जबलपुर की रेल यात्रा

अक्का जी और जबलपुर यात्रा / मेरे संस्मरण 

    मंजू का कई बार फोन आ चुका था । अक्का 
जी बार बार पूछ रहीं हैं .. छ गूं क्यों नही आया मुझे देखने ।
मेने कहा .आऊंगा जरूर आऊंगा 
अक्का जी की  ताबियत ठीक नही थी । दो साल हो गए थे उन्हें ।अब वे उम्र के उस पड़ाव पर पहुंच गई थी जहां शरीर अकसर जवाब देने लगता हैं ।
अक्का जी ने बड़ी मुश्किल से फ़ोन पर बात की थी मुझसे कहा.. जल्दी आओ ..ऊपर जाने से पहले मैं सबसे मिलना चाहती हूं ।
उनकी बुलबुल को देखने की बड़ी इच्छा थी  ।उन्होंने कहा ..बुलबुल को लेकर जरूर आना ।
फिर हमारा कार्यक्रम बन गया।  पांच जून का  रिजर्वेशन भी ही गया ।हमने मंजू को फोन भी  कर दिया ।मंजू ने बताया अक्का जी बहुत खुश हुईं हैं.. वो बेसब्री से आप सबका इंतजार कर रही हैं । 
हरी तैयारी शुरू हो गई । हम पूरे 11 साल बाद जबलपुर जा रहे थे । सारा सामान पैक हों गया था और  मेने अपने आप को जाने के लिये पुरी तरह से तैयार कर लिया था।  दिल्ली से बेबी का  भी फोन   आया था ।राजा की शादी के बाद पहली दफे जा रहे हो अक्का जी का आशीर्वाद भी ले  लेना ।
सारी तैयारी  हो चुकी थी.. लेकिन 4 तारीख की रात्रि सब गुड गोबर हीं गया । हमारी यात्रा स्थगित ही गई और रिजर्वेशन निरस्त करना पड़ा । हमने मंजू को फोन किया कहा .हम नही आ  रहे हैं ।मंजू ने फिर बताया अक्का जी यह सुनकर उदास हों गई हैं ।
मेने कहा  ..हम आएंगे और  जरूर आएंगे ।
मुझे यह अच्छा नही लगा फिर प्रीति ने कहा . चलो हम तुम चलते हैं । मुझे यह ठीक लगा और फिर हम दोनों ने मन बना लिया कि  जबलपुर चलेंगे ।
राजा  ने कहा भी कि अगस्त में मुझे फुर्सत मिलेगी तो सब चलेंगे लेकिन मेने कहा ..नहीं मुझे जाना हैं ।
उसने कहा चले जाओगे क्या ।
मेने कहा. तुम्हारी मम्मी मेरे साथ हैं सब संभाल लेगी ।
लेकिन सच तो यह  था कि रेल की यात्रा मेरे लिए कठिन थी ।शारीरिक परिस्थिति के चलते मैं अपना आत्मविश्वास खो चुका था । पैर अब मेरा साथ नही देते थे ।बोझ उठाना मेरे बस की बात नहीं थी ।फिर ट्रेन की भीड़ और मारामारी मुझे डराते  थे ।ट्रेन में जल्दी चढ़ पाऊंगा यह मेरे लिए एक  कठिन सवाल था । मैं यह सब  सोच सोच कर बहुत परेशान हो जाता था ।
मेने पिछले 12साल में सिर्फ एक बार रेल से यात्रा की थी लेकिन तब की बात कुछ और थी ..तब मेरी हालत इतनी खराब नही थी. तब मेरे साथ कुछ जवान लड़के भी थे जिन्होंने सब कुछ संभाल लिया था ।
धीरे धीरे दिन व्यतीत हो रहे थे ।हमारी तैयारी हो रही थी ।जैसे जैसे यात्रा की  तारीख पास आ रही थी मैं यात्रा के बारे में ज्यादा सोचने लगा था ।हमारी यात्रा 22 जून की थी और में अपने अंदर ऊर्जा पैदा करने की कोशिश कर रहा था ।।
फिर अचानक से क्या हुआ मेरे अंदर एक संदेह जा बीज उग आया... क्या में डिब्बे में चढ़ पाऊंगा ।
मुझे लगा की शायद में डिब्बे में आसानी से नहीं चढ़ पाऊंगा ।इसका कारण भी था मैं बड़ी मुश्किल से सीढियां चढ़ पता था ।में पैर ज्यादा नही उठा पता था ।मेरे पैर मेरे शरीर का बोझ उठाने में असमर्थ थे ।मुझे लगा की।डिब्बे जा पायदान काफीनुंच होता है क्या मैं
 बिना सहारे फुर्ती से चढ़ पाऊंगा ।
मे जिताना सोचता उतना ही परेशान हों जता था ।मुझे पहले इस बारे में सोचने का मोका पहले कभी।नहीं।मिला था ।मेने उस पर जभी ध्यान नहीं दिया जरूरत ही नहीं पड़ी ।अब जरूरत पड़ी टॉम्पेट्स होंगाया और जितना मैं सोचता डिब्बे जा पायदान उतना ही ऊंचा होता चला जाता ।यहां तक कि मेरी सोच से भी ज्यादा ऊंचा ।
मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ गया..  में पसीने पसीने हो गया । ने जितना भी उधर से ध्यान हटाता उतना ही ज्यादा सोचने लगता ।कभी कभी सोचता मेने यात्रा का निर्णय क्यों लिया ।
प्रीति ने मेरी यह  हालत देखी तो पूछ बैठी.. क्या हुआ 
मेने बताया तो बोली बिना वजाह परेशान हो रहे  हो कुछ परेशानी नहीं होगी.. फिर में साथ तो हूं ।
प्रीति की बात से थोड़ी हिम्मत बंधी।लेकिन थोड़ी देर बाडी फिर  वही हालत हों गायी ।।मेने गुगल से रेल।के सुनने की फोटो निकाली और देखा डिब्बे का पास्यदान कितना ऊंचा हैं ।देखकर लगा शायद ज्यादा ऊंचा नहीं लेकिन ऐसा भी लगा की शायद चढ़ने में दिक्कत होगी ।
मैं अपने आप को यात्रा के लिए तैयार कर रहा था ।फिर दिमाग में आया की।दो दो सीडियां चढ़ कर देखू  ।मेने ऐसा ही क्या थोड़े प्रयास से चढ़ तो गया लेकिन शंका होने लगी डिब्बे के पास भीड़ होगी और सबको जल्दी होगी ऐसा तो नहीं की भीड़ के धक्के से कोई हादसा हो  जाए । मैं फिर पसीने पसीने हों गया 
प्रीति ने फिर देखा तो फिर बोली... यह क्या तोता पाल लिया है ..ज्यादा नौटंकी मत करो.. कही हड्डी टूट गई तो लेने के देने पद जाएंगे ।
फिर कहा.. चलते हैं अगर ट्रेन छूट गई तो वापिस आ जायेंगे.. कोन सा नोकरी का इंटरव्यू देने जा रहें हैं ।
प्रीति की बात से सांत्वना मिली।चली चलते हैं जो होगा सो देखा जायेगा वरना दो कुली तो उठा कर ट्रेन ने बेटा ही  देंगे ।
22 तारीख की दोपहर जब ओटी में बैठ कर स्टेशन जा रहे थे तो मैं अपने मन को काबू ने करने का प्रयास कर रहा था । मेरी चिंता बढ़ती जा रही थी ।पिछले बार जब आग्राकेंट आया था तो देखा था की स्टेशन से काफी बाहर बेरियर लगा  दिए गए थे। वहां से पैदल ही प्लेटफार्म पर जाना पडा था ।कुली भी नही मिले थे ।बड़ी परेशानी हुई थी ।फिर यदि गाड़ी ने अचानक प्लेटफार्म बदल दिया तो ..
मेरी परेशानी सुन ऑटो वाले सेम ने कहा ..भाईसाहब आप व्यर्थ की चिंता कर रहें हैं ।अब वहां ऐसा नहीं हैं ।वहां अब कुली मौजूद रहते हैं ।आपको व्हीलचेयर मिल जायेगी और अब स्टेशन पर तमाम सुविधाएं हो गई हैं  आपको कोई परेशानी नहीं होगी।
सेम की बाते सुन चिंता थोड़ी कम हुई।
और जब स्टेशन पहुंचे तो वहीं दृश्य देखने को मिला जो सेम ने कहा था ।
ऑटो रुकते ही कुलियों ने घेर लिया ।
थोड़ी देर में ही सब कुछ तय हो गया और फिर व्हीलचेयर पर बैठकर में स्टेशन की तरफ  जा रहा था ।
मैं यह देखकर दंग था की स्टेशन में व्याप्पक परिवर्तन कर  दि या गया था ।जिस स्थान पर ऊंची सीडियां थी वहां अब रैंप बना दी गई थी ।व्हीलचेयर आराम से चलूंगा ।पुल पर चढ़ने के लिए अब लिफ्ट की व्यवस्था थी। व्हीलचेयर सहित चढ़ने ने कोई दिक्कत नही हुई । ऐसे ही उतरने के लिए भी लिफ्ट का  इस्तेमाल कुली।ने किया ।
कुली ने कहा  आपकिं ट्रेन  2 या 3 नंबर  पर आएगी ।हम आपको इस स्थान पर बैठा देंगे जहा से डिब्बा ढूढने में दिक्कत ना हो ।
उसने कहा.= आप चिंता ना करें अभी ट्रेन आने में एक घंटा बाकी हैं ==ट्रेन आने से पहले ही सारी स्थिति पक्की हों गाएगी । हम समय से आ जायेंगे और ट्रेन मे बैठा देंगे। ।
कुली चले गए और हम प्लेटफार्म में बैठकर ट्रेन की प्रतीक्षा करने लगे ।
मेने मोबाइल ने ट्रेन की स्थिति देखी ।ट्रेन सही समय से चल रहीं थी । मैं आराम से बैठकर प्लेटफार्म के दृश्य देखने लगा ।
प्लेटफार्म पर काफी  भीड़ थी लेकिन  कोई हड़बड़ाहट नहीं थी ।स्टेशन पर सभी कुच व्यवस्थित था । स्टेशन काफी साफ सुथरा लग रहा  था। बैठने के लिए काफी  बेंच थी। इसके आलावा पत्थर के चबूतरे भी बहुत बने हुए  थे ..यात्री आराम से बैठे थे ।
ट्रेन के आने जाने की घोषणा हों रही थी और ट्रेन आ जा रही थी ।मेरी उत्सुकता थी कि हमारे प्लेटफार्म।पर कोई ट्रेन आए ।संयोग से तभी घोषणा हुई की उज्जेनी एक्सप्रेस प्लेटफार्म नंबर दो पर आ रहीं हैं । मैं दो  नंबर  पर ही बैठा हुआ था ।
थोड़ी देर मे  ट्रेन आ गई और प्लेटफार्म पर रुक गई । कुछ यात्री  उतरे और कुछ यात्री चढ़े ।कोई हड़बड़ाहट नहीं कोई नारामारी नहीं ।लेकिन मेरा ध्यान तो।डिब्बे के पायदान पर था ।मेने देखा और लगा कि मैं तो आसानी से चढ़ जाऊंगा ।प्रीति ने कहा अच्छी तरह देखा लो चढ़ तो जाओगे ।में कहा आराम से फिर देखा ट्रेन काफी देर  रुकी । मुझे संतिष्भुआ की पांच मिनट बहुत होते हैं और इसमें तो दस बार चढ़ा जा सकता है।
मेरा ब्लड प्रेशर सामान्य हों गया था और मैं बहुत अच्छा महसूस करने लगा था । मेरे मन ने जो अजीब कल्पनाएं कर रखी  थी वे सब टूट गई ।
पांच बज चुके थे ।हमारी ट्रेन आने की सूचना दी जा रही थी ।तभी कुली आ गए और कहा ट्रेन तीन नंबर पर आ रहीं हैं ।उन्होंने समान उठाया और व्हीलचेयर के साथ हमे  वहां  के गए जहा हमारी बोगी आने वाली थी ।
थोड़ी देर में ट्रेन आ गई ।ट्रेन से कुछ यात्री उतरे और फिर दरवाजा खाली था ।प्रीति सामान के साथ चढ़ गई और फिर मैं व्हीलचेयर से उतर कर आराम से बिना किसी मदद के चढ़ गया ।मुझे कोई दिक्कत नही हुई ।प्रीति ने पूछा भी आराम से चढ़ गए ।मेने कहा.. हां आराम से चढ़ गया ।
इसके बाद जब हम अपने बर्थ पट पहुंचे तो मन प्रसन्न था। ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी कोई लाटरी लगा गई हो ।अब मुझे लगने लगा था कि हम आराम से जबलपुर पहुंच जाएंगे और   यात्रा  का भरपूर आनंद लेंगे ।
ट्रेन चल दी थी और हम खिड़की के सहारे बैठ कर बाहर के दृश्य देखा रहे थे। 









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