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राजेंद्र सक्सेना/मेरे संस्मरण

राजेंद्र सक्सेना/मेरे संस्मरण राजेंद्र सक्सेना के साथ हमेशा मेरे औपचारिक संबंध ही बने रहे ।अपने 40 साल की सेवाकाल में भी यह संबंध अभिवादन से आगे कभी नहीं बढे । यह भी एक संयोग था कि अपने सेवाकाल के दौरान, कोई ऐसा विषय भी सामने नहीं आया जब हमारा कोई आमना सामना हुआ हो । वे ज्यादातर परीक्षा विभाग से संबंधित रहे और मैं सूचना भाषा प्रौद्योगिकी से । मैंने हमेशा उनसे दूरी बनाई रखी और इसके पीछे भी एक कारण था ।एक घटना थी जो सेवा काल के आरंभ में ही ओमप्रकाश तिवारी के कारण उत्पन्न हुई थी। ओमप्रकाश तिवारी तब भाषा प्रयोगशाला में मेरे सहायक के रूप में काम कर रहा था ,और पता नहीं उसने नमक मिर्च लगाकर सक्सेना से क्या कह दिया कि सक्सेना गरम हो गया ,और उसने के लक्ष्मी नारायण के सामने मेरी पेशी करा दी ।मुझे कॉफी अपमानित होना पड़ा। तब लक्ष्मी नारायण दफ्तर में बड़े बाबू थे ।उन्होंने बाद में मुझे समझाया भी ,और कहा भी.. कि दफ्तर में सोच समझकर बोला करो। जीवन लाल गुप्ता ने भी मुझे सलाह दी... बेटा यह दफ्तर है.. यहां पर सही तरह से जीना है.. तो अपने आंख कान खोल कर रखो और जुबान को सोच समझकर खोलो । मुझे उनकी...

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