लहराते बाल
लहराते बाल/मेरे संस्मरण
आगरा का छीपीटोला बाजार प्रसिद्ध कबाड़ बाजार है। यहां सेना से नीलाम क्या हुआ सामान बहुतायत में मिल जाता है जिसमें इलेक्ट्रॉनिक सामान भी अच्छी कंडीशन में हुआ करता था। बात 70 के दशक की है जब हम लोग छुट्टी वाले दिन छीपीटोला बाजार जाया करते थे। हमारा यह शौक बन गया था। भले ही हम कुछ ना खरीदें लेकिन वहां अपने मतलब की सामग्री जरूर देखा करते थे। वहां के दुकानदार भी हमें अच्छी तरह जान गई थी और बड़े चाव से हमें सामान दिखाया करते थे। कभी-कभी हम कुछ सामान खरीद भी लिया करते थे। बाजार से लौटते वक्त वही टंकी के पास एक हलवाई हुआ करता था जहां पर अक्सर गरम गरम समोसे और लस्सी बना करती थी। बृजेश को लस्सी पसंद थी इसलिए हम वहां रुक कर पहले समोसे खाते और उसके बाद लस्सी पीकर फिर आगे चलते।
तब हमारे पास एक साइकिल हुआ करती थी और हम लोगों को साइकिल से ही सारा रास्ता नापा करते थे। साइकिल मैं चलाया करता था अवधेश साइकिल के डंडे पर बैठा करते थे। उन दिनों हमारी उम्र पश्चिम 26 साल हुआ करती थी। बृजेश को दमे की प्रॉब्लम थी इसलिए मैं उसे साइकिल चलाने नहीं दिया करता था। उन दिनों शरीर में ताकत थी ऑटो साइकिल चलाने में कोई दिक्कत नहीं हुआ करती थी बस सेंट जॉन्स की चढ़ाई मैं थोड़ा दम भूल जाता था लेकिन तब बृजेश पेडील पर अपना पैर लगा दिया करते थे और तब हम आराम से चढ़ाई चर जाया करते थे।उन दिनों मेरे बाल लंबे लंबे थे और कंधों तक लहराया करती थे। दाढ़ी भी बड़ी हुई थी। यह घटना तब हुई थी जैसे मैं आज तक नहीं भूल पाया हूं। सेंट जॉन्स की चढ़ाई चढ़ते हुए पीछे से किसी ने कमेंट कासा... भाई साहब क्या जमाना आ गया है कि हट्टा कट्टा लड़का साइकिल पर बैठा है और एक लड़की साइकिल चला रही है। उसकी टिप्पणी सुनकर हम कोई प्रतिक्रिया दे पाते उससे पहले उस व्यक्ति ने तेजी से अपनी साइकिल आगे बढ़ाकर पलट कर हमें देखा। मेरी दाढ़ी और चेहरा देखकर वह शर्मिंदा हो गया और तेजी से अपनी साइकिल आगे बड़ा ले गया। हमें पता नहीं कि उसके मन में क्या हुआ होगा लेकिन हमारे चेहरे पर जरूर हंसी आ गई। तब छीपीटोला बाजार में लस्सी पीते हुए बृजेश ने कहा... बंधु अब तो अपने बाल कटवा लो क्यों मुझे शर्मिंदा करते हो। मैंने उसकी बात मान ली और अपने बाल कटवा लिए, लेकिन आदत कहां बदलती है कुछ महीनों बाद फिर मेरे कंधे तक बाल लहरा रहे थे.

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