वो भिखारिन
वो भिखारिन
स्टेशन की ओर बढ़ते तेज कदमों को अचानक विराम लग गया ।मेरे सामने एक भिखारिन हाथ फैलाएं खड़ी थी ।वह एक अधेड़ औरत थी उसकी बड़ी-बड़ी फटी सी आंखें मुझे घूर रही थी और उसके खिचड़ी बाल हवा में उड़कर विचित्र आकृति बना रहे थे। उसने तेज आवाज में कहा ...बाबू पैसे दे ..मैंने सुना और पता नहीं क्यों मुझे पैसे देने की सूझी। यह मेरी आदत नहीं है और कभी देना भी होता है तो एक दो रुपए दे देता हूं ।आज मैंने अपनी जेब में हाथ डाला तो पांच रुपए का सिक्का हाथ में आ गया। मैंने सिक्का उसके हाथों पर रख दिया ..लेकिन अचानक उसने सिक्का फेंक दिया और बोली बाबू 10 रुपए दे.. इससे कम में लेती नहीं .
मुझे यह सब देख बड़ा गुस्सा आया। एक तो भिखारिन ऊपर से ऐसी अकड़। इच्छा हुई कि उसे खूब सुनाऊं लेकिन उसकी हालत पर मुझे तरस आ गया ।सोचने लगा कि यह पागल तो नहीं है।लेकिन मेरा मन खराब हो गया । मेरी भीख देने की इच्छा ख़तम हो गई ।सोचा मुझे यहां से आगे चल देना चाहिए । वैसे भी मुझे स्टेशन पहुंचने की जल्दी थी । मैंने उसका फेंका हुआ सिक्का उठा लिया और स्टेशन की ओर चल दिया ।
मुझे जाता देखो वह जोरो से चिल्लाई.. बाबू मेरा पैसा लेकर तुम्हारा भला नहीं होगा. यात्रा पर जा रहे हो कुछ भी हो सकता है .।
मैं उसकी यह बात देखकर चौक पड। स्टेशन की ओर बढ़ते कदम रुक गए और मै सहम गया ।एक तो मैं अनजान शहर में था.. दूसरा मुझे लंबी यात्रा कर घर जाना था । भिखारिन मुझे श्राप दे रही थी और शायद मैं उसकी बातों को सुनकर डर भी गया था । यात्रा पर जा रहा हूं अगर कुछ हो गया तो ....
अनिष्ट की शंका ने मुझे एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया। मेरे कदम एक बार फिर रुक गए और मै सोचने लगा । मुझे 10 रुपए देने से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं दे सकता था लेकिन मैं उधेड़बुन में पड़ गया कि क्या करूं क्योंकि उस औरत की हठ धर्मिता ओर अकड़ मुझे परेशान कर रही थी। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।लेकिन में निर्णय नहीं ले पा रहा था कि मै क्या करूं । एक तो मैं धर्म वीरू दूसरी मेरी सोच.. ना जाने किस देश में बाबा मिल जाए भगवान . रे..
.सोचने लगा कहीं भगवान मेरी परीक्षा तो नहीं ले रहे। मै तेजी से आते अपने विचारों में उलझ रहा था ।
भिखारिन बार बार बोल रहीं .थी ...बाबू पैसा दे ..भगवान तेरा भला करेगा ..
मेने फिर ज्यादा नहीं सोचा । चलो दे ही दूं ..अंततः मैंने जेब से 10 रुपए का नोट निकाला और उस भिखारिन को दे दिया ।
10 रुपए पाकर वो भिखारिन प्रसन्न हो गई और मुझे दुआएं देने लगी ।बाबू तेरा खजाना कभी खाली ना ही ।तू खूब तरक्की करे ।भगवान तेरा भला करे .. ओर ..
फिर देखते देखते वह मेरी आंखों से ओझल हो गई ।मैं थका सा.. ठगा सा खड़ा उसे जाते देखता रहा ।
में उसकी अकड़ से हैरान था ।
कैसी भिखारिन थी वो .आखिर उसने जो चाहा वो के लिया ।कहीं उसने मेरी कमजोरी का लाभ उठा कर मुझे ठग तो नहीं लिया ।शायद वो ईसा ही करती हो ।शायद अनुभव ने उसे लोगो की कमजोरी का लाभ लेना सीखा दिया हो ।
मेने देखा जहां वो भीख मांग रही थी वहां सामने ही एक गुरुद्वारा था.. थोड़ी दूर पर एक बड़ा मंदिर भी था । जहां हजारों लोग भक्तिभाव से आते थे ओर दान पुण्य किया करते थे ।।मेरे मन में विचार आया कि शायद यही देखकर उसने अपने भाव बढ़ा लिए हों । लेकिन जो भी हो वह लोगो की भावना से अच्छी तरह परिचित थी और जानती थी कि अच्छी भीख केसे मिलती है ।
में यही सोचता हुआ स्टेशन की तरफ चल दिया ।मेरा मन खराब जरूर हुआ था और रहा रह कर सोचता रहा ..में इतना धर्म भीरू क्यों हूं और इसी बात का फायदा उसने उठा लिया ।मुझे अपने आप पर क्रोध तो आ रहा था लेीन न एक बात तो पक्की थी ..कि अनजाने शहर में स्टेशन जाते हुए,.. यात्रा में किसी अनिष्ट की आशंका से में पूरी तरह मुक्त हो गया था ।
यही मेरे लिए काफी था ।

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