धंधा पंक्चर करके जोड़ने का
धंधा पंक्चर कर जोड़ने का
अक्सर सड़क के किनारे उंकादू बैठा मैं हर आने जाने वाली साइकिल को देखकर सोचा करता हूं काश इस में पंचर हो जाए। आप सवार हैं या नहीं सोचेंगे यह भी कोई बात हुई। किसी का बुरा सोच कर तुम्हें क्या मिलेगा । लीजिए यही हो गई आपकी अकल पंचर ।बात दरअसल धंधे की है.. मैं ठहरा पैदाइशी साइकिल मरम्मतिया...पंचर को जोड़ना मेरा पेशा है और धंधे की बाबत सोचना कोई गुनाह तो नहीं है।
यूं तो इस जमाने में जिसे देखो वही पंक्चर जोड़ता नजर आ रहा है ।नेताजी कुर्सी का पंचर वोटों से, अफसर मातहत तरक्की का पंचर चमचागिरी से, लालाजी तिजोरी का पंचर अपने नोटों से, यानी कि सभी अपने मतलब का पंचर अपने-अपने तरीकों से जोड़ने में मजबूर नजर आते हैं । अगर मैंने अपने धंधे के लिए पंचर की बात सोच ली तो आपको इसमें बुराई क्यों नजर आती है।
सड़क के किनारे मैंने एक छोटी सी दुकान लगा रखी है ।विरासत में मिले अपने बाप के औजारों को अपनी अकल से सजा रखा है और एक पटरा रख अपने बैठने का आसन बना डाला है। रोज सुबह आकर दोपहर ढले तक मैं उंकादु बैठा चने चबाते हुए पंचर साइकिलों का इंतजार किया करता हूं। इसके बाद पंचर हो जाने की दुआएं मांगने लगता हूं ताकि तरकारी रोटी ना सही दूसरे दिन चबेने लिए कुछ तो पैसा हाथ लगे।
मुझे अभी तक याद है कि जब छोटा था तो मोहल्ले में अक्सर एक स्वामी जी आया करते थे। मोहल्ले की औरतें घर के काम धंधे निपटा कर उनके प्रवचन सुनने जाती थी ।मोहल्ले की चंद सुंदर औरतों पर युवा स्वामी जी की कुछ ज्यादा ही मेहरबानी थी और जब तक उन्हें घरवालों से छुपाकर विशेष प्रवचन के लिए आमंत्रित किया करते थे। कभी-कभी मैं भी मां के साथ स्वामी जी का प्रवचन सुनने चला जाता था। स्वामी जी को अक्सर एक ही बात दोहराते थे कि बच्चा आनंद को खोजो ।जहां।आनंद मिले वही उसे पकड़ लो ।अगर तुमने पा लिया तो समझो तुमने सब कुछ पा लिया अन्यथा सब कुछ पाकर भी तुम कुछ ना पा सकोगे ।
अब सोचता हूं तो लगता है कि स्वामी जी ने अपने मतलब का पंचर श्रद्धालुओं की मार्फत बड़ी सफाई से और बड़ा पुख्ता जोड़ रखा था ।इसलिए एक दिन पूछ ही बैठा - स्वामी जी ये आनंद कैसा था ।गुम हुआ था तब कपड़े लगते पहना था या नंगा था मेरी तरह ।अगर आपके पास उसका कोई फोटो वगैरा हो तो मुझे बताइए ।मैं उसे जहां भी मिलेगा पकड़कर आपके पैरों में लागे लूंगा ।
मेरी बात सुनकर स्वामी जी हंस पड़े और बोले बच्चा लगता है तुझे तो अभी ज्ञान भी नहीं मिला।
सुनते ही गदगद स्वामी जी के चरणों में झुक गया और बोला आप तो अंतर्यामी हैं ।बेशक मुझे ज्ञान अभी तक नहीं मिला। उस दिन जो गुल्ली डंडा में अपना दांव लेकर भागा तो आज तक दोबारा नजर नहीं आया। ना मालूम कहां मर गया कमबख्त ।मिल जाए तो बच्चा को पकड़ अपना दांव लिए बिना नहीं छोडूंगा।
आपकी स्वामी जी को ताव आ गया।बोले - तुमने तो नाम मात्र का भी अक्ल नहीं है ।अरे मैं तो उस ज्ञान और आनंद की बात कर रहा हूं जो तेरे पास ही हैऔर तू चाहे तो उसे पा सकता है।
सो केसे मेने उत्सुकता से पूछा।
स्वामी जी धीरे-धीरे कुछ समझाने लगे और मैं मुंडी हिला हिला कर समझने का प्रयास करने लगा। इतना तो समझ ही गया ज्ञान और आनंद जैसा भी हो उसे पाना हर आदमी के लिए जरूरी है।
घर आया और मां-बाप से बोला- अपनी धर्म श्रंखला संभालो और अपने पास रखो मैं तो ज्ञान और आनंद प्राप्त करने चला।
मेरी बात सुनकर मां को पीटते हुए मेरे ताड़ी पिए बाप की आंखों में खून उतर आया ।किसी भेड़िए की तरह झपट्टा मारकर उसे मुझे गिराया और रुई की तरह सुनते हुए बोला - चल तुझे ज्ञान और आनंद प्राप्त कराया हूं ।हराम की खा खा कर बहुत ज्यादा चर्बी चढ़ गई है कमबख्त में ।कल से मेरे साथ दुकान चल कर पंक्चर जोड़ा कर ।
हां हां बेटा चला जाया कर। कुछ अपने बाप की मदद किया कर ।मुझसे पहले पिट चुकी मेरी मां ने मेरे बाप की बात में थेगड़ी लगाने की कोशिश की ।
तो चुप रहे हरामजादी .... बाप ने उसे हड़का दिया था।
उस दिन के बाद से मेरा बाप मुझे दुकान पर बैठाने लगा ।मेरा बाप पंचर जोड़ने में अपनी सानी नहीं रखता था ।मतलब मोहल्ले में अक्सर झगड़ा करा कर फिर दोनों तरफ से सुलह कराई का मेहनताना वसूल कर अपने मतलब का पंचर जोड़ा करता था ।।मतलब कि हर फटे में टांग डालकर अपना पंचर जोड़ने के हुनर में बेमिसाल महारथ रखता था ।उसने मुझे भी इस काम में माहिर बनाने की कोशिश की थी ।काफी कुछ मैंने सीख लिया लेकिन ज्ञान और आनंद की प्राप्ति के लिए मैं अभी सोचा करता था । इसलिए जब मेरा बाप मरा तो मै अपने बाप की दुकान छोड़ सामने लगे पीपल के पेड़ के नीचे बैठ घंटों आंखें मूंद ज्ञान और आनंद की बात सोचा करता था ।पर एक दिन जब कोई मेरा सामान चुरा कर ले गया तो मैं आंखें खोलकर पेड़ के नीचे बैठने लगा। कुछ दिन तक तो यह सिलसिला चलता रहा पर काफी सोचने विचारने के बावजूद भी ना मुझ में ज्ञान का प्रवेश हुआ और ना ही आनंद प्राप्त हुआ बल्कि सिकुड़ते हुए पेट ने धंधे के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया।
उस दिन भी मैं धंधे की बात सोच रहा था कि ठीक मेरे सामने से एक साहब गुजरे उनका हुलिया ही कुछ ऐसा था कि मेरे लिए ठहाका मार कर हंसना लाजिमी हो गया ।मेरे ठहाके की वजह से दो साइकिल सवार बौखला कर आपस में भिड़ गए ।मैं अभी यह दृश्य देख कर खुश होना ही चाहता था कि किसी ने पीछे से मेरी गर्दन थाम ली ।पीछे जो देखा तो जान सूख गई। पुलिस की वर्दी में एक मेरा हमेशा खड़ा था । इत्मीनान से है दो बेंत मेरे चूतड़ों पर मारते हुए बोला।- क्यों बे हराम के शहर
की शांति भंग करता है ।
मैंने क्या किया है साहब ।मैंने अकड़ने की कोशिश की थी ।
अभी तू इतनी जोर से हंसा था कि नहीं। मालूम नहीं कि सरकारी सड़क पर हंसना कानूनन जुर्म है ।
अबकी मैं रियाया -,साहब हंसी पर भी तो किसी का काबू नहीं होता। हंसना तो जुर्म नहीं होना चाहिए।
अबे तो तू मुझे कानून सिखाएगा । तेरी यह मजाल..... चल थाने में ...जब चक्की पीसेगा तब होश ठिकाने आएंगे तेरी।।मेरी मां बहन से अपने संबंध जताते हुए बोला था वो ।
मेरी गुर्राहट रिरिरायत में बदल गई ।
साहब गलती हो गई ।माफ कर दो। आइंदा ऐसा करूं तो जो चाहे सजा देना ।
अगला कुछ और तमक कर बोला -मैं कोई हाकिम या कलेक्टर हूं जो मैं तुझे ऐसे ही छोड़ दूं। चल थाने ।
मैं आपकी घबरा गया और बोला माई बाप आप चाहे तो सब कुछ कर सकती हैं ।मेरी बाप कहत था - थानेदार साहब जो चाहे वही कर सकते हैं ।
अपने लिए थानेदार सुनकर वो कुछ नम्र पड़ा ।
चल तू कहता है तो तेरी खातिर यह भी सही है। ऐसे हम किसी को छोड़ते नहीं और फ्री में तो हरगिज़ नहीं ,यह मेरा उसूल है बोल- कितने पैसे हैं तेरे पास ।
मैं उसकी तरफ देखने लगा। वो सब कुछ समझ गया ।वो बोला - देखो भाई कानून तो कानून है। फ्री में पंचर तो तुम भी नहीं जोड़ते। फिर जो तुम दोगे उनमें से मुझे भी आगे पंचर जोड़ने पड़ेंगे ।
मैंने जेब में हाथ डालकर कुछ जमा पूंजी ₹2 निकाल लिए ।पुलिस वाले ने लपक कर छीन लिए और चलता बना। मैं बीड़ी के लिए पैसे मांगता ही रह गया । मायूसी से उसे जाते हुए देखता रहा और अपनी जेब में हुए पंक्चर के बारे में सोचता रहा ।
अचानक मुझे लगा जैसे मुझे ज्ञान प्राप्त हो गया ।धीरे-धीरे बाप की सीख याद आने लगी- बेटा इस दुनिया में रहना है तो पंचर करके जोड़ना सीखो। इसी में आनंद है ज्ञान है सुख है और कुछ नहीं ।
मैं धीरे से उठा और थैली में से बड़ी कील निकालकर सावधानी से इधर-उधर सड़क पर रख आया ।अभी मैं पलटा भी ना पाया था कि एक धमाका हुआ और मुझे लगा जैसे आनंद भी प्राप्त हो गया ।
मैंने देखा एक साइकिल सवार साइकिल घसीटना मेरी ओर आ रहा था।
पुनशच - कहना ना होगा मेरा धंधा चल निकला।

Comments
Post a Comment