इलाहाबाद यात्रा और कपूर साहब
इलाहाबाद यात्रा और कपूर साहब..
बात 80 के दशक की है तब डॉक्टर बाल गोविंद मिश्र संस्थान की निदेशक हुआ करते थ और डॉक्टर करुणा शंकर दीक्षित संस्थान के रजिस्टर। चिकित्सा प्रतिपूर्ति मामले में शासी परिषद की एक निर्णय के विरोध में एंप्लाइज यूनियन ने हाईकोर्ट में अपील करने और स्थगन आदेश प्राप्त करने के लिए कार्यवाही करने की ठानी ।और इसके लिए मुझे और स्वर्गीय कमल किशोर कपूर को सारी कार्यवाही के लिए प्रतिनियुक्त किया।
हम लोग इलाहाबाद पहुंचेऔर वकील से मिलकर सारी कार्रवाई की और स्थगन आदेश प्राप्त कर लिया। हम बड़े खुश थे और इस खबर को सभी को सुनाने के लिए बेताब थे।
हमारी वापसी यात्रा रेलगाड़ी से इलाहाबाद स्टेशन से थी ।गाड़ी इलाहाबाद से ही चलती थी इसलिए हम लोग थोड़ा जल्दी ही वहां पहुंच गए ताकि अच्छी सीट मिल सके।
मैं रेल गाड़ी के बारे में ज्यादा नहीं जानता था लेकिन कपूर साहब इसके बारे में जरा ज्यादा जानते थे ।इसलिए मैं पूरी तरह से कपूर साहब पर निर्भर था और उनके कहने के अनुसार चलता था।
गाड़ी प्लेट फार्म पर अपने समय से आ गई थी ।हम लो गों को खिड़की वाली सीट मिल गई थी। हमारे पास ज्यादा सामान नहीं था इसलिए एक कोने में सामान रख हम खिड़की पर जम गए। हमें बताया गया की गाड़ी यहां आधा घंटा ठहरने के बाद चलेगी।
तभी मैंने देखा सामने एक बुक स्टाल थी । मैंने सोचा अभी काफी समय है तो राजा के लिए कुछ कॉमिक खरीद लूं । राजा को कॉमिक पसंद थे इसलिए मै स्टाल की तरफ चल दिया ।
मेने कपूर साहब से कहा कि मैं अभी आता हूं सामने स्टॉल पर जा रहा हूं ।कपूर साहब ने सिर हिलाकर कहा ...ठीक है
मैं स्टॉल पर गया और फटाफट कुछ कॉमिक खरीदी ।तभी मैंने देखा की ट्रेन प्लेटफार्म से चल पड़ी थी। मुझे ये देख घबराहट तो नहीं हुई लेकिन लगा की कहीं ट्रेन छूट ना जाए इसलिए में दौड़ा और मैंने दौड़ कर किसी तरह ट्रेन पकड़ ली।
ट्रेन तो मैंने पकड़ ली लेकिन मैं उस डिब्बे पर नहीं चढ पाया जिसमें कपूर साहब बैठे थे। मुझे उस डिब्बे की कोई पहचान नहीं थी। मैं घबरा गया ।मेरे पास टिकट भी नहीं था और मुझे नहीं मालूम था की गाड़ी कौन-कौन से स्टेशन पर रुकती है और कितनी देर खड़ी होती है ।
मैं बुरी तरह परेशान था यदि कोई टीटी आ जाता है तो मैं क्या करूंगा । क्योंकि टिकट तो कपूर साहब के पास थी।
ट्रेन पूरी तरह से खाली थी। 10 -20 यात्री बैठे हुए थे। .मेरे हाथ में कॉमिक देख कर कुछ लोग उसके बारे में पूछने लगे। वह मुझे मैगजीन बेचने वाला समझ रही थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं। मैं डिब्बे के दरवाजे पर खड़ा हो गया और सह यात्रियों से पूछे लगा कि अगला स्टेशन कितनी देर बाद आएगा।
उन्होंने मुझे बताया कि लगभग आधे घंटे बाद अगला स्टेशन आएगा जिसमें गाड़ी 3 मिनट रुकेगी। तब मेरे निश्चय किया कि मैं डिब्बे से उतर कर प्लेटफार्म पर अपनी डिब्बे की खोज कर लूंगा। मुझे आशा थी कि अगले स्टेशन पर कपूर साहब निश्चित ही दरवाजे पर खड़े होकर मुझे देखेंगे । लेकिन ऐसा नहीं हुआ...
ट्रेन रुकी और मैं तेजी से आगे के सारे डिब्बों को देख आया लेकिन मुझे अपना डिब्बा कहीं दिखाई नहीं दिया ।तभी ट्रेन चल दी और मैं फिर एक डिब्बे में चढ़ गया। यह डिब्बा मेरा नहीं था और मुझे यहां कपूर साहब नहीं दिखाई दिए। मैं थोड़ा चिंतित हुआ लेकिन मैंने निश्चय कर लिया की ट्रेन जहां-जहां रुकेगी वहां मैं अलग अलग डिब्बों मैं चढ़कर अपना डिब्बा खोज लूंगा।
लगभग 3 घंटे हो गए और मुझे अपना डिब्बा नहीं मिला ।मैं बुरी तरह हताश हो गया मुझे डर लगने लगा कि कहीं टिकट चेक हो गया तो मेरी हालत खराब हो जाएगी । मैं किसी प्रकार का बवाल नहीं चाहता था ।
मुझे ईश्वर याद आने लगे । मैं प्रार्थना करता रहा ।यहां तक मेने कह डाला ...भगवान अगर तू है.. तो मुझे मेरे डिब्बे तक पहुंचा दे .।
पता नहीं क्या क्या कह रहा था.. यहां तक कि ईश्वर से ह ठ भी करने लगा। यह भी कहने लगा अबकी बार मुझे डिब्बा मिल जाना चाहिए।
अगले स्टेशन पर जब गाड़ी रुकी तो मैं अपने डिब्बे से उतर कर जल्दी से अगले डिब्बे में चला गया । यहां यह देख मैं आश्चर्यचकित था कि सामने कपूर साहब आराम से लेटे बीड़ी फूंक रहे थे। मेरी सांस में सांस आई और दिल को चैन मिला ।
मैं चकित था कि मेरी प्रार्थना ईश्वर ने स्वीकार कर ली। मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया और अपनी सीट पर पसर गया। मुझे सामान्य होने में थोड़ा समय लगा और जब मैं सामान्य हो गया तो मैंने कपूर साहब से पूछा ...कपूर साहब कमाल है आपको मेरी कतई चिंता नहीं हुई ।उस पर उन्होंने बड़ी उपेक्षा से जवाब दिया ....कि मैंने समझा तुम्हारी गाड़ी छूट गई है और तुम दूसरी गाड़ी से आ ही जाओगे।
मुझे क्रोध तो आया लेकिन मैंने व्यक्त नहीं किया। सोचा भला आदमी अगर खिड़की से झांकता या दरवाजे पर खड़ा हो जाता तो मुझे डिब्बा ढूंढने में ज्यादा परेशानी नहीं होती। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया और आराम से यात्रा करते रहे।
मेने शुक्र मनाया की चलो अब तो सब ठीक हो गया ।मेने अपने मन में शांति महसूस की
गाड़ी अपना रफ्तार पकड़ चुकी थी और मुझे अब भूख लगने लगी थी। अगला स्टेशन आने पर मैंने प्लेटफार्म से कुछ खाने का सामान लिया और खाते हुए सारी घटना के बारे में सोचता रहा ।मुझे रात भर नींद नहीं आती और बार बार कपूर साहब पर गुस्सा आता रहा ।
रात 3:00 बजे हम टूंडला स्टेशन पर उतर गए ।हमें 2 घंटे प्लेटफार्म पर रहना पड़ा क्योंकि आगरा के लिए बस सर्विस सवेरे 5:00 बजे से शुरू होती थी। लेकिन प्लेटफार्म पर बैठे-बैठे नींद तो नहीं आई मगर सारी घटना चलचित्र की भांति चलती रही और मैंने एक सबक लिया की ट्रेन के डिब्बे में बैठने के बाद प्लेटफार्म से दूर नहीं जाना चाहिए ।अच्छा है डिब्बे के अंदर ही बैठे रहे । यह भी सोच लिया कम से कम अपना टिकट तो अपने पास ही रखना चाहिए ताकि टिकट को लेकर तो कोई परेशानी ना हो ।
इस घटना को 30 साल से ज्यादा हो गए लेकिन आज भी मैं इस सबक का पालन करता हूं और घटना को याद कर ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करता हूं ।
ईश्वर हें ओर वो सुनता हैं ...यह मै मानता हूं ।

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