विद्या प्रसाद

विद्या प्रसाद राज ...
      विद्या प्रसाद तो आपको याद होंगे। वे संस्थान।के अन वरिष्ठ कर्मचारियों में से एक थे जो साठ के दशक में संस्थान की स्थापना के साथ ही कार्यरत थे ।यद्यपि वे चट्रूर्थ श्रेणी के वाल्मीकि कर्मचारी थे लेकिन वे थोड़ा प्रकार के व्यक्ति थे ।वे अपने समाज में लोकप्रिय थे और राजनेतिक मंचों के साथ भी जुड़े हुए थे ।वे अच्छा बोल भी लेते थे और अपने विचार भी अच्छी तरह व्यक्त कर लेते थे । उनका उप  नाम राज था और वे विध्याप्रसाद राज के नाम से सामाजिक मंच पर जाने जाते थे ।मेरी उनसे मुलाकात और पहचान सत्तर के दशक में हुई थी तब  संस्थान न्यु आगरा के धीर भवन मेंचला करता था ।
एक दिन बातचीत के मध्य उन्होंने बताया कि वे हाई स्कूल करना चाहते है लेकिन।कई।बार परीक्षा देने के बावजूद वे उत्तीर्ण नहीं हो पाए ..हमेशा गणित और अंग्रेजी में फेल हों जाते है ।
      उन दिनों संस्थान में डॉ बृजेश्वर वर्मा निदेशक थे और पंडित रमकृष्ण नावड़ा उपनिदेशक थे ।के लक्ष्मीनारायण बड़े बाबू थे । तीनों ही हमेशा कर्मचारियों के पक्ष  में ही सोचा करते थे ।अन दिनों के लक्ष्मीनारायण का दबदबा था ।तब यह स्थिति थी कि को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हाई स्कूल कर लेता था तो उस दूसरे दिन ही बाबू बना दिया जाता था ।ना कोई इंटरव्यू ना कोई आवेदन ।
विध्याप्रसाद भी यही चाहते थे।
लेकिन समस्या थी कि  उत्तीर्ण नहीं हो पा  रहे थे ।तब मैने उनसे कहा कि मेरे एक मित्र है जो अध्यापक है तुम उनसे ट्युषण पढ़ो शायद उत्तीर्ण  हो  जाओ ।
उन्होंने मेरी बात मान ली और आश्चर्य कि  वे उसी साल उत्तीर्ण ही गए ।
दूसरे दिन ही वे बाबू बना दिए गए । वे बड़े खुश थे और उन्होंने अपने अध्यापक की तारीफ की ।
मेने उनसे कहा.. कि तुम्हे अपने अधायक कोभी शुक्रिया बोलना चाहिए । 
उन्होंने कहा.. हा में उनसे मिलूंगा 
लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया ।में जब मित्र से मुलाकात हुई तो उन्होंने कहा ..विद्या प्रसाद उत्तीर्ण हो गए लेकिन मिलने नहीं आए  ।उन्होंने यह भी कहा ..उन्होंने मेरी फीस भी नहीं दी ओर कहा  कि से  दूंगा लेकिन अभी तक नहीं  दी ।मेने भी आपके वजह से कुछ नहीं ।
मित्र की बसते सुन में शर्मिंदा हों गाय।मेने विद्या प्रसाद से यह बात कही तो वे बोले ..हां में दे दूंगा ओर शुक्रिया भी बोलूंगा ।
       फिर कई दिन बीत गए  ।मेरे बार बात कहने पर भी विध्यप्रसाद ना तो मिलने गए और ना ही उन्होंने  फीस दी ।मुझे यह बात अच्छी नहीं लगी और जीवन भर मेने इस बात को याद रखा ।
        विद्या प्रसाद ने इसके बाद खूब तरक्की की ओर आरक्षण का लाभ लेते हुर कई कर्मचारियों को फलांगते हुए कर्यालय सहायक के पद पर पहुंच गए ।
वे परिषद के सक्रिय नेता थे और अधिकारियों के प्रिय थे।परिषद के नेताओं के बारे ने कहा जाता है कि वे हमेशा  अधिकारियों की प्रिय किताब  में शामिल रहते थे इसलिए मलाई दार पदों पर उन्ही की नियुक्ति होती थी ।विद्या प्रसाद भी भंडारी के पद पर कई वर्षों तक रहे और उसी पद से रिटायर  भी हुए।
      विध्याप्रसाद का जीवन सेवानिवृत्ति के बाद अच्छा  नहीं रहा ।उन्हें काफी जाध्टों का सामना करना पड़ा ।स्टाफ क्वार्टर में रहते हुए विषम परिस्थिति में उन्हें क्वार्टर छोड़ने का  आदेश मिला ।उन्होंने खूब तरक्की की लेकिन  अपने बच्चों की उचित शिक्षा नहीं दिला पाए ।अंतिम समय ने  वे बीमार हो गए और 65 वर्ष की आयु में ही एक  दिन अचानक अस्पताल में चल बसे ।
    विद्या प्रसाद अब इस दुनिया ने नहीं हैं लेकिन जब 
पुराने लोगो की चर्चा होती  है तो वे  अनायास ही  याद आ जाते हैं ।




  

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