बृजेश की आत्मा/मेरी संस्मरण

बृजेश की आत्मा/मेरे संस्मरण

भाग..1
     बृजेश श्रीवास्तव की आकस्मिक मृत्यु से उसके परिवार पर संकट के बादल मंडराने लगे थे ।हम लोग भी बुरी तरह परेशान थे । हमारी यूनियन भी चिंतित थी, कि मृत्यु की पश्चात उसके परिवार पर किसी प्रकार का संकट नहीं आए, और मृत्यु उपरांत उसके देयको का भुगतान हो जाए । उसके परिवार को आश्रित कोटे से नियुक्ति भी मिल जाए।
   लेकिन ऐसा हो नहीं रहा था। लेखा विभाग ने उसके विरुद्ध 7 लाख की देनदारी दिखा दी थी। निदेशक महोदय ने भी हाथ खड़े कर दिए थे । लक्ष्मी नारायण उपाध्याय ने राजेंद्र सक्सेना के हवाले से जोर देकर कहा कि आश्रित कोटे में नौकरी नहीं मिल सकती, क्योंकि यह कोटा केवल 5 प्रतिशत का था, और वह पूरी तरह से भर गया है।
इस तरह से बृजेश श्रीवास्तव का मामला पूरी तरह अटक गया था। हमारी यूनियन परेशान थी और यह जानती थी, कि समय के साथ सहानुभूति भी पूरी तरह खत्म हो जाती है, और फिर सरकारी कायदे कानून भी सामने आने लगते है।
करीब इसी उहापोह में 1 महीने का समय बीत गया, और कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया। इसी कारण से बृजेश श्रीवास्तव की एन ओ सी का मामला भी अटक गया था।
परिवार परेशान था, और हम लोगों भी चिंतित थे कि क्या करें।
लेखा विभाग ने बृजेश के खिलाफ जो देनदारी निकाली थी, उसके पीछे भी एक कहानी थी।
बृजेश श्रीवास्तव को साउंड रिकॉर्डिंग स्टूडियो बनाने की जिम्मेदारी और कार्य सौंपा गया था। इसके लिए कुछ फर्मों से सामग्री खरीदी गई थी ,जिसका भुगतान चेक द्वारा लेखा विभाग ने सीधे फर्मों को किया था, लेकिन इसका समायोजन बृजेश श्रीवास्तव को कराना था, क्योंकि इससे संबंधित पूरी फाइल उनके पास ही थी। उन्होंने कुछ रुपया भी एडवांस लिया था, जो लगभग ₹10000 रहा होगा। यह राशि फुटकर सामान खरीदने के लिए थी, जिसकी खरीद की रसीद और खरीद की स्वीकृति फाइल में मौजूद थी । लेकिन समय रहते बृजेश श्रीवास्तव ने इसका समायोजन नहीं करवाया था।
मैंने कई बार उनसे कहा कि काम खत्म हो गया है ,सारी फाइलें तैयार है, तुम इसका फटाफट समायोजन करवा लो । लेकिन एक घटना के कारण, वे क्रोधित हो गए थे, और उन्होंने फाइल पटक दी थी।
दरअसल स्टाफ कार से संबंधित स्थानीय मार्ग व्यय को लेकर उनकी जीवनलाल गुप्ता से झड़प हो गई थी। उस समय जीवन लाल गुप्ता लेखा में बड़े बाबू थे। बात इतनी सी थी कि जीवन लाल गुप्ता ने कहा ..आप स्टाफ कार से क्यों नहीं गए। इस पर बृजेश श्रीवास्तव को क्रोध आ गया, और उन्होंने कहा ….स्टाफ कार मिलती कहां है, हमने कई बार मांग की, लेकिन स्टाफ कार उपलब्ध नहीं हुई .और आप मात्र ₹80 के मार्ग व्यय के लिए इतनी टांग अड़ा रहे हैं।
इस पर खूब कहासुनी भी हुई ,और बृजेश गुस्से में तमतमा गए। उन्होंने वापिस विभाग में आकर ,फाइल एक और पटक दी ,और कहां.. नहीं कराता समायोजित... देखें क्या कर लेते हैं।
क्रमश...भाग..2 अगले अंक में 





पता नहीं उनके मन में क्या था और यह क्या सोच रहे थे .मैं नहीं समझ पाया और मैंने यही उचित समझा कि इस समय शांत रहना ही ठीक है।
फिर समय आगे बढ़ता गया और कालांतर में उन्हें कई नोटिस भी मिले, लेकिन उन्होंने उसकी परवाह नहीं की । फिर एक दिन उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई। अब यह फाइल कहां थी, कुछ पता नहीं चल रहा था।
मैं परेशान था और मुझे पता था कि यह फाइल ही ऐसी एकमात्र प्रमाण थी जिसकी वजह से बृजेश श्रीवास्तव की देनदारी का समायोजन हो सकता था।
मैं फाइल ढूंढने का प्रयास कर रहा था, लेकिन मेरे इस प्रयासों को संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा था। एक चर्चित प्रोफ़ेसर ने भाभी जी (आभा श्रीवास्तव)से कहां कि इस पर विश्वास मत करना , यह आदमी बड़ा हरामी है ,और कुछ भी हेरा फेरी कर सकता है।
बात 1999 की है, तब चंद्रकांत त्रिपाठी रजिस्ट्रार के रूप में नए-नए आए थे । तब गोविंद शरण शर्मा भी लेखाधिकारी के रूप में नियुक्त हुए थे । दोनों ही अधिकारियों की आरंभिक छवि बहुत अच्छी और सहयोगात्मक थी। वे भी चाहते थे कि इस मामले का निपटारा हो जाए और वह इसका समाधान ढूंढ रहे थे ।
इस मध्य एक घटना और हुई। डॉक्टर रविंद्र शर्मा की भी अकस्मिक मृत्यु हो गई। तब डॉ शर्मा की उम्र भी बृजेश श्रीवास्तव की उम्र के बराबर रही होगी। इन दोनों के मृत्यु के बीच ज्यादा अंतर नहीं था जिस कारण संस्थान में हलचल मच गई और फिर इन दोनों के लिए सहानुभूति की लहर और तेज हो ई।
अब अध्यापक संघ भी आश्रित को नौकरी देने के पक्ष में निदेशक से अनुरोध करने लगे और दबाव भी बनाने लगे।
रजिस्ट्रार चंद्रकांत त्रिपाठी के कारण लेखाधिकारी ने एक समाधान निकाला कि विभाग कार्य की पुष्टि करते हुए एक बिल प्रमाणित करते हुए प्रस्तुत करें तो इसका समायोजन किया जा सकता है। लेकिन ऐसा करना भी आसान नहीं था क्योंकि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा। 
तब ठाकुर दास जी विभाग के प्रभारी थी और उन्होंने कहा की ऐसा करो संबंधित फर्म से भुगतान की डुप्लीकेट रसीद और बिल प्राप्त करो। प्रयास भी किया गया लेकिन संबंधित फर्मों ने कोई सहयोग नहीं किया और हाथ खड़े कर दिए।
मामला घूम फिर कर वहीं आ गया जहां से शुरू हुआ था। हम लोगों ने मान लिया कि अब कुछ नहीं हो सकता। हम लोग गहरी निराशा डूब गए।
क्रमश...

तब एक दिन अजीब घटना घटी ....
संस्थान के स्टाफ क्वार्टर के पांच नंबर क्वार्टर के अपने कक्ष में, मैं गहरी नींद में सोया हुआ था।। सर्द रात में चारों तरफ गहरा सन्नाटा था और रजाई की गर्मी से राहत मिल रही थी। अचानक मेरी नींद किसी के बड़बडने से खुल गई और मैंने देखा कि बगल मैं सोई पत्नी नींद में किसी से बातें कर रही थी।
उसकी बातें सुनकर मेरे कान खड़े हो गए और मैं ध्यान से उनकी बातें सुनने लग। वह किससे बातें कर रही थी यह अनुमान लगाना ज्यादा कठिन नहीं था,
नमस्ते भाई साहब
अच्छा आप संस्थान से आ रहे हैं...
अच्छा अब शास्त्री नगर जा रहे हैं..
आप प्रगति एनक्लेव नहीं गए।
अच्छा आपको अच्छा नहीं लगता..
आपने अच्छा किया जो यहां आ गए।
कैसे हैं आप। अभी आपको नया जन्म नहीं मिला..
अच्छा एक महीने बाद मिलेगा।
अच्छा कुछ काम था।
फाइल कंप्यूटर रूम में है।
अच्छा उस अलमारी में.... ठीक है मैं बता दूंगी
बेफिक्रे रहीये ... मैं जरूर बता दूंगी
अच्छा आप जा रहे हैं..... आपका समय हो गया।
ठीक.. मैं जरूर बता दूंगी.... आप आते रहिएगा भाई साहब
नमस्ते भाई साहब..
बातचीत खत्म हो गई और फिर गहरा सन्नाटा छा गया ।पत्नी खर्राटे भरने लगी।
मेरी नींद गायब हो गई और मैं इस विचित्र घटना से विचलित हो गया।
तो क्या... बृजेश श्रीवास्तव की आत्मा आई थी ..अपनी बात कहने... क्योंकि बातचीत से यह स्पष्ट हो गया कि पत्नी बृजेश श्रीवास्तव से ही बातें कर रही थी ,क्योंकि वह उसी को भाई साहब कहती थी.।
मै सोचने लगा ..
तो क्या यह सच है कि मरने के बाद आत्मा अपने परिवार की चिंता करती है और उसकी सहायता करती है।
मेरी नींद पूरी तरह गायब हो गई और मैं व्याकुल हो गया ...कब सवेरा हो ..और मैं कंप्यूटर रूम में फाइल की तलाश शुरु करूं।
क्रमश...
भाग ४ अगले अंक में 



बृजेश की आत्मा/मेरे संस्मरण
भाग 4
कंप्यूटर रूम का चार्ज वाशनी शर्मा के पास था। बृजेश श्रीवास्तव अक्सर वहां बैठकर कंप्यूटर में काम किया करते थे। वहां कुछ अलमारी थी, जिसमें ज्यादातर कंप्यूटर पेपर ही रखे जाते थे, और भी अलमारियां थी जो खुली ही रहती थी, इसलिए वहां फाइल हो सकती है इसका अनुमान लगाना मुश्किल था। इसलिए मैंने वहां तलाश नहीं की, मुझे लग रहा था कि फाइल शायद उनके घर में हो।
मैं बेचन हो उठा और उस दिन जल्दी ही ऑफिस पहुंच गया। वाशिनी शर्मा 10: बजे आई और मैं तेजी से उनके कमरे में पहुंच गया। मैंने उनसे अनुरोध किया कि मैं कंप्यूटर रूम की अलमारी में फाइल की तलाश करना चाहता हूं। उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की और कहा... ढूंढ लो.
मैंने सबसे पहले उसी अलमारी को खोला, जिसमें बृजेश श्रीवास्तव की आत्मा ने संकेत दिए थे।
अलमारी खोलते ही मैं आश्चर्य में पड़ गया, जब कंप्यूटर पेपर के बीच बड़ी सावधानी से रखी गई 2 फाइलें मुझे गिर गई। मैंने कांपते हाथों से फाइल खोली, तो वह वही फाइल थी जिसकी मैं तलाश कर रहा था।
तो क्या सच में बृजेश श्रीवास्तव की आत्मा मुझे फाइल के बारे में बताने आई थी।
 वास्तविकता मेरे सामने थी।
मैंने मोहनलाल गुप्ता और हरिओम शर्मा को फाइल दिखाई और कहां ..अब सारा काम आसान हो जाएगा। उन्होंने कहा.. राघव यह बहुत अच्छा हुआ।
यूनियन के लोग भी यह जानकर प्रसन्न हुए.. चलो अब सारा काम हो जाएगा।
इधर निदेशक महावीर सरन जैन ने भी सहानुभूति दिखाते हुए एम्पलाइज यूनियन, अध्यापक यूनियन की बातों का सम्मान किया और बृजेश श्रीवास्तव.. रविंद्र शर्मा के आश्रितों को तदर्थ नियुक्ति देने का निर्णय ले लिया, और तमाम बातों को दर किनारा करते हुए दोनों की नियुक्ति के आदेश जारी हो गए।
बृजेश श्रीवास्तव के देयकों का भी भुगतान हो गया , रजिस्टर चंद्रकांत त्रिपाठीऔर लेखाधिकारी गोविंद शरण शर्मा का बहुत बड़ा योगदान और सहयोग रहा। 
कहना ना होगा जिंदगी ढर्रे पर आ गई थी।
हम लोगों को संतोष था कि हम यूनियन का दायित्व निभा पाए और हमारे प्रयास रंग लाएं। लेकिन... कुछ महीनों बाद हमें यह सुनने को मिला कि यूनियन ने क्या किया है.. एक अकेली औरत ने अपने बलबूते पर सारा काम करा लिया।
हमें यह सुनकर कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि हम ऐसी बातों को सुनने के आदि हो गए थे। हमें तो इस बात का संतोष था कि , बृजेश श्रीवास्तव के प्रति जो हमारा दायित्व था उसका हम ठीक से पालन कर पाए।
समाप्त...

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