सीताराम सैनी की प्रथम पुण्यतिथि

सीताराम सैनी की प्रथम पुण्यतिथि पर../मेरी संस्करण

    सीताराम सैनी को मैं बचपन से जानता था ।तब मेरी उम्र मुश्किल से 15 ..16 साल रही होगी। तब सीताराम सैनी ने बाग  मुजफ्फर  खा में जनरल मर्चेंट की दुकान खोली  थी ।उस समय हमारा परिवार वहां रहता था, और उनकी दुकान हमारी घर के  थोड़ी दूरी पर थी। 
यह बात  के लक्ष्मी नारायण जी ने हमें बताई थी। लक्ष्मीनारायण जी हमारे परिवार से परिचित  थे , और अक्सर हमारे हमारे घर आया करते थे । इस प्रकार सीताराम सैनी से हम लोगों का परिचय हो गया था और हम लोग अक्सर उनकी दुकान से सामान लेने जाया करते थे।
      1972 में मुझे संस्थान में नियुक्ति मिल गई और मैं संस्थान नियमित रूप से जाने लगा। तब सीताराम सैनी फिर से संस्थान में नियुक्त हो गए थे ,और उन्होंने अपनी दुकान बंद कर दी थी।। सीताराम सैनी और लक्ष्मी नारायण की दोस्ती अच्छी थी । के  लक्ष्मी नारायण सीताराम सैनी पर बहुत भरोसा करते थे।
मैं उस समय 22 साल का था और मुझे दफ्तर में काम करने का कोई अनुभव नहीं था। दफ्तर के  वातावरण से भी मैं परिचित नहीं था और दफ्तर मैं कैसा व्यवहार करना चाहिए यह भी नहीं जानता था ,जिसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा था ।कुछ ऐसी घटनाएं घटी  कि मैं बुरी तरह हताश और विचलित हो गया। तब सीताराम सैनी और जीवन लाल गुप्ता जी मेरे मार्गदर्शक बने। 
उन्होंने मुझे समझाया  कि दफ्तर में काम करना है तो  अपनी आंखें ,दिमाग और कान खुले  रखना चाहिए ।अपनी जवान सोच समझकर चलानी चाहिए और आंख बंद कर किसी पर भरोसा नहीं करना चाहिए ।क्योंकि दफ्तर में सभी लोग अपने स्वार्थ और हितों को सबसे ऊपर रखते हैं और उन्हें तुम्हारी तकलीफ  से कोई लेना देना नहीं होता है ।इसलिए जो कुछ भी बोलो सोच  समझ कर तोल तोल के बोलो ।
उनकी इन बातों को मैंने गांठ मैं बांध लिया और अपनी 40 साल की सेवा में इसका अक्षरस पालन किया जिसके कारण मुझे फिर कोई तकलीफ नहीं हुई।
      सीताराम सैनी उम्र में  मुझसे काफी बड़े थे ।लेकिन उम्र का यह फासला धीरे धीरे कम होता चला गया और फिर वह मेरे मार्गदर्शक के साथ-साथ मेरे अभिन्न मित्र भी बन गए ।फिर हमारे बीच उम्र और संकोच की दीवार पूरी तरह हट गई और हम हर विषय पर खुलकर बातें करने लगे थे।
      सीताराम सैनी संघर्षशील थे और कटिंग परिस्थितियों में भी नहीं घबराते थे । यूनियन के गठन और संघर्ष करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी और उनके विचार और सलाह से हमें काफी मदद मिलती थी।
      मोहनलाल गुप्ता और सीताराम सैनी एक अच्छे मित्र थे और जीवन के संघर्ष में एक दूसरे का साथ देते थे ।  मेरी भी मोहनलाल गुप्ता से जब दोस्ती हुई तो उनके जीवन काल ताक  बनी रही ।और यह कहना अनुचित भी होगा कि यह दोस्ती केवल दफ्तर तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि परिवार में भी आना जाना लगा रहता था।
      मोहनलाल गुप्ता भी जीवट के व्यक्ति थे। सबसे अच्छे संबंध रखते थे ।लेकिन कुछ लोग  उन्हें हमेशा दबाने की कोशिश किया करते थे ।
     मोहनलाल गुप्ता बात करने और व्यवहार में कुशल थी लेकिन लिखा पढ़ी में इतनी मजबूत नहीं थे । इसलिए जब यूनियन का गठन हुआ तो मुझे सचिव बनाया गया और मोहनलाल गुप्ता को अध्यक्ष।
     मुझे लिखा पढ़ी मैं कोई कठिनाई नहीं होती थी और मैं मजे से लिखा पढ़ी कर लेता था। जो भी लिखता था उसे मैं बृजेश श्रीवास्तव ,सीताराम सैनी और कमल किशोर कपूर को दिखाया करता था। वे लोग इस पर अपनी सलाह दिया करते थे और उसमें संशोधन भी . किया करते थे।
    एक बात मोहनलाल गुप्ता ने मुससे कहा कि मैं लिखा पढ़ी तो नहीं कर सकता लेकिन बाकी जैसा तुम कहोगे मैं करूंगा और सचमुच ऐसा  कर जाते  थे ,जिसे कर पाना आश्चर्यजनक होता था।
     हम लोग अक्सर जिलाधिकारी के दफ्तर में अपनी बात कहने जाया करते थे । मेरी तो हिम्मत नहीं होती थी ,वहां की स्थिति को देखकर लेकिन बाबा धड़ल्ले से घुस जाते थे और अपनी बात कहते थी । उनकी बातें जिलाधिकारी सुनते भी थी। 
मुझे याद है एक बार एक मंत्री को ज्ञापन सौंपना था लेकिन मंत्री तक पहुंच पाना मुश्किल था। वहां सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था थी। लेकिन बाबा बिना किसी संकोच और मुश्किलों की परवाहा ना करते हुए धड़ल्ले से मंत्री जी के पास पहुंच गए और ज्ञापन दे दिया। हम लोग दूर से खड़े यह तमाशा देख रहे थे ।
इसी प्रकार निदेशक से बातचीत करते समय भी वे खुलकर अपनी बात कहते थे  और इस बात की परवाह नहीं करते थे  कि इसका परिणाम  क्या होगा ।
  सीताराम सैनी ने कई बार अपने मकान बदले थे। एक बार वह नगला पदी में मोहनलाल गुप्ता के  मकान के पास ही रहने लगे थे और उस समय मैं भी वहां से थोड़ी दूर न्यू आगरा में नहर की पटरी के सहारे बने एक मकान में रहता था ।अक्सर छुट्टी वाले दिन हम  लोग सीताराम सैनी के घर पहुंच जातेथे  और चाय पीते हुए गपशप मारा करते थे ।यद्यपि उसमें संस्थान और यूनियन की बातें ही हुआ करती थी और सारे मामलों पर चर्चा हो जाती थी। और क्या कार्रवाई करनी है यह भी तय है हो जाती थी।
      सीताराम सैनी कर्मचारियों और अध्यापकों के बीच काफी लोकप्रिय थे । उनकी लोकप्रियता का अंदाज एक घटना से मालूम पड़ जाता है। महावीर शरण जैन के कार्यकाल में एक बार समन्वय समिति बनाने के लिए कर्मचारियों से अपने दो प्रतिनिधि चुनने के लिए कहां गया और इसके लिए चुनाव भी कराएं गए। इस चुनाव में कई दिग्गज अपना भाग्य आजमाने उतारे थे। जिनमें राम बिहारी लाल श्रीवास्तव, रामप्रसाद देवरानी, विद्या प्रसाद, रतन बाबू ,विजेंद्र सिंह बड़े बाबू प्रमुख थे। इस चुनाव में सीताराम सैनी प्रचंड बहुमत से जीत गए और कर्मचारियों  के  प्रतिनिधि चुने गए।
हम लोगों ने इसकी समीक्षा भी की थी और पाया था  कि यूनियन के अतिरिक्त बाकी कर्मचारियों ने भी उन पर विश्वास किया था और इसका मुख्य कारण था श्री सीताराम सैनी हमेशा लोगों की मदद किया करते थे।
     सीताराम सैनी ,चंद्रकांत दीक्षित और कमल किशोर कपूर  की तिकड़ी मशहूर थी ।वे अक्सर कुछ ना कुछ काम करते रहते थे। एक बार उन तीनों ने मिलकर कुछ व्यापार शुरू किया था। चंद्रकांत दीक्षित ने बताया कि वह साउथ में कुछ कार्य कर रहे हैं ,और इस सिलसिले में यह तीनों अक्सर मद्रास जाया करते थे ।एक बार जब वे वापस लोटे तो तीनों ने एक ही रंग की एक सी कमीज पहन रखी थी, और यह बात काफी दिनों तक चर्चा में रही थी । मुझे तो अभी तक याद है की   वो  लाल रंग की डिजाइन वाली कमीज थी।
      चंद्रकांत दीक्षित को अधिकतर लोग पसंद नहीं करते थे ।उनकी आदतों की वजह से दूरी बनाए रखते थे ।लेकिन मेरी उनसे खूब पट  गई थी । वे अपने  मन की बात मुझसे कह देते थे ,और मैं समझ पाया था कि  उनके जीवन में कुछ ऐसा, घटा था जिसने उन्हें बदल दिया था । वस्तुत वे बुरे  नहीं थे  और मैंने उन्हें बहुत करीब से देखा था ,इसलिए मैं यह बात कह रहा हूं।
     मोहनलाल गुप्ता सीताराम सैनी ,चंद्रकांत दीक्षित कमल किशोर कपूर सभी आपस में गहरे मित्र थे । संयोग से सभी मेरे भी मित्र थे और उनके साथ मेरी अच्छी खासी उठक बैठक थी । पारिवारिक जान पहचान भी बन गई थी। यद्यपि वे सब मुझसे वरिष्ठ और उम्र में भी काफी बड़े थे।उनके जीवन और उनके संघर्ष से मैंने भी काफी कुछ सीखा और अनुभव प्राप्त किया। 
देव योग से अब उनमें से कोई भी जीवित नहीं है                              
         सीताराम सैनी ने लंबी उम्र पाई लेकिन चंद्रकांत दीक्षित ने 70 वर्ष में ,मोहनलाल गुप्ता ने 68 वर्ष में और कमल किशोर कपूर ने 65 वर्ष में इस दुनिया को छोड़ दिया। सीताराम सैनी ने 83 वर्ष मैं अपना शरीर छोड़ दिया।
 आज उनकी पहली पुण्य तिथि है। कल उनकी बिटिया ने मुझे फोन कर बताया की अंग्रेजी महीने की तारीख के अनुसार उन्होंने आज के दिन अपना शरीर छोड़ा था जबकि हिंदी तिथि के अनुसार उस दिन जन्माष्टमी थी ।
मैं सीताराम सैनी और उन  सभी को जो इस दुनिया में नहीं रहे हैं ,अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

ओम शांति शांति

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