कुआं पानी और नंदराम ध्यानी

कुआं लाश और नंदराम ध्यानी...

बात संभवत 1974 की है. उन दिनों संस्थान का दफ्तर न्यू आगरा स्थित विभव भवन में चला करता था ।. भवन के प्रवेश द्वार के सामने एक बड़ा  हाल था जिसमें लैंग्वेज लेख स्थापित थी ।बाई तरफ महिला छात्रावास था और दाए तरफ  दफ्तर था जिसमें पंडित राम कृष्णा नावडा उपनिदेशक और बाकी अन्य कर्मचारी बैठा करते थे। प्रवेश द्वार के  ठीक सामने एक बड़ा मैदान था और ठीक सामने हनुमान जी का एक मंदिर था ।मैदान संभवत एक  पार्क था जिसमें एक तरफ एक  तालाब जैसा कुछ  बना हुआ था । पार्क के कोने में एक कुआं जो  पत्थरों से ढक दिया गया था।इसी कुएं से पम्प लगा कर दफ्तर ओर हॉस्टल में पानी की आपूर्ति होती थी ।
दफ्तर के बाहर एक तरफ कुछ गेरिज बने हुए थे जिसमे  रामबली और नंदराम ध्यानी का परिवार रहता था ।इस गेरिज के सामने एक म्यूनिस्पेलटी का  नल था ।इस नल से दफ्तर जे लिए घड़ों में पानी भर कर रखा जाता था ।कभी कभी हॉस्टल की लड़कियां अपने बालों को  धोने के लिए यहां आ जाती थी ।
एक बार की बात हैं हॉस्टल की लड़कियों ने  शिकायत दर्ज कराई की हास्टल के  पानी में  असहनीय बदबू आ रही हैं  ।पंडित जी तक शिकायत पहुंची तो  उन्होने पानी चखा और कहा ..हां बदबू आ रही है।फिर उन्होंने नारायण सिंह  को बुलाया ओर कहा ..पानी में  बदबू हैं ।नारायण सिंह चौकीदार थे और सेनेटरी पाईप फिटिंग के जानकार भी थे और पंडित जी के विश्वासपात्र थे ।नारायण सिंह ने कहा... पंडित जी कुएं  की बहुत दिनों  से सफाई नहीं हुई हैं ..लगता हैं पानी सड़ गया है ..पानी साफ करना पड़ेगा ।
पंडित जी ने कहा ..तो साफ करों 
दूसरे दिन जब मै दफ्तर आ रहा था तो नारायण सिंह। कुएं के पास बाल्टी में दवा घिल रहे थे ।मुझे देख मुस्कुराते 
मेने पूछा ..क्या कर रहे हो ।
उन्होंने कहा ..दवा घोल रहा हूं. फिर इसे कुएं ने डालूंगा 
तो  बदबू चली जाएगी 
मेने कहा ..सच्ची ..चली जायेगी बदबू
क्यों नहीं.. देखना एसे गायब होगी .. छू मंतर 
उस दिन काफी देर   तक नारायण सिंह यही काम करते रहें ।
दूसरे दिन लड़कियों ने  फिर शिकायत कि बदबू और ज्यादा आ रही हैं ।
पंडित जी ने पानी चखा फिर बोले ..नारायण सिंह अभी पानी ठीक नहीं हुआ ।
नारायण सिंह ने कहा ..पंडित जी पानी ठीक हो जाएगा आज ओर दवा डाल देता हूं ।
नारायण सिंह फिर  बाल्टी ने घोल बनाने  में लग गए ।
ऐसे ही  तीन चार दिन बीत गए 
लड़कियों ने कहा.. अब तो असहनीय बदबुं हो  गई है ।लड़कियों ने पानी का इस्तेमाल बंद कर दिया  ।दफ्तर में भी शिकायत होने लगी ।फ़्लैश चलते हैं तो बदबुं आती हैं नाक सड़ जाती हैं ..ओर यह भी कहा कि पानी के साथ सफेद सा कुछ आता हैं 
पंडित जी परेशान ही गए 
नारायण सिंह ने फिर अपनी विद्वता दिखाई ..पंडित जी यह तो दवाइं की वजह से हैं 
लोगो ने शंका प्रगट की कहीं कोई जानवर  तो नहीं गिर गया  है ।
नारायण सिंह ने कहा ....कुआं ती पत्थरों से ढका हुआ हैं जानवर जैसे गिर दाकता हैं ।
पंडित जी  को बात समझ में आई ।
 उन्होंने कहा  ..ठीक है नारायण सिंह तुम  मुझे बताओ कि अब  क्या करना है ।
नारायण सिंह ने कहा.. ठीक हैं पंडित जी ।
बात अगले दिन के  लिए टल  गई  .
शाम ढलने लगी थी।  एक एक कर दफ्तर के लोग घर वापिस जा रहे थे । मेने भी चलने की तैयारी शुरू कर दी ..तभी नंदराम ध्यानी मेरे पास आया और  बोला.. साहब जी आपके पास बिजली की लंबी डोरी होगी ।
मेने पूछा क्या करोगे 
उसने कहा ..में बल्ब लगा कर आज कुएं में  देखूंगा  कि क्या मामला हैं ..कोई जानवर तो नहीं  गिर गया ।
मेने उसे बिजली कि डोरी बल्ब और होल्डर दे  दिया  
दूसरे दिन जब मै दफ्तर आया तो देखा कुएं के पास भीड़ लगी हुई हैं ।दफ्तर के लोग भी तमाशबीन बने हुए हैं । हॉस्टल की   लड़कियां  भी वहां मौजूद हैं ।
मेने देखा वहां  पुलिसवाले भी खड़े हैं 
क्या हो गया ..मेने वहां कोने  में खड़े नारायण सिंह से पूछा ।
उसने कहा ..कुएं  में लाश पड़ी हैं 
क्या ....मेरा मुंह खुला रह गया 
फिर नंदराम ध्यानी न बताया ...साहब जब मै आपसे बिजली की डोरी ले  गया था तो मेने रात कुएं ने डाला 
तो लाश  दिखाई दे गई । रात ही पुलिस को खबर दी गई और अब लाश  को निकालने का काम हो रहा है ।
मुझे यह सुनते ही उबकाई आने लगी लेकिन इसके बावजूद भी मै थोड़ी देर बाद तमाशबीनों में  शामिल हो गया ।
उस दिन ..दिन भर यही चलता रहा ।दफ्तर में  कोई काम नहीं हुआ ।
शाम तक लाश निकाल ली गई । लाश बुरी तरह सड़ गई थी । उसके अंग भंग हो चुके थे  ।दवा के कारण और जल्दी सड़ गई थी । लाश की पहचान हो चुकी थी ।लाश एक पुलिस वाले की थी जी कई  दिनों से लापता था ।
अब सारी बात समझ में आ चुकी थी कि पानी में बदबू क्यो आ रही थी  ओर पानी के साथ सफेद सा जो निकाल रहा था वो क्या था ।
 हम लोगो  को तो   यह सोच सोच कर उबकाई आ रही थी जबकि हमने तो उसका इस्तेमाल भी नहीं किया था ।
सोचिए जरा उनका क्या हाल हुआ होगा जिन्हीने  उसका इस्तेमाल किया होगा ।
यह किस्सा काफी दिनों तक चर्चा ने रहा था ।

_विजय राघव आचार्य 












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