्शे से उतरे तो देखा बस स्टैंड पर बस तैयार खड़ी थी ।इलाहबाद की आवाजें लग रही थी ।।हम एक बस में चढ़ गए ।बस थोड़ी सी ही भरी थी आराम से मनपसंद सीटें मिल गई ।थोडी शांति मिली कि अब आराम से यात्रा हो जाएगी ।
बनारस से इलाहबाद की यात्रा ज्यादा लंबी नही थी ।ट्रेन में और कम समय लगता लेकिन मुझे ट्रेन से ज्यादा बस की यात्रा अच्छी लगती है ।ट्रेन को लेकर चढने तक एक तनाव सा बना रहता है ।वैसे भी मुझे ट्रेन के बारे में ज्यादा जानकारी कभी नही रही ।आज भी कहीं जाना होता है तो मै बस मे जाना ही पसंद करता हूँ
इलाहबाद की यात्रा सुखद रही ।खिड़की के सहारे मुझे बस रंगीन रोशनी में नहाते मकानों और टिमटिमाते सड़क के बल्ब ही दिखाई दे रहे थे बाकी सारे दृश्य रात के अंधेरे में डूब गए थे ।
हम लोग सकुशल इलाहाबाद बस स्टैंड पहुंच गए ।बस बीच में एक स्थान पर रुकी थी जहां हमने कुछ खा पी लिया और चाय पी ली ।
बस स्टैंड पर हमें कई रिक्शे वालों ने घेर लिया ।कहा...कहां चलेंगे साहब ।हमने वहीं कहा जो हम कहते आए थे भाई किसी अच्छे होटल या धर्मशाला में के चलो। सभी कहने लगे चलिए साहब हम ले चलते हैं ।हमें एक रिक्शेवाला सही लगा हमने उसे चुना और वो हमे एक अच्छे होटल में ले गया ।
हमें वो होटल अच्छा लगा यह हमारे बजट के अंदर भी था इसलिए हमने उस होटल में ठहरने का निश्चय किया और हमारा यह फैसला अच्छा रहा ।
इलाहबाद में हम जिस होटल में ठहरे थे वह काफी बड़ा था और किसी धर्मशाला जैसा प्रतीत हो रहा था ।उसका विशाल आँगन था और तीन तरफ ऊंची इमारत बनी हुई थी ।हमे दूसरी मंजिल में कमरा मिला था ।होटल पहुचने वाले रिक्शे वाले ने कहा -बाबूजी अगर गंगा घाट चलना है तो में सवेरे आ जाऊंगा ।हमने हॉ कह दी क्योकि यह हमारे लिए ठीक था ।वैसे भी हम इलाहाबाद के बारे में कम जानते थे और हम लोगो ने कुछ खास स्थानों कों ही देखने का निर्णय किया था । हमें तो यहां संगम स्नान करने कि धुन सवार थी और सभी गंगा स्नान के लिए उत्सुक थे ।
उस रात हमने होटल में ही खाना खाया और फिर रात में घोड़े बेच कर सोए ।
सवेरे हम जल्दी जग गए और नाश्ता कर घुमने के लिए तैयार हो गए ।
सवेरे सवेरे रिक्शा वाला भी अपने वादे के अनुसार आ गया और हम लोग तुरंत ही संगम स्नान के लिये चल दिये ।
गंगा घाट होटल से काफी दूर था ।लेकिन सड़क पर हलचल कम थी और सड़क काफी अच्छी थी ।रिक्शे वाले ने हमे घाट से पहले ही उतार दिया और कहा -यहां से आपको पैदल ही जाना पड़ेगा ।गंगा घाट थोड़ी ही दूरी पर था और हमे वहाँ पहुचने में कोई मुश्किल नही हुई ।
गंगा घाट का नजारा ही कुछ और था ।यहां आस्था की लहर बह रही थी ।हजारो लोग संगम स्नान की इच्छा लेकर यहां आए थे ।हम लोग भी उन्ही में से थे ।गंगा किनारे दर्जनों नाव खड़ी थी और वे अपनी नाव से चलने का आग्रह कर रहे थे ।एक अच्छी बात थी कि श्रद्धालुओं को लेकर कोई खीचातानी नहीं थी इसलिए नाव तय करने ने हमें कोई परेशानी नहीं हुई
संगम ..किनारे से काफी दूरी पर था और यहाँ नाव से ही जाया जा सकता था ।हमें एक बूढ़े मल्लाह ने आकर्षित किया उसका नाम रामस्नेही था ।हम लोग उसकी नाव में सवार हो गए और जब डगमगाती नाव ने गंगा में चलना शुरू किया तो प्रीति ने कहा -बाबा कहीं लुढ़का तो नही दोगे ।इस पर रामस्नेही खूब हँसा ।बिटिया हमारी पूरी उम्र गुजर गई गंगा में नाव चलते ।हमारे बुजुर्ग भी यही काम करते आये है ।गंगा माई ने कभी दुख नही दिया ।फिर वो अपनी कहानी सुनाने लगा ।
संगम तट तक पहुचने में नाव की सवारी यादगार रही ।संगम तट पर पंडो के तख्त और झंडे अलग नजर आ रहे थे ।दरअसल पंडो ने भी नदी के हिस्से बांट कर लिए थे और फिर वही यात्रियों से दक्षिण वसूल करते थे ।में पहले भी यहाँ आ चुका था और पंडो की व्यवस्था को लेकर आक्रोशित भी हुआ था लेकिन इस बार मे शांत था और मुझे मालूम था कि मुझे क्या करना है ।
नाव एक तख्त से टकराकर रुक गयी ।पंडे ने आओ जिजमां कह कर स्वागत किया ।हम लोगो ने कपडे उतारे और पानी मे उछलकूद करने लगे ।गंगा का पानी बहुत ठंडा था लेकिन हमारे जोश में कोई कमी नही आई ।हम काफी देर तक स्नान करते रहे जब तक हमारा मन नही भर गया ।जब स्नान खत्म हुआ तो पडे ने तिलक लगाया और हमने उसे यथेष्ठ दक्षिणा दी । यह अच्छा हुआ कि दक्षिणा को लेकर कोई चख चख नहीं हुई ।
हमने संगम से पानी लेने का निर्णय किया ।इसके लिए हमने प्लास्टिक की बोतल गंगा किनारे से खरीद ली थी रामसनेही ने कहा बाबूजी मै आपकी सही जगह से गंगाजल दिलवाता हूं उसने नाव एक स्थान के लिए मोड़ दी और फिर एक स्थान पर कहा कि बाबूजी गंगा जल भर लो ।यहां गंगा का जल अच्छा है यहां हमें गंगा जल ज्यादा स्वच्छ लगा ।फिर रामसनेही ने कहा बाबूजी यहां संगम के दर्शन करलो ।हमने देखा वह दो नदीयों की धार बह रही थी एक थोड़ी काली और एक सफेद ।रामसनेही कहा देखो बाबूजी यह गंगा जमुना और सरस्वती नदी का मिलन है ऐसा दृश्य तो सिर्फ इलाहाबाद में संगम में ही देखने को मिलता है ।इस अदभुद दृश्य को देख हम आनंदित हो गए और संगम को प्रणाम कर अपनी श्रद्धा व्यक्त की ।
हमने गंगा जल भर लिया और सोचा कि जब जब भी इसे देखेंगे तो इलाहबाद की याद आएगी खासकर संगम स्नान की
हम लोगो ने गंगा जल भर लिया और गंगा जल लेकर जब हम किनारे पहुंचे तो गंगा किनारे एक किले जैसी इमारत दिखी ।किला देखने में हमारी रुचि नही थी न हमने जानने का प्रयास किया। बाद में पता चला कि वो एक मुगलकालीन किला है जिसे अकबर ने बनवाया था ।यह भी जानकारी मिली कि जब अकबर इलाहाबाद आया था तो उसे यह स्थान बेहद पसंद आया था और उसने यहां आनेवालों अपने शाही परिवार के लोगों के ठहरने के लिए यह किला बनवाया था । खैर हमने सरसरी निगाह से उसे देखा जरूर और फोटो भी खींची
हम लोग यहां से वापिस बाहर की और चल दिये । रास्ते मे एक छोटा सा बाजार दिखा जिसमें बच्चो के खिलौने और धार्मिक चीजे मिल रही थी । गंगा जल भरने के लिए प्लास्टिक की बोतल और मूर्तियां बिक रहीं थी। यहां एक हनुनान जी का मंदिर देखा जहां हनुनान जी ले टे हुए अवस्था मे थे ।जब हम वहां पहुंचे तो उस समय आरती चल रही थी। हम लोग भी आरती में शामिल हो गए । हमने हाथ जोड़े प्रार्थना की और दान पेटी में कुछ सिकके भी डाले ।
वहां से निकल जब मुख्य सड़क पर आए तो रिक्शे वाला इंतजार करते मिला ।
हमने पूछा ..अरे तुम अब तक खड़े हो ।
वो बोला बाबूजी कोई सवारी नहीं मिली तो मै आपका इंतजार करने लगा ।
हमने कहा ठीक है लेकिन बताओ कि यहां और कौन कौन सी जगह है देखने को ।
उसने कहा ..यहां आनंद भवन देखने लोग जाते है ।कहिए तो ले चलूंगा
हमने कहा तो ले चलो। वैसे आनंद भवन कितनी दूर है यहां से ।
रिक्शे वाले ने कहा.. बाबूजी ज्यादा दूर नहीं है आराम से पहुंच जाएंगे ।
हम लोग रिक्शे ने बैठ गए और फिर रिक्शे वाला आनंद भवन की और चल पड़ा ।
हमने आनंद भवन के बारे में खूब सुना और पढ़ा था लेकिन देखने का मोका नहीं मिला था ।वैसे भी हमने इलाहबाद के लिए केवल एक दिन का वक्त ही चुना था
दोपहर का समय था मौसम सुहाना था ।सबसे बड़ी बात हम लोगो में ऊर्जा भरी पड़ी थी और हमें इस प्रकार घूमना अच्छा लग रहा था ।रिक्शे में चलते हम इलाहाबाद के जनजीवन को अच्छी तरह से देख पा रहे थे ।सब कुछ हमारे शहर जेसा ही था लेकिन भाषा और पहनावे में थोड़ा अंतर था ।हम लोग काफी देर तक इन दृश्यों को देखते रहे और यह क्रम तब रुका जब हमारा .रिक्शा आनंद भवन के पास पहुंच गया था ।
आनंद भवन एक चौड़ी गली में था ।एक ऐतिहासिक स्थान है जहां देश के तीन तीन प्रधानमंत्री रहे ।अब ये एक संग्रहालय है ।यहाँ आजादी के समय गांधीजी के आगमन और उनके जीवन शैली को प्रदर्शित किया गया है ।यह एक दुमंजिला इमारत है और बड़ी खूबसूरत है
हमने यहाँ गांधीजी जहा ठहराते थे उनके बिस्तर ,आसान ,चर्खा और बेठक खाने को देखा ।यहाँ उनके द्वारा इस्तेमाल की गई कपड़े चश्मा और अन्य चीजों को भी देख और उन ऐतिहासिक पन्नो को उकेरा जो कभी घटित हुई थी ।
आनंद भवन परिसर का उद्यान काफी खूबसूरत था ।उस दिन मौसम ठंडा था और धूप खिली हुई थी हम उद्यान की हरी हरी घास में खूब लौटते रहे हमे अच्छा लग रहा था ।हम लोगो ने यहां काफी समय गुजरा ओर साथ लाये नमकीन का भी आनंद लिया ।
शाम होने लगीं थी और हमे कहीं और नही जाना था इसलिए हमने रिक्शा वाले से कहा आराम से रिक्शा चलाओ और बाजार दिखाते हुए होटल की और ले चलो ।
रिक्शे वाले को हमारी बात समझ में आ गई और उसने धीरे धीरे रिक्शा चलाया और हमने बीच रास्ते में पड़ने वाले बाजरे का खूब संदार्षण ।इलाहबाद के बाजार भी आम बाजारों जैसे ही थे खूब भीड़भाड़ और तरह तरह की दुकानें ।
होटल आ गया था ।अब हमें अगली यात्रा पर अयोध्या जाना था और होटल भी छोड़ना था
इस समय हमारे पेट मे चूहे कूद रहे थे इसलिए सौचा की पहले भरपेट भोजन किया जाये तब चला जाये ।हम जहां ठहरे थे वो काफी भीड़भाड़ वाला इलाका था ।दर्जनों होटल थे तो खाने पीने के लिए मनपसंद होटल ढूढना कठिन नही था ।यहं हमने भरपेट खाया ।प्रीति ने कहा भी की यात्रा पर निकलना है थोड़ा कम खाओ मगर जीभ नही मानी ।जो होगा सो देखी जाएगी कहकर भरपेट खाया ।लौटकर आये तो थोडा आराम किया और फिर सामान की पैकिंग करनी शुरू कर दी ।
उस समय शाम का समय था बस स्टैंड भी ज्यादा दूर नहीं था ।अयोध्या को लेकर कोई तनाव नहीं था लेकिन हम ज्यादा रात नहीं करना चाहते थे ।इसलिए हम रात होने से पहले ही बस स्टैंड पहुंच जाना चाहते थे । थोड़ी देर बाद हमने होटल का भुगतान किया और होटल छोड़
दिया ।
हमारा रिक्शा वाला तैयार था।हमने रिक्शा पकडा और सीधे बस स्टैंड आ गए । बाद स्टैंड पर अयोध्या जाने के लिए बस आराम से मिल गई । फैजाबाद फैजाबाद की आवाज पर हम एक बस के पास पाबुंचे तो बस में हमें अपनी पसंद की सीट मिल गई ।अब हम अयोध्या के लिए बस में सवार हो चुके थे और बस का ड्राइवर हॉर्न बजा कर बस की रवानगी का संकेत दे रहा था ।
अब हमारी अगली यात्रा अयोध्या जी की थी।
क्रमश ..
4... संस्मरण
अवकाश यात्रा सुविधा ....भाग ...4
अयोध्या की यात्रा ..
अयोध्या को लेकर कोई तनाव नही था ।यहां हमारी ननिहाल थी ।बचपन मे गर्मियों की छुट्टी यहीं काटा करते थे ।यहां की गली गली से परिचित थे और यहाँ देखने को बहुत कुछ था ।
इलाहाबाद से अयोध्या के लिए आसानी से बस मिल गयी ।ज्यादा देर का सफर नही था हम आधी रात से पहले ही फैजाबाद पहुंच गए । सफर वैसा ही रहा जैसा पहले भी हमने बाद की यात्रा में अनुभव किया था । लगभग ऊंघने हुए हमने अपना सफर पूरा किया ।
फैजाबाद से अयोध्या करीब 3-4किलोमीटर दूर है ।यहां जाने के लिए रिक्शे की सवारी मिल जाती थी । ऊ न दिनों ऑटो नहीं चला करते थे तांगा या रिक्शा ही हुआ करते थे।
बस स्टैंड पर रिक्शे वालों ने घेर लिया और पूछने लगे... तीर्थ यात्रा पर आए है.. चलिए आपको सही जगह ले चलते है । एक पंडे ने भी कहा... चलिए आपको अच्छे से अयोध्या दर्शन कराते है ।
हमने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया । हमें यह जानकारी थी कि धार्मिक स्थानों में पंडा गिरी खूब चलती है लेकिन हमें यह संतोष था कि यहां हमें उनकी जरूरत नहीं है ।हमने रिक्शे वालों को पकड़ा और उन्हें पता बताया कि खाकी अखाड़ा चलना है तो वे समझ गए कि यात्री अयोध्या से परिचित है । हम आधी रात से पहले ही अपने मामा जी के घर पहुंच गए और दरवाजा खड़खड़ाते ही दरवाजा खुल गया ।
हमारे ननिहाल का नाम श्री कुटिराम् था और हम उस इसी नाम से पुकारते थे ।यह पुराने जमाने के हिसाब से बना था और इसका परिसर काफी फेला हुआ था ।एकदम खुला खुला । पीछे का भाग पक्का था और बाकी सब ऐसा ही था थोड़ा कच्चा और थोड़ा पक्का ।
तब श्री कुतिरंम में हमारे मामा मामी पेरीअम्मा(बड़ी मौसी,,) और चिट्टी(, छोटी मौसी )रहती थी ।हमने मामा जी को पहले ही अपने आने की सूचना दे दी थी इसलिए सारा इंतजाम हो गया ।हम सबको देख उन्हें बड़ी खुशी हुई और मामी जी ने हमारा बड़ा खयाल रखा
उस रात खाना खाकर हम छपरा मे सोए ।छपरा यानी खपरैल वाला कमरा ।काफी लंबा चोडा कमरा था जहाँ हर शाम कीर्तन भजन चलते थे ।यही हम लोगो की दरी लग गयी और हम आराम से सो गये
छपरा के साथ हमारी बहुत सारी याद जुड़ी थी ।जब पातीं जिंदा थी तो वो यही बैठ कर कुछ ना कुछ करती रहती थी ।अकसर चक्की चला कर कुछ ना कुछ पिसती रहती थी ।हम उन्हें चक्की चलते देखते रहते थे कभी कभी अपने छोटे छोटे हाथों से उसे चलाने कि कोशिश भी करते रहते ।
पति जब इमली चीलती तो हम उनके पास सरक आते और
हसरत से उसके बीज निकालने का इन्तज़ार करते ।ये बीज जिन्हे हम चिंए कहते थे हमारे खेलने के का म आते थे और हमें इन्हे इकट्ठा करने को शोक था और उसे जेब ने भरकर घूमा करते थे ।
पार्टी के निधन होने के बाद यहां रघु भइया अक्सर कुछ व्यंजन बनाया करते थे तब हम उनके आस पास इकट्ठा ही जाते थे ।वे हमें भी कुछ हिस्सा दे दिया करते थे ।
छपरा एक तरह से सार्वजनिक क्षेत्र था जहां बाहर से आने वाले लोग गपशप लगाते थे ।शाम यहां भजन कीर्तन और आरती का कार्यक्रम होता था सभी मिलकर गाते और बजाते थे
मुझे याद है तब वहां वासुदेव नाम का एक लड़का आया करता था ।वे बाबा कल्याणदास का चेला था ।बाबा जी बहुत बड़े कलाकार थे और फिल्मी पोस्त्तर बनाया करते थे ।उनके पोस्टर सारे अयोध्या ने प्रचिलित थे ।बाबा हनुमान गढ़ी में रहते थे और हम अक्सर वहां जाया करते थे ।
वासुदेव हमसे बड़े थे लेकिन हम उनसे घुलमिल गए थे ।एक बार वे सिनेमा चलने की मशीन लेकर आए थे और हमें दिखाया था यही छपरा में बैठ कर तब हमे बड़ा मजा आया था
रात अच्छी नींद अाई ।सपने में पुराने लोग दिखे ।पुराने किस्से याद आए । सपनो की दुनिया में डूब कर सारी रात कब खत्म हो गई पता ही नहीं चला ।
सवेरे हमे जल्दी जगा दिया गया । वेसे तो घर मे सभी जाग गए थे और नहा धोकर पूजा पाठ कर रहे थे ।हम ही लोग ऐसे थे जो देर तक सो रहे थे ।फिर भी शहर के हिसाब से हम जल्दी जाग गए थे ।मामी जी ने कहा -,जल्दी से नहा धोलो और हनुमान गढ़ी के दर्शन कर लो ।उन्होंने चाय भी भिजवा दी क्यो की हमे सुबह सुबह चाय पीने की आदत थी ।
यद्यपि हम हनुमान गढ़ी के दर्शन कभी भी कर सकते थे लेकिन मामी जी का आग्रह था कि सवेरे आरती के समय दर्शन करना श्रेष्ठ है । हनुमान घड़ी हमारे घर से ज्यादा दुर नहीं था ।पैदल चलते तो 10 मिनट में पहुंच जाते ।मंदिर के घंटे हमें साफ साफ सुनाई देते थे और घर के लोग बताते की अब कोन सी आरती हो रही है । देखा जाए तो वहां घड़ी के हिसाब से नहीं। बल्कि हनुमान घड़ी के घंटे के हिसाब से काम चलता था किसी को घड़ी देखने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी । मंदिर का घंटा ही सब बता देता था
सवेरे का चाय नाश्ता हो गया तो फिर स्नान करने का उपक्रम शुरू हुआ । दैनिक क्रियाओं के लिए प्रवेश द्वार के पास अलग स्थान था ।एक लंबे गलियारे को पर कर खुला आंगन था वहीं एक कोने में इसकी व्यवस्था थी। पुराने जमाने में ऐसा ही हुआ करता था
एक एक कर सभी अपने अपने कार्य में लग गए । नहाने के लिए हमने कुँए के चबूतरे को चुना । यद्यपि स्नान घर था लेकिन हम कुँए से पानी खिंच कर नहाना चाहते थे ।शहरों में तो अब कुँए दिखते नहीं इसलिए हम कूएं से नहा कर आनंदित होना चाहते थे । कुएं से नहाने में बड़ा आनंद आया । तरोताजा भी ही गये और मन भी प्रफुल्लित ही गया । शीघ्र ही तैयार होकर अब हनुमान गढ़ी चलने की तैयारी करने लगे ।
हनुमान गढ़ी हमारे घर से ज्यादा दूर नही था ।पैदल ही 10 मिनट मे पहुंचा जा सकता था । हम लोगो के साथ वेंकट देशिकाचारी भी चल दिये वेसे हम उन्हें पप्पू जी ही कहते थे और वो हमारे लिए सिर्फ पप्पू जी ही थे ।
हनुमान गड़ी आराम से टहलते हुए पहुँच गए फिर हमने लड्डू खरीदे । यहाँ भोग मे बेसन के लड्डू चढ़ाए जाते है ।यहां मंदिर की सीढ़ियों से पहले बहुत सारी दुकानें थी एक छोटा मोटा बाजार भी था । पप्पू जी ने एक परिचित के यहां से लड्डू दिलवाए और फिर वहीं चप्पल उतरने को कहा ।हम लोगो ने ऐसा ही किया और फिर दर्शन करने के लिए चल दिए ।
पप्पू जी मुझसे छोटे थे काफी छोटे ।अपने चार भाइयों में चोथे नंबर के । सबसे बड़े रघु भइया फिर नागराज फिर संपत जी और फिर पप्पू जी ।एक भाई गोपी और था लेकिन वो सरयू में डूब गया था लेकिन उसके बावजूद भी हमरे बीच एक भावनात्मक संबंध था ।जो हमेशा दिखाई देता है ।
मंदिर दर्शन करने के लिये यहां वहुत सारी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है ।यहां बंदरो के झुंड हमारा स्वागत कर रहे थे और लोग लड्डुओं की सुरक्षा के लिए सतर्क थे ।
सीढियां चढ़ना मुश्किल नहीं था आसानी से सीडियां चढ़ कर हम मुख्य द्वार पर आ पहुंचे ।थोड़ा आगे चल कर एक उचें चबूतरे पर मुख्य मंदिर बना है ।मंदिर मे हनुमान जी बालरूप में मां अंजनी की गोद मे विराजे है ।पप्पू जी ने बताया कि असली मूर्ति तो तहखाने मे है जिसे पुजारी भी नही देख सकता ।जो ये मूर्ति है वह उसकी प्रतिकृति है ।
हमने हनुमान ही के दर्शन किये ...भोग चढ़ाया और फिर मंदिर की परिक्रमा दी ।यहां बहुत सारे साधु संत भी रहते है हमारा उनसे परिचय था ।हमारी अम्मा को जानने वाले भी बहुत थे ।हम सबसे मिले ।वे बड़े प्रसन्न हुए और हाल चाल पूछने लगे ।हम भी काफी साल बाद अयोध्या आये थे सबसे मिलनाअच्छा लगा । मंदिर में भी बदलाव आए थे पप्पू जी उसके बारे में बताने लगे थे ।
हमारे यहाँ हनुमान गढ़ी की मान्यता है ।इसकिये यहाँ सबसे पहले हम लोगो ने दर्शन किये ।दर्शन कर मन आनंदित हुआ और शांति मिली ।हम काफी देर तक मंदिर भ्रमण करते रहे और अपने अपने हिसाब से दान पेटी में सिक्के भी डाले ।
मंदिर दर्शन के बाद वापिस घर आ गए और फिर भोजन की तैयारी होने लगी ।भोजन के लिए कुएं के सामने वाले मुख्य कमरे में बुलाया गया यहां पट्टे पर बैठ कर सभी ने एक साथ भोजन किया ।भोजन परोसने का काम ओईटीआईएसएमएमएस और चित्ती ने किया ।हमें एक साथ भोजन कराना अच्छा लगा ।
भोजन हो गया तो फिर आराम के लिए फिर छपरा में। आ गए । कार्यक्रम बना कि।शाम को बाकी मंदिरों के दर्शन करने चलेंगे । शाम को इसलिए की दोपहर में मंदिरों के पट बंद हो जाते है और भगवान भी आराम करते है ।
शाम हो गई थी ।हम लोग नींद में डूबे हुए थे तभी पप्पू जी ने जगाया ।
भइया जल्दी से तैयार हो जाओ बाकी मंदिर देखने चलेंगे ।हम लोग फुर्ती से जागे औए तैयार हो गए ।मामी जी ने चाय नाश्ता भिजवा दिया ओर हम खा पी कर मंदिरों को देखने चल दिये ।
अयोध्या ज्यादा बडा नही है पैदल ही परिक्रमा की जा सकती है ।हम फिर हनुमान गढ़ी के रास्ते रामजन्मभूमि पर पहुंचे फिर कनक भवन के दर्शन करते हुए तमाम मंदिर देखे । यहां घर घर रामजी विराजते है । बहुत सारे राम मंदिर है। परिक्रमा लगते हुए हम लक्ष्मण घाट पहुँवः गए ।यहां अम्माजी का मंदिर है । दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर में हमारी विशेष श्रद्धा और प्रेम है ।यहां के पुजारी से विशेष पारिवारिक सम्बन्ध थे ।हमारा जनेऊ संस्कार भी इसी मंदिर में हुआ था ।हमे देख पुजारी बहुत खुश हुए मंदिर में विशेष पूजा अर्चना हुए और फिर पुजारी और उनके परिवार से चर्चा होती रही उन्होंने काफी और उपमा खिलाया ।
यहां से निवृति हुए तो सरयू घाट पहुँच गए ।अब तक रात हो चुकी थी ।सरयू का पानी हिलोरे मचा रहा था ।पप्पू जी ने कहा कि अभी पास मत जाना कल सुबह स्नान करने आएंगे ।हमने उनकी बात मान ली और फिर वापिसी में तुलसी उद्यान और श्रृंगार हाट होते हुए वापिस घर लौट आए आते हुए कुछ समय तुलसी उद्यान में भी बिताया ।
तुलसी उद्यान एक सुंदर पार्क है जहंकी हरी हती घांस और शांत वातावरण ने हमें आकर्षित किया
दुसरे दिन सवेरे ही हम लोग निकल पड़े और जब सरयू तट पर आये तो सरयू शांत थी । घाट पर अच्छी व्यवस्था थी ।पंडो का कोई झंझट नही था ।सुरक्षा भी चाक चौबंद थी ।यहाँ भी आस्था जब समुद्र लहरा रहा था । सेकड़ो लोग स्नानः कर रहे थे ।पप्पू जी ने बताया अयोध्या में सरयू स्नान का विशेस महत्व है इसलिए जो अयोध्या आता है वो सरयू में स्नान जरूर करता है ।हम लोग खूब डुबकी लगा कर नहाये ।ऐसा कर मन खूब आनंदित हुआ । सबको बड़ी शांति मिली ।
अयोध्या में हमारे काफी रिश्ते दार और पहचान वाले रहते हैं उन्हें मालूम पड़ा तो मिलने आने लगे ।हमार ज्यादातर संमय उनसे मिलने में लगा ।हम दिनभर इसी में व्यस्त रहते और शाम को सरयू घाट चले जाते ।वहां से लौटते तो तुलसी उद्यान जरूर बैठते ।यह एक सुंदर उद्यान है ।वापिसी में श्रृंगारहाट होते हुए घर आते ।श्रृंगारहाट एक छोटा सा बाजार है जहाँ जरूरत का सामान मिल जाता है ।यहां धार्मिक चीजे ज्यादा दिखाई दी जिन पर भीड़ कम लेकिन तिलक लगाएं गपशप मारते लोग ज्यादा दिखे ।में आश्चर्य में था कि यहां लोगो के पास फुर्सत ही फुर्सत थी कोई हड़बड़ी नही कोई जल्दीबाजी नही ।साब कुछ शांत और स्थिर था ।हमारा ज्यादातर वक्त मंदिरों कें दर्शन में ही बीता । बाकी जिसकी इच्चा होती बाजार घूमने निकल जाता ।
अयोध्या का प्रवास थोड़ा लंबा रहा ।जब चलने की बात होती तो मामी कुछ और दिन ठहरने की कहती लेकिन हमें आगे भी यात्रा करनी थी इसलिए एक दिन हमने अपना सामान पैक कर लिया और अगली यात्रा के लिए तैयार हो गए ।प्रस्थान से पूर्व मामी जी ने हम सबका टीका किया ओर कुछ वस्त्र भी दिए ।पूनम और उसका परिवार इस स्नेह भाव से अभिभूत हुए ।
हमारी अगली यात्रा लखनउ के लिए थी और इसके लिए भी हमने बस से चलने का निर्णय किया । बस की यात्रा के लिए हमें फैजाबाद जाना पड़ा जहां से लखनउ लिए बस आसानी से मिल जाती थी ।
कुछ समय बाद हमारी बाद लखनउ की तरफ दौड़ रही थी
क्रमश.....
अगली यात्रा ..लखनउ की .. भाग 5
5..
अवकाश यात्रा सुविधा ....भाग..5
लखनउ की सैर...
लखनउ हमारी यात्रा का अंतिम पड़ाव था इसके बाद हमें अपने आगरा ही जाना था ।हालांकि यह तक की यात्रा हमरी अच्छी रही थी और भारी थकान के बावजूद भी हमारे अंदर ऊर्जा भरी हुई थी ।अब हम लखनउ घूमने के लिए तैयार थे । हम लोग लखनउ से अच्छी तरह परिचित थे यह बात अलग थी कि हम लोग पर्यटकों की तरह ज्यादा घूमे नहीं थे ।
लखनउ हमारे आगरा से ज्यादा दूर नहीं है ।सुबह चल कर शाम को घर वापिस आ सकते है ।बचपन में अन्ना के साथ कई बात आए भी थे ।अयोध्या जाते हुए लखनउ से दूसरी ट्रेन पकड़नी होती थी इसलिए लखनउ स्टेशन खूब घूमे हुए थे ।एक बार अन्ना के साथ किसी के घर भी गए थे ।मुझे अच्छी तरह याद नहीं लेकिन अवचेतन मस्तिष्क में कुछ शेष रहा था जो थोड़ा थोड़ा याद आता है । अन्ना (पिताजी) बिजनेस मैनेज र थे अक्सर टूर पर रहते थे ।एक बार
, हमें भी उनके साथ जाने का मौका मिला था ।तब लखनउ स्टेशन पर रेलवे लाइन पर लगे ट्रेन को पानी डालने वाले पाईप से खूब नहाए थे और फिर लखनउ में दिन भर घूमते रहे थे ।
लखनउ के इमामबाड़े के बारे में सुना था लखनउ अपने चिकिन के काम के लिए प्रसिद्ध है । महिलाओं की रुचि इसमें ज्यादा थी । वे बाजार घूमना चाहती थी ।वैसे भी यह यात्रा समाप्ति पर थीं फ़िर तो विश्राम ही करना था ।यह बात भी थी कि तब वापिसी में ट्रेन भी लखनउ से मिलती।थी । तो स्टेशन पर चार घंटे बिताने के बजाय यदि लखनउ रुक जाते तो कोई दिक्कत नहीं थी ।शायद यही सोच हम लोगो ने लखनउ घूमने का मन बना लिया ।
बस की यात्रा अच्छी रही ।अयोध्या से लखनउ की यात्रा में कोई तकलीफ़ नहीं हुई ।सफर भी काफी लंबा नहीं था खाते पीते खिड़की से दृश्यों को देखते हुए हमारी बस की यात्रा लखनउ पहुंच कर समाप्त हुई .... हम लखनऊ देर शाम तक पहुचं गए ।
अंधेरा होने लगा था और एक रिक्शे वाला हमें होटल ले जा रहा था ।वों जिस होटल में लेकर गया वहां कोई कमरा खाली नहीं था । फिर वो दुसरे होटल में लेके गया... वहां भी हमें निराशा हुई । वो भी पूरी तरह बुक था । फिर हमारा होटल तलाशने का काम शुरू हुआ। हम होटल तलाश रहे थे और आश्चर्य था किसी भी होटल मे जगह नही मिली ।हम निराश हो गए सौचने लगे वापिस स्टेशन लौट जाए ।पता चला कि उन दिनों विधान सभा का सत्र चल रहा था इसलियर सारे होटल बुक हो गए थे । लेकिन रिक्शे वाले ने हिम्मत नही हारी वह लगातार कोशिश करता रहा ।एक होटल वाले ने कहा -हमारे तहखाने मे एक कमरा है वो आप देख ले ।
हमने कमरा देखा वह होटल की रसोई का एक हिस्सा था। कमरा तो अच्छा था लेेकिन उसके चारों और खाना बनाने का सामान बिखरा पड़ा था ।हमारी मज़बूरी थी ।वेसे भी हमें एक रात ही काटनी थी । हमने कमरा लेे लिए और रिक्शे वाले से लखनऊ घूमने की बात पक्की करली । सारी रात हमने कमरे में आराम से काटी और दूसरे दिन सवेरे जल्दी उठा कर सारे काम निबटा लिए और घूमने के लिए तैयार हो गए ।
रिक्शेवाला वाला सवेरे अपने टाइम पर आ गया ।हम लोग तैय्सर थे ।हम रिक्शे में बैठ गए ।आज दिनभर घूमने का विचार था ।हमने रिक्शे वाले से कहा... हमे कुछ पेट पूजा करनी है किसी रेस्ट्रोरेंट लेके चलो ।रिक्शे वाले ने मुंडी हिलाई और हमे एक रेस्ट्रोरेंट में ले जाकर खड़ा जकर दिया .यहां गरम गरम छोले भटूरे बन रहे थे ।हम सबको यह पसंद थे इसलिए भरपेट खा लिए ।इससे निबटे तो आगे का सफर शुरू हुआ ।रिक्शे वाले ने कहा वो सबसे पहले इमामबाड़ा और भूल भुलैया ले चलेगा ।भूल भूलभुलैया एक ऐतिहासिक इमारत है जो अपनी रहस्यमयी बनावट के लिए मशहूर है ।यहां बिना गाइड के प्रवेश की अनुमति नही है ।ऐसा क्यों खुद गाइड ने बताया ....की देखने मे यह इमारत साधारण सी लगती है लेकिन इसमें प्रवेश करने के बाद निकलना मुश्किल है ।यहाँ कई लोगो ने प्रयास किये अपनी अपनी बुद्धि कर अनुसार निशान बनाये या फिर ओर कोई उपाय किये ।उसने आगे कहा ...आप चाहे तो आप भी कर सकते है ।हमने उसकी चुनोती स्वीकार की और चलते हुए निशान बनाते चले ।इमारत ज्यादा लंबी चौड़ी नही थी लेकिन रहस्यमई थी ।घूमते घूमते अचानक हमारी आंखों के सामने गाईड गायब हो गया ।हमने इधर उधर देखा ।नहीं दिखाई दिया तो हमने खुद ही बाहर निकलने का फैसला लिया और इस स्थिति को सामान्य माना मगर ये क्या हम लाख कोशिशों के बाद भी बाहर नही निकल पाएं।साधारण सी दिखने वाली इमारत सचमुच इतनी रहस्यमई होगी हमे कल्पना नही थी ।हम पसीने पसीने हो गए ।अचानक हमारे सामने वाली खंबे से गाइड प्रगट हुआ ।हमे पसीने पसीने देख मुस्कुराया ओर कहा ,-,यही है भूलभुलैया। मै आपको देख रहा था में आपके पास खड़ा था मगर आप मुझे नही देख पास रहे थे ।गाइड को देख जान में जान आयी और इसके साथ ही इमारत का संदर्शन समाप्त हो गया ।
अब रिक्शे वाला हमे चिड़िया घर कर ले कर जा रहा था ।उसने कहा-,बाबूजी चिड़िया घर काफी बड़ा है उसे देखने मे काफी समय लगेगा आप जल्दी देख लोगे तो फिर बाजार ले चलूंगा यहाँ चिकन का काम खूब होता है ।हमने उसकी बात गांठ बांध ली ।।
लखनऊ का चिड़िया घर भी और चिडियाघट जैसा ही था ।लेकिन यहां एक मछली घर काफी आकर्षक था ।छोटी छोटी मछलियों की कई प्रजाति देखने को मिली ।रंगीन मछलियों को देख मजा आया ।हम उत्सुकुता के साथ काफी देर उन्हें निहारते रहे ।वहाँ से निकले तो शेष चिड़ियाघर को आराम से देखा ।इसी में हमारा काफी समय गुजरा और शाम होने लगी ।लेकिन अभी भी हमारे पास समय था ।हमे आज ही होटल छोड़ना था और रात की गाड़ी पकड़नी थी ।रिक्शे वाले ने हमे बाजार में उतार दिया और कहा ये यहां का बड़ा बाजार है आप घूम सकते है चिकन के कपड़े खरीद सकते है ।
बाजार काफी बड़ा था ।पूनम और प्रीति का मन मचल गया ओर वे बाजार को निकल गयी ।वेसे भी ख़रीद करने और खर्च करने में दोनों कम नही थी ।हम लोगो को इसमे ख़ास रुचि नही थी इसलिये हमने एक खोखा पकड़ा और फिर बढ़िया सी चाय बनवाई ।हम गपशप करते और चाय की चुस्कियां लेते हुए वक्त काटने लगें
महिलाये देर तक बाजार घुमती रही और जब लोटी तो ढेर सारे पैकिट उनके हाथों में थे ।
उस रात हमने होटल छोड़ दिया और अगले सफर के लिए स्टेशन आ गए ।अब हमारी ट्रेन से आगरा वापिसी की तैयारी थी ।
आगरा के लिए ट्रेन रात को 9 बजे लखनऊ से चलती थी ।कुली की सहयता से हमे डिब्बे में अच्छी जगह मिल गयी ।आगरे का सफर सारी रात का था इसलिए हम आराम से सो गए ।कुछ लोग फिर भी जागते रहे और कचर कचर करते रहे ।
सवेरे जब आंख खुली तो टूंडला आ गया था ।वेंडर शोर मचा रहे थे ।चाय चाय समोसे गर्म की आवाजों से भूख जाग गयी ।वेसे भी सवेरे सवेरे चाय पीकर ही शरीर में करंट आता है ।लिहाजा गर्म चाय खरीद ली ...तभी पकोड़े वाला भी आ गया तो पकोड़े भी खरीद लिए ।खास पीकर तरोताजस हुए तो ट्रेन चल पड़ी यहाँ से हमारा सफर ज्यादा देर का नही था ।
हम लोगो ने अपना सामान पैक किया और उतरने की तैयारी शुरू कर दी ।थोड़ी देर में राजा की मंडी स्टेशन आ गया तो हम सब आराम से उतर गए ।
उतरते ही हमने अंगड़ाई ली और शरीर को अकडया।जब ट्रेन के इंजन ने सीटी मारी तो हमारे चेहरे पर मुस्कान आ गयी । हम अपने शहर आ गए थे और यहां की हमें कोई चिंता नहीं थी ।
ट्रेन आगे चल दी और हम अपना सामान उठा कर स्टेशन से बाहर आ गए।।हमारा सफर पूरा हो चुका था और अब हमें यहां से अलग अपने घरों को जाना था
पूनम को कमला नगर जाना था ओर हमें मदिया कटरा ।इसलिए हमने अलग अलग रिक्शे लिए और घर को चल दिए । जाने से पहले हम एक दूसरे को टाटा बाय बाय करना नहीं भूले ।
यद्यपि यह यात्रा हमने 26 साल पहले की थी लेकिन अस्पताल के बिस्तर पर इसे लिखते हुए ऐसा लगा जैसे कल परसो ही यह यात्रा की है ।
सचमुच यह एक यादगार यात्रा थी।
.... समाप्त

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