पल ट कर मत देखना

शादी की रस्में पूरी  होते होते लगभग आधी रात हो चुकी थी और फिर हम दावत भी खा चुके थे इसलिए हमने वापिस घर जाने के लिए अपने मित्र से इजाजत बागी मांगी तो उसने कहा.. आधी रात हो चुकी है तुम सवेरे चले जाना अभी जनवा से में जाकर आराम कर सकती हो। मैंने कहा नहीं मुझे कल सुबह ही कुछ जरूरी काम करने हैं इसलिए मेरा जाना जरूरी है ।उसने कहा.. मेरा मतलब यह था कि जिस रास्ते से तुम घर जाओगे वह सुनसान रहता है और वहां सन्नाटा भी बसरा रहता है।
मैंने कहा.. मुझे सुनसान रास्तों में चलने में कोई दिक्कत नहीं है और सन्नाटा मुझे भयभीत नहीं करता।
उसने कहा.. मेरा मतलब यह था कि आज अमावस्या है और उस सड़क की स्ट्रीट लाइट भी अक्सर बंद रहती है तो अंधेरे में चलने में तुम्हें दिक्कत हो सकती है.
मैंने कहा.. मुझे कोई दिक्कत नहीं है ।मेरी आंखें बिल्ली की आंखें हैं। मैं अंधेरे में भी अच्छी तरह देख लेता हूं।
उसने कहा ..भैया रुक जाओ तो अच्छा रहेगा क्योंकि उस सुनसान सड़क की एक और जंगल है तो दूसरी तरफ एक पुराना बड़ा पार्क और उसके बाद श्मशान घाट है और उस पार्क में अक्सर मरे हुए लोग पाए जाते हैं .जिनमें कुछ का मर्डर होता है तो कुछ लोग आत्महत्या कर लेते हैं.
मैंने हंसकर कहा.. तुम्हारा मतलब है कि वहां भटकती आत्माएं घूमती है।
उसने कहा.. मैंने उस सड़क के ऐसे कई किस्से सुने हैं इसलिए मैं डरता हूं।
मैंने हंसकर कहा.. दोस्त मैं ऐसी बातों पर विश्वास नहीं करता इसलिए मुझे भय नहीं लगता। मेरा जाना जरूरी है और मैं जाऊंगा।
दोस्त के चेहरे पर निराशा और भय छा गया ।उसने कहा ठीक है तुम जाना चाहती हो तो मैं रोकूंगा नहीं.. ईश्वर आपकी मदद करें.।
मैंने साइकिल उठाई और चलने को हुआ तभी वहां एक बूढ़े बाबा आ गए और उन्होंने कहा.. बेटा तुम इस समय उस,सुनसान  सड़क से मत जाओ।
मैंने कहा... बाबा मेरा जाना जरूरी है और नहीं जाऊंगा तो बहुत नुकसान हो जाएगा।
बूढ़े बाबा ने थोड़ी देर सो चा और फिर कहा .. ठीक है तुमने सोच ही लिया है कि तुम्हें जाना है तो तुम जाओ मगर  मुझे एक वचन दो।
 मैंने कहा ..कैसा वचन
उसने कहा... मैं तुम्हें जाने से नहीं रोक रहा लेकिन रास्ते में यदि तुम्हें कोई अजीब सा लगे या कोई तुम्हें पीछे से आवाज दे या फिर तुम्हारे बगल में खड़ा होकर तुम्हारे हाथ पकड़ने की चेष्टा करे तो तुम पलट कर नहीं देखोगे।
मैंने कहा ..ठीक है मैं आपको वचन देता हूं कि मैं पलट कर नहीं देखूं ऐसा प्रयास करूंगा।
मेरी बात पर उस बूढ़ी बाबा ने आसमान की ओर मुंह उठाकर कुछ बड़बड़ आया और फिर मेरी सर पर हाथ रख कर कहा ..बाबा तुम्हारी रक्षा करें।
मुझे इन सब बातों पर बड़ा आश्चर्य हो रहा था और हंसी भी आ रही थी की अंधविश्वास कैसे लोगों की बुद्धि भ्रष्ट कर देता है ।
मैंने अपनी साइकिल उठाई और सुनसान सड़क पर आ गया। सड़क पर सन्नाटा पसरा हुआ था और घुप्प अंधेरा था। अमावस्या की रात थी और सड़क की स्ट्रीट लाइट भी खराब पड़ी थी ।आराम आराम से साइकिल चलाता हुआ मैआगे बढ़ रहा था। मुझे मालूम था इस सड़क को पार करने में मुझे लगभग आधे घंटे का समय लगेगा और सड़क की सीमा खत्म होते हुए भी मैं चौराहे पर पहुंच जाऊंगा जो 24 घंटे गुलजार रहता है ।चौराहे से थोड़ी दूर पर रेलवे स्टेशन है और उसी के पास बस स्टैंड जहां पर यात्रियों की भीड़ लगी रहती है और उस चौराहे के आसपास तमाम सारी खाने पीने की दुकान जिसमें दिन-रात यात्रि खाते पीते मौजूद रहती है और वहां वाहनों का आवागमन चलता ही रहता है।
मुझे सुनसान सड़क पर चलते हुए   लगभग 5 मिनट हो चुके होंगे तभी अचानक फट की आवाज हुई और मेरी साइकिल डगमगाने लगी । मैं उतरा और देखा मेरी साइकिल का पिछला पहिया पंचर हो गया था ।अब यह मेरी मजबूरी थी कि सड़क पर अब मुझे पैदल ही चलन था।
 मैंने पैदल चलना शुरू कर दिया ।अभी मैं थोड़ा ही चला था  कि मैंने अपने पीछे कुछ लोगों की आवाज सनी मानो जैसे कई लोग बातचीत करते मेरे पीछे चल रहे हैं ।मुझे बड़ा अजीब सा लगा और फिर लोगों की बातें मेरे दिमाग में आने लगी। मैं बिना किसी भय के चलता रहा लेकिन मेरे कान पीछे आने वाली आवाजों पर केंद्रित रहे। तभी किसी ने मुझे आवाज दी.. राधेश्याम कैसे हो दावत खाकर आ रहे हो.
मैं आवाज सुनकर चौका लगा कि कहीं कोई भ्रम तो नहीं। मैंने सोचा पलट कर देखा जाए फिर अचानक मुझे बूढ़े बाबा की बात याद आई और अपना वचन भी याद आया। मैंने पलट कर देखने की बात स्थगित कर दी और फिर तेजी से आगे चलने लगा। मेरे पीछे चलने वाले लोग भी तेजी से चलने लगे और फिर आवाज आई.. क्यों भाई राधेश्याम दावत खाकर आ रहे हो। इस बार आवाज काफी नजदीक से आई ।
 मैंने भी पलट कर जवाब दिया ..कौन हो भाई
फिर आवाज आई .. राधे श्याम मैं तुम्हारा दोस्त हूं तूमने पहचाना नहीं.।
सच कहूं तो मैंने उस आवाज को पहले कभी नहीं सुना था और मुझे सब कुछ अजीब सा लग रहा था और चलते वक्त जितनी बातें मुझे बताई गई थी वह सब मेरे दिमाग में भरा हुआ था और फिर बूढ़े बाबा का वचन पलट कर मत देखना मुझे याद आने लगा मैंने कहा कौन हो भाई अपना नाम तो  बताओ।
उसने कहा नहीं पहचाना मुझे तो पलट कर देख लो पहचान जाओगे।
उसकी इस बात से मैं चौका लेकिन हिम्मत करके बोला ..अरे भाई पहली क्यों सुलझा रहे हो सीधे-सीधे अपना नाम बता दो।
वह बड़ी जोर से हंसा उसकी भयानक हंसी किसी को भी डरा सकती थी उसने कहा ..राधेश्याम अपने बचपन को याद करो और देखो कौन तुम्हारे साथ गिल्ली डंडा खेलता था और तुमसे झगड़ा करता था।
मुझे उसकी बातें सुनकर अजीब सा लग रहा था और फिर मैं यह महसूस करने लगा कि जो कुछ भी हो रहा है वह सामान्य नहीं है।
इस वक्त मैं सुनसान सड़क को आधा पार कर चुका था और आप मुझे दूर की एक सड़क किनारे छोटा सा मंदिर दिखाई दे रहा था जिसमें हनुमान जी की मूर्ति लगी थी ।मंदिर में तेज रोशनी हो रही थी जो सुनसान सड़क के अंधेरे को मिटा रही थी। मैं और तेजी से मंदिर की ओर बढ़ने लगा तभी फिर आवाज आएगी ..राधेश्याम तुमस
 एक जरूरी बात करनी है जरा ठहरो तो सही।
उसकी बात सुनते ही मुझे लगा  कि रुकने के बजाय मैं तेजी से मंदिर की ओर बढ़ता जाऊं और ऐसा ही मैंने किया और फिर मै मंदिर के चबूतरे पर पहुंच गया ।मंदिर के चबूतरे पर मैंने हनुमान जी के दर्शन किए और फिर वही पर बैठ गया ।मैंने पाया आप सब कुछ सामान्य था ।मैंने  पलट कर देखा और देखा चारों तरफ कुछ नहीं था ।सब कुछ सामान्य था ।मुझे लगा शायद लोगों की बातें मेरे दिमाग में ज्यादा घुस गई और शायद विचारों में डूबे हुए मैंने ही इन सब बातों की कल्पना कर डाली लेकिन काफी सोचने के बाद भी मैं इस तर्क को स्वीकार नहीं कर पा रहा था इसलिए मैंने हनुमान जी का टीका लगाया और फिर गायत्री मंत्र पढ़ते हुए आगे अपनी यात्रा पूरी करने लगा।
अभी मैं थोड़ा आगे बढ़ा था  और मंदिर की रोशनी अब सड़क पर नहीं आ रही थी । सुनसान सड़क फिर अंधेरे में डूब गई थी।
अचानक फिर वही आवाज  और लोगों का कोलाहल मुझे सुनाई देने लगा ।मैं समझ गया कि लोगों ने मुझे क्यों रोकना चाहा था और क्यों बूढ़े बाबा ने मुझसे कहा था की पलट कर मत देखना। मैंने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो मैं पलट कर नहीं देखूंगा।
मैं तेजी से चौराहे की ओर बढ़ने लगा और प्रयास करने लगा कि जल्दी से जल्दी मैं सड़क की सीमा को पार कर जाऊं। मैं तेजी से आगे बढ़ने लगा
मुझे तेजी से आगे बढ़ते देख पीछे आते लोगों की आवाजें भी और नजदीक आने लगी ।मैं चुपचाप हनुमान चालीसा का पाठ करता हुआ आगे बढ़ रहा था कि फिर आवाज आई.. हरे राधे श्याम तुम तो बड़ी जिद्दी हो अपने दोस्त को भी नहीं देखोगे अरे एक बार पलट कर तो देख लो मैं तुम्हारा दोस्त हूं.
मैंने पलट कर नहीं देखा और कहा ..मेरी गर्दन में दर्द है मैं पलट नहीं सकता हूं ।।
वो भयानक हंसी हंसा.. राधेश्याम क्यों झूठ बोलते हो तुम्हारी गर्दन में कोई दर्द नहीं अरे भाई पलट कर देखो तो सही।
मैं चुप रहा तो वह बार-बर मुझसे पलट कर देखने की बात करने लगा और बार-बार कहता रहा ..अरे राधेश्याम जरा ठहरो तो सही तुमसे कुछ बात करनी है
सच कहूं तो  मेरे मन में भी भय बैठने लगा और मैं लगभग दौड़ते हुए सड़क की सीमा को पार करने की कोशिश करने लगा। मेरे पीछे आते लोग भी उतनी तेजी से मेरी साथ दौड़ रहे थे।
सड़क की सीमा आने वाली थी और मैं कुछ ही देर में उसे पार कर सकता था.. तभी कोई मेरे बगल में आया और उसने कहा.. राधेश्याम रुक जाओ.
 मैं नहीं रुका उसने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोकना चाहा लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया और मैं सड़क की सीमा पार कर गया
मैं निरंतर गायत्री मंत्र और हनुमान चालीसा का पाठ मन ही मन कर रहा था। सड़क की सीमा पार करते ही सब कुछ सामान्य हो गया और तभी एक आवाज आई ..राधेश्याम आज तो तुम बच गए वरना....
मैंने तब पलट कर देखा वहां एक सफेद धुएं जैसी आकृति थी जो देखते ही देखते  गायब हो गई।मैं यह देख  पसीने पसीने हो गया। मुझे चक्कर आने लगे मेरी सास धोंकन  की तरह चलने लगी।शायद में बेहोश हो गया था ।

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