कर्मो की सजा
कर्मो की सजा ....
उस देखते ही मै पहचान गया । दुर्गेश ही था । मंदिर जाने वाली सड़क पर भीख मांग रहा था ।उसकी दाढ़ी बड़ी हुई थी ।एक हाथ और एक पैर गायब था ।चलने के लिए बैसाखी बगल में पड़ी हुई थी ।आंखे फटी फटी सी थी और गढ़धे में दबी हुई थी । फटे पुराने कपड़े उसकी दुर्दशा बयान कर रहे थे ।वो गिड़गिड़ाता हुआ लोगो से भीख मांग रहा था और आंखों में आंसू लिए हुए दया की याचना कर रहा था ।वो इतना घिंनोना दिखाई दे रहा था कि लोग उससे दूर भाग रहे थे ।उसके शरीर पर दर्जनों घाव थे और उसमें कीड़े बिलबिला रहे थे ।उसके शरीर से भीषण दुर्गंध उठ रही थी कि सांस लेना मुश्किल था ।
में हमेशा कि तरह आज मंदिर जा रहा था कि वो अचानक मुझे दिखाई दे गया ।
उस देखते ही मुझे पिछली बाते याद आ गई । वो दुर्गेश ही था ठेकेदार रज्जन का खास गुर्गा ।किसी के साथ मारपीट करना चाकू मार देना उसके बाएं हाथ का खेल था ।आए दिन बस्ती में हंगामा करता उसकी आदत थी । सब उससे डरते थे भय खाते थे ।किसी में हिम्मत नहीं थी उसका विरोध करने की । वो सबसे हफ्ता वसूल करता था ।और अपने आतंक से सबको डरा कर रखा हुआ था ।
हमारी बस्ती गरीब लोगों की थी ज्यादातर लोग रोज कमाने वाले मजदूर ठेल लगाने वाले फेरी वाले या फिर दुकान और घरों पर नोकरी करने वाले लोग थे । कुछ लोग खराद का काम करते थे तो कुछ दफ्तरों में चपरासी थे ।किसी ने अपने घर में घरेलू उद्योग लगा रखा था तो कुछ छोटी मोटी दुकान भी चलाते थे ।
दुर्गेश किसी की नहीं छोड़ता था ।वसूली करने में कोई दया नहीं दिखाता था ।हर कोई परेशान था और उसे जी भर के बद्दुआ देता था । सबकी घृणा का पात्र था वो ।
कभी कुछ लोगो ने पुलिस ने शिकायत भी कि तो उन्हें भगा दिया गया ।दुर्गेश की हर जगह सेटिंग थी और उसका आका सभी को मिठाई खिलाता था चाहें थाना हो या उनके ऊंचे लोग ।
यहीं दुर्गेश एक दिन मेरे पास आया ।सीधे घर के अंदर घुस आया । में उसे देख डर गया.. मुंह से आवाज तक नहीं निकली . उसने मेरे भयभीत चे हरे को देखा फिर मुस्कुराया और बोला ...,पंडित जी घबराने की जरूरत नहीं है हमारे ठेकेदार को आपकी सड़क किनारे वाली जमीन चाहिए । बाजार भाव से पैसे देगा और वो भी कानूनी तरीके से ।
उसकी बात सुन मै फिर घबराया । मेरी एक जमीन सड़क।के किनारे थी और में उसे बेचना भी चाह रहा था मुझे कुछ पैसे कि जरूरत थी लेकिन दुर्गेश की बात सुन समझ में आ गया कि ठेकेदार की नजर उस पर पड़ गई है और अब वो उसे कब्जा ही लेगा । मै पसीने से तरबतर हो गया
दुर्गेश मेरी हालत देख रहा था में उसे संदेह कि दृष्टि से देख रहा था । तभी उसने कहा ..पंडित जी घबराइए नहीं आपको जमीन के पूरे पैसे मिलेंगे. बताइए कितने चाहिए ।
मुझे उसकी बातों पर विश्वास नहीं था लेकिन मेरे पास कोई विकल्प नहीं था ।में जानता था कि ठेकेदार केसा आदमी है मुझे किसी और को बेचने नही देगा मै मजबूर था कि उसकी बातों को मांन लूं वरना क्या अनर्थ होगा मुझे नहीं मालूम ।
चलते चलते दुर्गेश ने धमकी भी दे डाली ..पंडित जी ठेकेदार बुलाएगा तो आं जाना । कोई ना नुकुर मत करना ।
फिर एक दिन दुर्गेश मुझे ठेकेदार के पास लेकर गया ।ठेकेदारी ने कुटिल मुस्कान का साथ मेरा स्वागत किया । आओ पंडित जी कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई दुर्गेश बे सब बता दिया होगा
मै चुपचाप रहा
उसने मेरे सामने एग्रीमेंट लेटर रख दिया और कहा ...पंडित जी अच्छी तरह देख लो ।बाजार दाम लगाए हैं ।एकदम सही ।
मैने चुपचाप हस्ताक्षर कर दिए ।उसने दो लाख देते हुए कहा ..पंडित जी अच्छी तरह जांच कर लो ।सब ठीक है ना ।बाकी पैसे रजिस्ट्री के समय मिल जाएंगे ।
फिर मेरे उत्तर की परवाह किए बगैर उसने दुर्गेश से कहा पंडित जी को सुरक्षित घर पहुंचा आओ कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए ।
दुर्गेश मुझे घर छोड़ गया ।
घर आते ही मेने दरवाजा बंद किया और कांपते हाथों से रुपए गिने ।पूरे दो लाख थे ।मुझे विश्वाश नहीं हुआ कि ठेकेदार ने मुझे इतने रुपए दिए है ।मेने मन में सोचा चलो भागते भूत की लंगोटी ही सही ।
फिर एक दिन रजिस्ट्री भी ही गई ।ठेकेदार ने एग्रीमेंट के हिसाब से बाकी पैसे भी से दिए ।तहसील में रुपए देते कहा ..,देखलो पंडित सब पूरे है ना । मेने कहा हां पूरे है लेकिन मेरे मन की शंका समाप्त नहीं हुई ।
रजिस्ट्री हो गई काम पूरे हो गए तो में रुपए का थैला लेकर वापिस घर लौटने लगा तभी दुर्गेश आ गया बोला ..अरे पंडित जी काम हो गया मिठाई नहीं खिलाओगे ।
क्यों नहीं मिठाई जरूर खिलाएंगे ...मेने कहा
तो फिर पीछे वाली दुकान में चलते है वहीं खाएंगे
हम पीछे वाली दुकान पर चले तो दुर्गेश बोला ..पंडित तुमरे पास काफी पैसे है ।ऐसा करो यह थैला मुझे दे दो में सुरक्षित तुम्हारे घर पहुंचा दूंगा
उसकी बात सुन मेरे कान खड़े हो गए । मेने कहा.. नहीं यह थैला नहीं दूंगा में ही घर के जाऊंगा
अचानक उसकी मुद्रा बदल गई उसने कट्टा निकाल कर मेरे पेट से लगा दिया ।आंखे लाल लाल करता बोला ,..पंडित तुझे प्यार की भाषा समझ में नहीं आती है क्या ।
कट्टा देख मेरे हाथ पैर कांपने लगे ।में जानता था कि गोली चलाने में उसे कोई देर नहीं लगेगी ।
उसने मेरा थैला छीन लिया और फिर बोला ...पंडित तेरे पैसे तेरे घर पहुंच जाएंगे ।
लुटा पिटा जब में घर पहुंचा तो अपनी लाचारी पर खूब रोया ।कई दिनों तक नींद नहीं आई।खून के आंसू पीते हुए मेने उसे कितना कोसा और कितनी बद्दुआएं दी यह में ही जानता हूं ।
फिर कई साल बीत गए ..और आज जब उसे इस हाल में देखा तो मेरे मन का गुस्सा जैसे फट पड़ा । में उसके पास खड़ा हो गया और उसे घृणित दृष्टि से देखा और फिर उसे जी भर सुनाना शुरू कर दिया ।वो चुपचाप सिर झुकाए सुनता रहा उसकी आंखे शर्म से झुकी हुई थी उसने कुछ नहीं कहा और कहता भी क्या वो इतना कमजोर और अपाहिज हो गया था कि बोलने कि शक्ति ही नहीं बची थी
मेरा मन हुआ कि मै उसके मुंह पर धूक दू ।।उसको पत्थरों से मारूं ...लेकिन मै ऐसा नहीं कर सका क्योंकि मै उस जैसा नहीं था उसे तो ईश्वर ने खुद उसके कर्मो कि ऐसी सजा दी थी कि वो सड़ सड़ कर मर रहा था और नरक की यातना भोग रहा था । वो जिंदा था लेकिन उसकी हालत मुर्दे से भी बदतर थी

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