दूधवाला
दूध वाला... विजय राघव आचार्य
मैं कई दिनों से देख रहा था दूधवाला कुछ ज्यादा ही पतला दूध दे रहा था। मुझे यह देख कर बड़ा क्रोध आ रहा था और मैंने सोच लिया था की दूध वालेे से जरूर कहूंगा । फिर एक दिन मैंने उससे कह ही डाला.. भैया क्या आजकल गंगा में बाढ़ आई हुई है, या गाय भैंसों ने ज्यादा पानी पीना शुरू कर दिया है । आजकल दूध बड़ा पतला आ रहा हूं ।
दूधवाला मेरा आशय समझ गया और बोला.. बाबूजी ना तो गंगा में बाढ़ आई है, और ना ही गाय भैंस ज्यादा पानी पीने लगी है, यह सिर्फ आपका भ्रम है ।दूध तो वैसा ही आ रहा है ,जैसा हर रोज आता है।
मैंने कहा ...काहे बात बनाते हो ।आजकल दूध मैं पानी कुछ ज्यादा ही दिखाई देता है, और मलाई भी नहीं जम रही है।
इसपर दूध वाले ने बड़ी ढिठाई से कहा... बाबूजी दूध में उतना ही पानी मिलाता हूं, जितना हर रोज मिलाता था ।ना एक बूंद ज्यादा और ना ही एक बूंद कम ।
उसकी बात सुनकर मुझे बड़ा क्रोध आया ,लेकिन वह तो पूरी तरह बेशर्म था ।
मैंने कहा... क्यों मिलाते हो दूध में पानी। शुद्ध दूध क्यों नहीं देते ।
इस पर उसने बड़ी बेरुखी से कहा.. बाबूजी... हम तो शुद्ध दूध देना चाहते हैं ,लेकिन आप जैसे लोग शुद्ध की बजाए सस्ता दूध चाहते हैं ,और अगर सस्ता दूध ना दूं तो मेरी बिक्री कैसे होगी, और मैं कैसे अपने घर परिवार को पालन कर पाऊंगा ।
आप चाहे तो शुद्ध दूध थोड़े ज्यादा दाम में ले सकते हैं। मेरे पास शुद्ध दूध भी है। क्या आप आज से लेना शुरू करेंगे ।
मैं निरुत्तर हो गया क्योंकि मैं जानता था कि मुझे भी सस्ता दूध चाहिए। और यह भी कि मैं यह भी जानता था, कि किसी भी दूध वाले से दूध लूंगा तो यही स्थिति होगी। कोई दूधवाला ऐसा नहीं होता जो दूध मैं पानी नहीं मिलाता होगा।
मैं ठहरा प्राइवेट कंपनी का एक साधारण बाबू और बस चाय और नाम के लिए दूध लिया करता था । यह बात पक्की थी, कि पिछले कई सालों से यह दूधवाला दूध दे रहा था, और मुझे कोई परेशानी इस वजह से नहीं आई। दूध में थोड़ी बहुत मलाई भी निकल आती थी ।मलाई से में घी भी बनाई लिया करता था ,लेकिन फिर भी मुझे क्रोध आता था ।और यह क्रोध बढ़ता ही चला जाता था इसलि मैंने दूध वाले से कह डाला।
भैया तुम्हारा दूध तो बहुत ज्यादा पतला होता जा रहा है। अगर जांच करवा दी तो सीधे अंदर जाओगे । इस पर दूधवाला भड़क गया बोला.... बाबूजी मैं गरीब आदमी हूं ,इसलिए तुम यह धमकी दे रहे हो ।वरना तुम उन लोगों के खिलाफ क्यों नहीं लड़ते जिन्होंने सारे देश को बर्बाद करके रख दिया है। उनके खिलाफ क्यों नहीं बोलते जो देश में भ्रष्टाचार बेईमानी और गुंडागर्दी फैला रहे हैं। उन मिलावटखोरों के खिलाफ क्यों नहीं आगे आते, जो लोगों के जीवन से खेल रहे हैं ।
क्या मैं ही बचा हूं, जिसे आप धमकी दे रहे हो ।अगर लड़ना है तो उनके खिलाफ लडो,.. मुझ गरीब से लड़ कर क्या हासिल कर लोगे ।फिर उसने जो कहना शुरू किया तो रुका ही नही ..
मैं उसके बातों से हतप्रभ था । सही बात तो यह है कि हम भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ लड़ने की हिम्मत ही नहीं रखते है ।कहने को तो बहुत बाते करते हैं, लेकिन लड़ने की बात पर कन्नी काट जाते है ।बस इधर उधर की बातें जरूर कर लिया करते हैं ।
दूधवाला अपनी बात कहता ही जा रहा था और उसकी बातों का विरोध करने की हिम्मत मेरे पास नहीं थी ।
सच तो यह था कि दूध वाले की बातों का मेरे पास कोई जवाब नहीं था। इसलिए मैंने विवाद को ज्यादा बढ़ाना उचित नहीं समझा और बात खत्म कर दूध लेकर अंदर चला आया।
लेकिन दूधवाले की बातों ने मुझे सोचने को मजबूर कर दिया कि मालूम होने के बावजूद भी लोग भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ लड़ाई क्यों नहीं लड़ पाते है।
मुझे लगा कि मुझे दूध वाले से विवाद नहीं करना चाहिए था । फिर कुछ दिन बीते और एक दिन जब मैं दूध लेने गया तो दूधवाला मुझे बड़ा खुश दिखाई दीया।
मैंने पूछा .. भैया आज बड़े खुश नजर आ रहे हो ..कोई लाटरी वाटर निकली है क्या
उस पर उसने मुस्कुरा कर कहा ..नहीं कोई लॉटरी नहीं निकली है ,लेकिन आज मैं खुश हूं क्योंकि आज मेरा जन्मदिन है.
इस पर मैंने व्यंग से कहा ..तब तो हमारी मिठाई बनती है ।
उसने कहा ..हां क्यों नहीं बाबूजी फिर उसने साइकिल में लटके दिल थैले से मिठाई का डिब्बा निकाला और उसे खोल कर कहा.. बाबूजी शुद्ध घी के लड्डू हैं.. आप भी खाओ .
मैंने एक लड्डू उठा लिया और कहा ..आज दूध तो शुद्ध है ।
उसने हंसकर कहा ..हां बाबू जी आज तो आपको मैंने शुद्ध दूध ही दिया है.
मैंने देखा उसका मूड ज्यादा अच्छा था ,इसलिए एक प्रश्न जो मेरे मन में कई दिनों से खटक रहा था उससे पूछ ही डाला ।
मैंने कहा..भैया एक बात बताओगे।
उसने कहा पूछे बाबूजी..
मैंने कहा ..तुमने अपनी साइकिल पर बड़ी टंकी के साथ, यह जो रंग बिरंगी टंकियां लटका रखी है इसका क्या रहस्य है ।इनमें भी दूध है या कुछ और .....
उसने कहा.. बाबूजी इसमें भी दूध है ,और वो भी अलग-अलग ।
मैंने पूछा ..क्या मतलअलग-अलग दूध ।
वह हंसकर बोला ..बाबूजी जैसे लोग होते है, वैसा दूध देता हूं । अब जो बड़ी टंकी है ,उसमे से आप जैसे लोगो को दूध देता हूं। इसमें बस 20परसेंट पानी होता है, जो सस्ता दूध चाहते ।
मैंने पूछा ..यह जो सफेद टंकी है उसमें।
दूध वाला बोला.. यह जो सफेद टंकी देख रहे हैं ,इसमें शुद्ध दूध है ,बिना पानी वाला और यह दूध मैं उन्हें देता हूं, जो महंगा दूध खरीद सकते हैं ।
मेने कहा ..ये लाल टंकी ।
उसने कहा .इस टंकी में आधा दूध और आधा पानी है ..यह उन बस्ती के लोगों को देता हूं, जो चाय पीना चाहते है और जिन्हें चाय पीकर सुकून मिलता है, लेकिन उनके पास दूध खरीदने की पैसे नहीं होते इसलिए उन्हें यह देता हूं ..और पैसों के लिए जिद्द भी नहीं करता। जिसकी जैसी मर्जी होती है मुझे पैसे दे देता है ।
मुझे आश्चर्य हुआ और फिर मैंने पूछा ..यह खाली टंकी में क्या है .उसने कहा बाबूजी इसमें दूध ही नहीं हैं ,इसमें नकली दूध है ,और यह दूध मैं उन बस्ती के लोगों को देता हूं, जिनका काम चोरी डकैती जेब कटी और ऐसे ही काम करना होते हैं ।
मैंने कहा ..इससे तो उनके जीवन का खतरा हो होगा।
दूधवाला गुस्से से बोला.. बाबू जी ऐसे लोगों का जीवन क्या ..यह तो समाज के लिए दुश्मन है, पूरे राक्षस है ,इन्हें तो खत्म होना ही होता है .
मैंने फिर पूछा ..यह जो पीली वाली थोड़ी बड़ी टंकी है ..इसमें कैसा दूध है ।
वह बोला ..यह भी शुद्ध दूध है और इसे मैं एक अनाथ आश्रम में देता हूं. जहां कि बच्चों को दूध की जरूरत होती है।
मैं उनसे कोई पैसा नहीं लेता हूं ..उनके लिए दूध गर्म करता हूं ..चीनी मिलता हूं ..और फिर हर बच्चे को पिलाता हूं .
मैंने आश्चर्य से पूछा.. ऐसा क्यों ?? दूध वाला बोला ..बाबूजी वो अनाथ बच्चे हैं .उनके मां बाप नहीं है ..मैं भी एक अनाथ बच्चा था। और मैं उनके दर्द को जानता हूं , मैं ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकता लेकीन ..इतना तो कर सकता हूं और उन्हें खुश देख कर मै बड़ा आनंदित होता हूं।
मैं उसकी बातें सुनकर सोचने पर मजबूर हो गया कि जिस दूध वाले को मैं राक्षस और ना जाने क्या क्या कहता था.... वह तो कुछ और ही निकला।
अब मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मै उसे क्या कहूं.. पता नहीं प्रकृति कैसे कैसे इंसान बना देती है, केसे केसे विचार लोगों को देती है ..दूध वाले का व्यवहार मेरे लिए अबूझ पहेली बन चुकी थी.. जिसे सुलझा पाना शायद मेरे बस में नहीं था ।

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