ताजमहल मेरे संस्मरण

ताजमहल /मेरे संस्मरण 
   हमारे घर से ताजमहल लगभग 8 किलोमीटर दूर था लेकिन जब हम फुदकने लायक हुए तो उछलते कूदते ताजमहल छोटे रास्ते से होकर पहुंच जाते थे ।दरअसल ताजमहल जाने की बात तब शुरू हुई जब रामलीला देखने के लिए बच्चों की टोली रामलीला मैदान जाने की तैयारी करने लगी ।उस समय लाल किले के सामने रामलीला के मैदान में रामलीला हुआ करती थी ।रावण दहन देखने के लिए मोहल्ले के लोग जाया करते थे। एक दिन बड़े बच्चों ने हमसे कहा... चलो रामलीला देखने चलते हैं तो फिर मोहल्ले के बच्चों का टोल जिसमें हम जैसे फुदकने वाले बच्चे थे तो साइकिल चलाने वा ले बड़े बच्चे भी थे ...सब रामलीला देखने चल पड़े। बड़े बच्चों के नेतृत्व में हम लोग चित्रा टॉकीज हॉस्पिटल रोड रावतपारा मस्जिद तले होते हुए बिजली घर पहुंच गए। थोड़ी ही दूर पर लाल किला था और उसके सामने रामलीला का मैदान था ।उस समय यह मैदान हमें बहुत बड़ा लगता था । हम लोग रावण दहन देखते - मेले में गोलगप्पे और चाट भल्ले खाते फिर धनुष बाण खरीद कर फुदकते हुए घर वापस आते ।तीन-चार दिन खूब बंदर राक्षसों का युद्ध किया करते और जब तीर कमान टूट फूट जाते हैं तो अगली रामलीला तक प्रतीक्षा करते।
एक दिन बड़े बच्चों ने बताया यहां से ताजमहल थोड़ी दूर पर है चलो वही घूम आए और फिर एक दिन बच्चों का टोल कूदते फांदते ताजमहल पहुंच गया। हमारी जेब में मूंगफली भरी हुई थी और गेंद बल्ला हाथों में था ।उस समय ताजमहल में कोई टिकट नहीं था और आज जैसा सुरक्षा का तामझाम भी नहीं था ।अधिकतर वहां सन्नाटा पसरा रहता था और लोग कम ही जाते थे। हम लोग दिन में वहां पहुंच जाते हैं और खूब धमाचौकड़ी मचाते और शाम होते होते घर लौट आते ।
जब थोड़ा बड़े हुए तो फिर परिवार के साथ तांगे ने बैठकर जाने लगे ।कोई मेहमान आता तो जाना अनिवार्य होता तब तांगा बुलाते और सभी लोग लदकर जाया करते थे ।अन दिनों भी ताजमहल मुफ्त था
ताजमहल में उन दिनों तब शरद पूर्णिमा का मेला लगा करता था ।जिसे लोग चमकी मेला कहां करते थे ।कहते थे शरद पूर्णिमा की रात्रि में ताजमहल में लगे हीरे जवाहरात खूब चमकते थे तब ताजमहल का सौंदर्य केसा रहा होगा इसकी कल्पना की जा सकती है ।लेकिन अब तो ऐसा नहीं है क्योंकि अंग्रेजों ने वहां लगे हीरे जवाहरात और कीमती पत्थर निकाल कर बेच दिया था अब तो वहां चांदनी रात में ताजमहल का सौंदर्य ही देखने लायक होता है ।यह तो हमें बाद में बात पता चली कि चमकी चमकी तो नौजवान लड़के लड़कियों का खेल था ।
ताजमहल में चांदनी रात में जब कोई अच्छी लड़की दिखाई देती थी तो शरारती लड़के चिल्लाते थे ।चमकी देखो चमकी .....और अपना मनोरंजन करते थे.
एक बात और ... उस समय पता नहीं क्यों लोग नीचे तहखाने में कब्रों को भी देखने जाते थे ।तहखाने आने जाने का रास्ता संकरा था और भीड़ बहुत ज्यादा होती थी ।खूब खेचम खेंच और धक्का-मुक्की होती थी ।बड़े हम लोगों को कसकर पकड़ लेते थे ताकि हम बिछड़ ना जाएं फिर समय बदला ताजमहल पर टिकट लगने लगा 
 लेकिन शुक्रवार को टिकट नहीं लगती थी परंतु सुरक्षा का तामझाम बढ़ गया था इसलिए सिर्फ ताजमहल देखते थे ।याद के लिए फोटो खींचते थे और चले आते थे ।
आजकल ताजमहल जाना कभी-कभी हो पाता है। वो भी जब कोई मेहमान साथ चलने की जिद करते हैं ।
अब तो ताजमहल पर भारी टिकट हो गई है और सुरक्षा के तमाम तामझाम दिखाई देते हैं । अब तो सुना है ताजमहल बहुत महंगा हो गया है और कोराना के चलते टिकट भी ब्लैक में मिलने लगी है ।इसलिए कभी ताजमहल घूमने का मन होता है तो हम मेहताब बाग चले जाते हैं। यहां से ताजमहल का व्यू अच्छा दिखाई देता है और फोटोग्राफी भी अच्छी हो जाती है ।
यहां ऐसा तामझाम नहीं है और आप पिकनिक भी अच्छा बना सकते हैं।  लेकिन अब यहां भी टिकट लग चुकी है पर ताजमहल जैसी तामझाम दिक्कत नहीं है ।आप दिन भर यहां घूम सकते हैं और अपनी वीडियो भी बना सकते हैं ।
लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद भी ताजमहल देखने का मोह त्याग करना कठिन है और तमाम दिक्कत उठाकर भी लोग ताजमहल देखने जाते हैं क्योंकि ताजमहल है ही ऐसा।

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