सवाल और जवाब*
आश्रम के सामने एक छोटे से मैदान मैं एक पत्थर की बेंच पर बैठा हुआ मैं आश्रम के गेट को खुलने का इंतजार कर रहा था। मैदान के एक और खाने पीने की एक कैंटीन थी जिसमें सैकड़ों लोग खा पी रहे थे । मैंने भी थोड़ी देर पहले वहां कुछ खा पी लिया था। वहां ज्यादातर लोग दूर-दूर से आश्रम का नाम सुनकर आए थे और अब आश्रम का गेट खुलने का इंतजार कर रहे थे
तभी अचानक बूंदाबांदी शुरू हो गई ।मौसम ऐसा नहीं था की धुआंधार वर्षा हो लेकिन बादल का एक टुकड़ा कहीं से आया और उसने अचानक पानी बरसाना शुरू कर दिया तब भीगने से बचने के लिए मैंने जल्दी-जल्दी सामान उठाकर बगल में बने एक शेर में जाने का प्रयास किया। लेकिन मैं इसमें सफल नहीं हो पा रहा था ।तभी दो जवान लड़के मेरी तरफ आए और उन्होंने मेरा सामान उठा लिया और कहा ..अंकल चलिए ... उन्होंने मुझे भी सहारा दिया और शेर के अंदर पहुंचा दिया। शेड में पहुंचकर मुझे संतोष मिला कि मैं भीगने से बच गया। मैंने उन बच्चों को धन्यवाद दिया तो उन्होंने मुझसे पूछा ..अंकल क्या आप दूसरी बार यहां आश्रम में आए हैं । मैंने कहा नहीं मैं तो पहली बार यहां पर आया हूं
मेरी बात सुन कर उनके चेहरे पर निराशा दिखाई दी । मैंने उनसे पूछा क्या तकलीफ है तुम्हें ..
उन्होंने कहा ..हमारी माताजी बीमार हैं और नोएडा के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है ।
मैंने उनसे पूछा.. आपकी माताजी किस स्टेज में है ।उन्होंने जवाब दिया कि उनकी हालत बहुत खराब है इसलिए गूगल में आश्रम का नाम और वैद्य जी के दावे को सुनकर बड़ी उम्मीद के साथ यहां आए हैं । लेकिन अंकल हम सवेरे से बहुत सारे लोगों से यह सवाल पूछ चुके हैं लेकिन हमें कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसने कहा हो कि हम दूसरी बार यहां पर आए हैं।
मैं उनके सवाल से चौंक गया और सोचने लगा।
उन्होंने कहा ..हमारी माता जी की किडनी समस्या है और नोएडा की एक ब डे अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। हमने गूगल में आश्रम के बारे में सुना था कि यहां की चमत्कारी दवाएं खराब किडनी को सही कर देती है ।हम इसी उम्मीद के साथ यहां पर आए हैं
मैंने कहा ..मेरी भी यही समस्या है और हम भी गूगल में इस आश्रम के वैद्य जी और उनकी चमत्कारी दबाव के बारे में सुनकर बड़ी उम्मीद के साथ यहां पर आए हैं । मेरे साथ मेरे एक मित्र भी है जिन्हें भी यही समस्या है । मेरी बात सुनकर वे लड़के वहां से चले गए लेकिन मैं सोच में डूब गया और मेरे मन में उनका सवाल बार-बार घूमने लगा। अंकल जी यहां दूसरी बार कोई क्यों नहीं आया।
आश्रम का दरवाजा खुल चुका था और लोग जल्दी-जल्दी आश्रम की ओर जाने लगे। मैंने भी उनका अनुसरण किया और आश्रम के अंदर घुस गया। लेकिन मन में एक सवाल बार-बार मुझे परेशान कर रहा था और संदेश पैदा कर रहा था । मेरी स्थिति सांप छछूंदर जैसी हो गई थी।
एक कहावत है कि मुर्दा श्मशान घाट में आएगा तो फिर उसे जलना ही होगा। हमारी भी मजबूरी थी कि हम इतना कष्ट उठा कर यहां पर आए हैं तो फिर हमें दवा लेकर ही जाना चाहिए.. देखते हैं क्या परिणाम होता है।
शाम का समय था हम लोग आश्रम से वापस लौट रहे थे ।हम लोगों ने वैध जी का प्रवचन भी सुना उनके दावे भी सुने ।वैद्य जी को दिखाया भी और फिर लंबी लाइन में लगकर दवाओं का थैला भी खरीदा। लेकिन वापसी यात्रा में हमारे मन में एक सवाल जरूर हमें परेशान करता रहा की यहां आश्रम में दोबारा लोग क्यों नहीं आते।
एक महीना बीत चुका था ।
मैंने अपने मित्र से पूछा जो मेरे साथ आश्रम इस उम्मीद से गए थे कि वैद्य जी की चमत्कारी दवाइयों से लाभ मिलेगा..
बंधु कैसे हैं दवाइयों ने कुछ काम किया ।
मेरे प्रश्न पर उनके चेहरे पर निराशा झलकी ।उन्होंने मुंह लटका कर कहा.. भाई साहब जितना नाम सुना था उसकी तो दम ही निकल गई । सारे दावे खोखले थेऔर मुझे ती बड़ी निराशा हुई है।
उनकी बात गलत नहीं थी क्योंकि यही हालत मेरी भी थी और मेरी सारी उम्मीद टूट चुकी थी ।
तब मुझे उन लड़कों का यह कहना बार-बर आंदोलित कर रहा था ..अंकल यहां आश्रम में लोग दूसरी बार क्यों नहीं आते
मुझे इस सवाल का जवाब मिल चुका था।और में समझ गया था कि गूगल में को दावे किए जाते हैं यह सब हवाई होते हैं। इन पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
अब हमारे सामने सब कुछ साफ-साफ था इसलिए हमने तुरंत फैसला लिया और बची हुई शेष दवाइयों को कूड़े के ढेर में फेंक दिया।
और उसने कोई संदेह नहीं कि ऐसा करके हमे बड़ा संतोष मिला ।

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