बटेश्वर और नोका बिहार
ठाले
बटेश्वर और नोका बिहार
फिर बटेश्वर जाना हुआ। लेकिन इस बार बुलबुल हमारे साथ थी। राजा ने सवेरे अचानक कहा.. बटेश्वर चल रहे हो.। भला मुझे क्या एतराज होता। हमने फटाफट यात्रा की तैयारी की और दोपहर 2:00 घर से निकल पड़े। कार ड्राइव करते हुए राजा ने कहा.. पापा आज मेरी ड्राइविंग देखकर मुझे नंबर देना, पता चलेगा पास हुआ या फेल। मैंने हंसकर कहा.. जरूर
इस बार बटेश्वर जाने के लिए राजा ने लखनऊ एक्सप्रेस वे का रास्ता पकडा ।पिछली बार हम लोग शमशाबाद होकर गए थे.।
यात्रा अच्छी रही और हम लोग लगभग 4:00 बजे बटेश्वर पहुंच गए। मौसम अच्छा था और रास्ते में कोई भीड़ भाड़ नहीं थी।
बाबा बटेश्वर नाथ के अच्छे से दर्शन हुए और पुजारी जी ने अच्छे से पूजा अर्चना करवाई। इस बार हमें बंदरों का उत्पात ज्यादा दिखाई दिया जो प्रसाद कि छीना झपटी कर रहे थे । हमें डर लगा कहीं यह बुलबुल को काट ना लें । लेकिन पुजारियों ने बताया कि यह किसी को काटते नहीं। इस बार हमें मधुमक्खियां नहीं दिखाई दी।
मुख्य मंदिर के दर्शन के बाद हम लोगों ने यमुना घाट में बने अन्य मंदिरों को भी देखा। इस बार हमने कोई हड़बड़ी नहीं की। यमुना किनारे मंदिरों के पास काफी देर तक बैठे रहे। बुलबुल तो इतनी प्रसन्न हुई कि नाचने लगी। शाम की 5 बज रहे थे और बटेश्वर घाट बड़ा अच्छा लग रहा था। बटेश्वर में यमुना के किनारे 101 शिव मंदिर है। इन्हें एक साथ देखना आश्चर्य का विषय है। इसीलिए बटेश्वर को दूसरी काशी का नाम दिया गया है।
इस बार यमुना में नोका बिहार का मन बना और हम लोगों ने यमुना में रोमांचक नोका बिहार का आनंद उठाया।
नोका बिहार के साथ ही यमुना किनारे बने मंदिरों की दुर्लभ दर्शन भी किए। यद्यपि यह विहार मुश्किल से 15 मिनट का होगा, लेकिन इसने हमारे दिल में खुशियां भर दी ।
यमुना नदी में उतरने के लिए हमें काफी सीढ़ियां उतरनी पड़ी। यह मेरे लिए मुश्किल था लेकिन राजा की सहायता से यह संपन्न हो गया।
वापसी यात्रा अच्छी रही। मैं तो रास्ते में ही सो गया और जब मेरी आंख खुली तो हम अपनी कॉलोनी में प्रवेश कर रहे थे
मैंने पूछा भी था हम कहां हैं। राजा ने कहा हम घर पहुंच चुके हैं। फिर पूछा यात्रा कैसी रही, कितने नंबर दिए मुझे।
मैंने कहा.. पूरे 100 नंबर दे दिए।
राजा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वह खुश हो गया।

Comments
Post a Comment